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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
* वायुदाब सागर तल पर सर्वाधिक होता है जहाँ पर एक वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्रफल पर लगभग एक किलोग्राम (1034 ग्राम) होता है।
* वायुदाब मापने के लिए साधारण वायुदाबमापी, मरकरी बैरोमीटर, निर्द्रव वायुदाबमापी आदि उपकरण प्रयोग किये जाते हैं। इसके अलावा बैरोग्राफ, माइक्रोबैरोग्राफ आदि उपकरण भी वायुदाब के नापने में प्रयोग होते हैं।
* ऊंचाई के साथ वायुदाब में प्रति 600 फीट (180 मीटर) पर 1 इंच या 3.4 mb की दर से गिरावट होती है।
* सामान्य रूप से 1800 फीट (540 मीटर) की ऊंचाई तक वायुमण्डल का आधा दाब स्थिर होता है।
* सागर तल पर मानक वायुदाब (45° अक्षांश पर 15°C पर परिकलित) 1013.25 mb है।
* सामान्य तौर से सागर तल पर वायुदाब में क्षेत्रीय स्तर पर 982mb से 1033mb के बीच परिवर्तन होता रहता है।
* अधिकतम वायुदाब (1083.8 mb) का मापन रुस के अगाता में 31 Dec, 1968 में किया गया था जबकि 12 Oct, 1979 में प्रशान्त महासागर में गुआम के पास 870mb तथा मरीना द्वीप पर 877mb के न्यूनतम वायुदाब का अंकन किया गया था।
* वायुदाब तथा वायु तापमान में विलोम सम्बंध होता है।
* वायुदाब के दैनिक परिवर्तन काचक्र उच्च एवं न्यून दाब के रूप में होता है। अधिकतम वायुदाब 10 A.M. तथा 10PM एवं न्यूनतम वायुदाब 4AM तथा 4PM एवं न्यूनतम वायुदाब 4AM तथा 4PM के समय अंकित किया जाता है।
* दाब प्रवणता (Pressure Gradient) को बैरोमेट्रिक ढाल भी कहते हैं।
* पास-पास स्थित समदाब रेखाएँ तीव्र दाब प्रवणता को तथा दूर-दूर स्थित समदाब रेखाएँ मन्द दाब प्रवणता को प्रदर्शित करती है।
* भूमध्य रेखा के पास अधिक तापमान के कारण निम्न वायुदाब होता है तथा कर्क एवं मकर रेखाओं के पास अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब मिलता है।
* भूमध्य रेखा के ध्रुवों की ओर तापमान में गिरावट के कारण वायुदाब को बढ़ाना चाहिए, परन्तु वह 60° अक्षांशों के पास निम्न हो जाता है। पुनः ध्रुवों की ओर यह कम तापमान के कारण उच्च हो जाता है।
* ग्लोब पर वायुदाब की कुल सात पेटियाँ होती हैं। उत्पत्ति की प्रक्रिया के आधार पर वायुदाब पेटियों को दो वृहद् समूहों में विभाजित किया जाता है—(1) तापजन्य वायुदाब पेटी, जिसमें भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब तथा ध्रुवीय उच्च वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है, (2) गतिजन्य वायुदाब जिसमें उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा उपध्रुवीय कम वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है।
* भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब क्षेत्र में धरातल पर हवाओं में गति कम होने के कारण शान्त वातावरण रहता है। इसी कारण इस पेटी को डोलड्रम (Doldrum a region of Calm) कहा जाता है।
* दोनों गोलाद्धों में 30°-35° अक्षांशों के मध्य पेटी को 'अश्व अक्षांश (Horse Latitude) भी कहते हैं।
* उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी का उच्च दाब तापमान से सम्बंधित न होकर पृथ्वी की दैनिक गति तथा वायु के अवतलन से सम्बंधित है।
* उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटा का विस्तार 60-65° अक्षांशों के बीच पाया जाता है। वर्षभर तापमान कम होने के बावजूद यहाँ निम्न वायुदाब मिलता है।
* ध्रुवों पर तथा समीपी क्षेत्रों में अत्यन्त शीत के कारण वायुदाब स्वभावतः ऊँचा रहता है। अतः यह उच्च वायुदाब तापजन्य है।
* भूमध्यरेखीय न्यून वायुदाब क्षेत्र एक संकीर्ण मेखला (Narrow Belt) के रूप में विकसित हुआ है जबकि उपोष्ण कठिबन्धी उच्च वायुदाब अनियमित एवं खण्डित रुप में विकसित हुआ है।
* धरातलीय सतह के सौर्यिक विकिरण द्वारा अत्यधिक गर्म होने के कारण दक्षिणी-पश्चिमी एशिया में न्यून वायुदाब कोशिका (999 mb) का विकास हुआ है।
* उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्डों में न्यून वायुदाब की सभी कोशिकायें महासागरीय भागों पर ही विकसित हुई हैं।
* दाब प्रवणता जितनी ही कम होगी, वायु वेग उतना ही कम होगा तथा दाब प्रवणता जितनी अधिक होगा, वायु वेग उतना ही अधिक होगा।
* वायु की प्रवाह दिशा सदैव उच्च वायुदाब प्रवणता से न्यून दाब प्रवणता की ओर होती है।
* सामान्य नियमानुसार वायु की दिशा समदाब रेखाओं के समकोण पर होनी चाहिए क्योंकि वायुदाब प्रवणता की दिशा समदाब रेखाओं पर लम्ब की दिशा में होती है, परन्तु वास्तविक स्थिति में पवन की दिशा में अपेक्षित सैद्धान्तिक दिशा से विचलन होता है।
* कोरिआलिस बल के कारण हवाएँ (दिशा) समदाब रेखाओं को अपेक्षित समकोण पर न काटकर न्यूनकोण पर काटती है।
* उच्च वायुदाब का केन्द्र वायु के प्रवाह अपसरण (Divergence) तथा न्यून वायुदाब अभिसरण (Convergence) वायुसंचार की उत्पत्ति करता है।
* वायुदाब प्रवणता द्वारा उत्पन्न बल को 'दाब प्रवणता बल (Pressure Gradient Force) कहते हैं। यह बल किसी भी पवन के संचरण के लिए गतिवर्द्धक बल (Aculerating Force) का कार्य करता है।
* क्षैतिज दाब प्रवणता बल उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर धरातलीय सतह पर हवाओं में क्षैतिज गति का संचार करता है जबकि लम्बवत दाब प्रवणता बल संवहन तरंग तथा टर्बुलेण्ट पवन संचार के रूप में हवाओं में लम्बवत् गति संचार उत्पन्न करता है।
* पृथ्वी अपनी अक्ष के सहारे पश्चिम से पूर्व दिशा में घूर्णन करती है अतः इस घूर्णन गति के कारण वायु की दिशा में विक्षेप हो जाता है। जी0डी0 कारिआलिस ने वायु की दिशा में विक्षेप की प्रक्रिया का सर्वप्रथम अध्ययन किया। अतः इनके नाम पर विक्षेप बल को कोरिआलिस बल (Coriolis Force) कहते हैं।
* कोरिआलिस बल के कारण सभी हवाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है।
* वास्तविक अर्थ में कोरिआलिस बल अपने आप में कोई बल नहीं है बल्कि यह पृथ्वी के घूर्णन गति का प्रभाव है।
* कोरिआलिस बल के परिमाण का निर्धारण पवन वेग द्वारा किया जाता है। जितना ही पवन वेग अधिक होगा, उतना ही कोरिआलिस बल द्वारा पवन की दिशा में विक्षेप अधिक होगा।

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