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भूगोल >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
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वायुदाब एवं पवनें
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
वायु एक भौतिक वस्तु है जो विभिन्न गैसों का यांत्रिक मिश्रण है। वायु का
अपना स्वयं का भार होता है। इस कारण वायु अपने भार द्वारा धरातल पर दबाव
डालती है। धरातलीय सतह पर या सागर तल पर प्रति इकाई क्षेत्र पर ऊपर स्थित
वायुमण्डल की समस्त परतों के पड़ने वो समस्त भार को वायु दाब (Air Pressure)
कहते हैं। वास्तव में सागर तल पर प्रति इकाई क्षेत्रफल पर वायुदाब, बल को या
समस्त वायु स्तम्भों के भार को प्रदर्शित करता है। वायुदाब सागर तल (शून्य
मीटर) पर सर्वाधिक होता है जहाँ यह एक वर्ग सेंटीमीटर पर लगभग एक किलोग्राम
(1034 ग्राम) होता है। चूंकि ऊंचाई के साथ हवा के विरतों होने के कारण
वायुमण्डलीय दाब घटता जाता है अतः जब मनुष्य पर्वतों/ पहाड़ियों के सहारे ऊपर
चढ़ता है या वायुयान से यात्रा करता है तो उसके शरीर में स्थित वायु द्वारा
बाहर की ओर डाले गये वाह्य दबाव एवं वायुमण्डल द्वारा अन्दर की ओर डाले गये
दबाव के बीच सन्तुलन बिगड़ जाता है जिस कारण मनुष्य के नाक-कान से खून आने
लगता है तथा घुटन बढ़ने लगती है। वायुदाब मापने के लिए बैरोमीटर (Barometer)
की नली में पारे की ऊंचाई नापते हैं। कांच की नली में पारे की 0.1 इंच की
ऊंचाई 3.4 मिलीबार (mb) के बराबर होती है। ऊँचाई के साथ वायुदाब में प्रति
600 फीट (180 मीटर) पर 1 इंच या 3.4 बार की दर से गिरावट होती है। परन्तु यह
दर कुछ हजार मीटर तक ही संभव हो पाती है क्योंकि अधिक ऊँचाई पर वायु के हल्के
तथा विरल होने के कारण वायुदाब तेजी से कम होने लगता मानक वायुदाब में
स्थानिक (क्षैतिज एवं लम्बवत् रूप मैं) तथा कालिक परिवर्तन होते हैं। कालिक
परिवर्तन के अन्तर्गत वायुदाब की दैनिक तथा ऋतुवत् विभिन्नता अधिक महत्वपूर्ण
होती है। सागर तल पर मानक वायुदाब (45° अक्षांश पर 15°c पर परिकलित) 1013.25
mb है जो 5 km की ऊँचाई पर घटकर 540mb हो जाता है। सामान्य तौर पर सागर तल पर
वायुदाब में क्षेत्रीय स्तर पर 982mb से 1033 mb के बीच परिवर्तन होता रहता
है। वायुदाब तथा वायु तापमान में विलोम सम्बंध होता है, अर्थात् यदि तापमान
में वृद्धि होती है तो वायुदाब में कमी होती है और यदि तापमान में कमी होती
है तो वायुदाब में वृद्धि होती है।
धरातलीय सतह पर वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समदाब रेखाओं (Isobars)
के माध्यम से किया जाता है। सागर तल पर समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने
वाली कल्पित रेखा को ‘समदाब रेखा' कहते हैं। वायुमण्डलीय वायुदाब का वितरण
सागर तल से ऊंचाई, वायुमण्डलीय तापमान, पवन संचार, पृथ्वी का घूर्णन,
जलवाष्प, वायुमण्डलीय तूफान आदि कारकों द्वारा नियंत्रित होता है। सामान्य
तौर पर विभिन्न मान वाली समदाब रेखाओं के बीच वायुदाब के कम होने की दिशा के
सन्दर्भ में दाब प्रवणता को परिभाषित किया जाता है। अर्थात् उच्च वायुदाब से
निम्न वायुदाब की ओर ढाल को वायुदाब प्रवणता (Pressure Gradient) कहते हैं।
उल्लेखनीय है कि उच्च एवं निम्न वायुदाब शब्दों का प्रयोग निरपेक्ष अर्थ में
न होकर सर्वदा सापेक्ष अर्थ में किया जाता है। पास-पास स्थित समदाब रेखाएँ
तीव्र दाब प्रवणता तथा दूर-दूर स्थित समदाब रेखाएँ मन्द दाब प्रवणता को
प्रदर्शित करती हैं। सामान्य नियम के अनुसार वायु उच्च वायुदाब से निम्न
वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है। दूसरे शब्दों में पवन संचरण बैरोमिट्रिक ढाल
का अनुसरण करती है। सामान्य नियम के अनुसार वायुदाब प्रवणता तथा पवन वेग में
सीधा धनात्मक सम्बंध होता है। वायुसंचरण की दिशा दाब प्रवणता की दिशा पर
निर्भर करती है। सामान्य नियम के अनुसार वायु की दिशा समदाब रेखाओं के समकोण
पर होनी चाहिए परन्तु वास्तविक स्थिति में पवन की दिशा में अपेक्षित
सैद्धान्तिक दिश से विचलन होता है। वायु की दिशा में यह विचलन (Derivation)
पृथ्वी की घूर्णन गति से उत्पन्न विक्षेप बल (Defective Force) या कोरिआलिस
बल के कारण होती है।
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