स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
* वह ऊंचाई, जिसके ऊपर हिम वर्ष भर जमा रहता है, हिम रेखा कहलाती है। इसकी
ऊंचाई सामान्यतः विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर घटती जाती हैं एवं ध्रुवीय
प्रदेशों में हिम रेखा समुद्र की सतह पर होती है।
* वर्तमान में स्थलमंडल का 10% भाग हिम से आच्छादित है।
* अंटार्कटिका महादेश पर आज विश्व का 86% हिम पाया जाता है।
* स्थलखंड पर पाई जाने वाली गतिशील हिमराशि को हिमनद कहा जाता है।
* पर्वतीय हिमनद को घाती या अल्पाइन हिमनद भी कहा जाता है।
* गंगोत्री, मिलाम एवं जीम् हिमालय के प्रसिद्ध हिमनद है।
सियाचिन, हिस्पर, बियोको एवं बाल्टोरो हिमनद काराकोरम पर पाये जाते हैं।
* अलास्का के घुबर्ट नामक हिमनद की लम्बाई 128 किमी0 से भी अधिक है।
* मालस्पिना (Malaspina) हिमनद अलास्का का प्रसिद्ध हिमनद है।
* हिमनद के प्रवाह की गति उसके मध्य भाग में अधिकतम एवं दोनों किनारों पर
न्यूनतम होती है।
* ग्रीष्मकाल की तुलना में शीतकाल में हिमनद की गति धीमी होती है।
* हिमावरण या हिम चादर से ऊपर निकली पर्वत चोटियों को नूनाटक (Nunatak) कहा
जाता है।
* सागर में तैरने वाले बर्फ के टुकड़ों को हिमशिला (Icebergs) कहा जाता है।
* जब जल चट्टानो के संधियों एवं दरारों में प्रवेश करता है एवं जम जाता है,
तो हिमानी के गतिशील होने के कारण वह चट्टानों को तोड़ डालती है। इस क्रिया
को उत्पाटन क्रिया कहा जाता है।
* हिमनद अपनी तली में फंसे चट्टानों के टुकड़े द्वारा मार्ग में आने वाली
चट्टानों को घिसने (Griding) का कार्य करती है। यह क्रिया अपघर्षण (Abrasion)
कहलाती है।
* हिमानी सामान्यतः कोई नवीन घाटी का निर्माण नहीं करती है, बल्कि यह बहते
हुए जल द्वारा निर्मित घाटियों को U-आकार की घाटी में परिवर्तित कर देती है।
* मुख्य हिमानी एवं सहायक हिमानी के मिलन स्थल पर लटकती घाटी का निर्माण होता
है।
* हिमनद की अपरदन क्रिया के फलस्वरूप आराम कुर्सी के आकार की एक स्थलाकृति का
विकास होता है, जिसे हिम गहूवर कहा जाता है।
* हिम गहर को स्कॉटलैंड में कोरी (Corrie), वेल्स में कम (cwm) जर्मनी में
करेन (Karren) एवं स्कैंडिनेविया में केसेल (Kessel) कहा जाता है।
* जब दो हिमगहर दो विपरीत दिशाओं में विकसित होते हैं, तो उनके बीच एक पतली
कंघीनुमा स्थलाकृति का निर्माण होता है, जिसे अरीत (Arete) कहा जाता है।
* जब अपरदन के फलस्वरूप अरीत की दिवार टूट जाती है तो वहाँ आवागमन का पहाड़ी
मार्ग तैयार हो जाता है, जिसे गिरिसकट (cot) कहा जाता है।
* यदि किसी पर्वतीय क्षेत्र में विभिन्न दिशाओं से हिमगहर का विकास होने लगे
तो गिरिशृंग का निर्माण होता है।
* स्विट्जरलैंड में आल्पस का मैटरहॉर्न (Matterhorm) एवं भारत में हिमालय का
शिवलिंग इसी प्रकार निर्मित हुआ है।
* पर्वतीय हिमनद की अपरदन क्रिया के द्वारा हिमसोपान का या दैत्यसोपान (Gaint
stair case) का निर्माण होता है। इन सदियों के बीच में हिमनदों के लुप्त हो
जाने पर झीलों का निर्माण होता है जिन्हें पेटरनॉस्टर (paternoster) झील कहा
जाता है।
* जब हिमनद के मार्ग में चट्टानी टीले आते हैं तो हिमनद उसके सम्मुख ढाल को
घिसकर चिकना बना देता है, जबकि उतरने वाला ढाल पर कटाव कार्य द्वारा
ऊबड़-खाबड़ धरातल का निर्माण करता है। यह स्थलाकृति मेष शिला कहलाती है।
* उच्च अक्षांशों में हिमानी द्वारा निर्मित जलमग्न घाटियों को फियॉर्ड कहा
जाता है। फियॉर्ड मुख्यतः नार्वे, स्कॉटलैंड, ग्रीनलैंड, ब्रिटिश कोलंबिया,
अलास्का, चिली एवं न्यूजीलैंड के समुद्री तटों पर बड़े पैमाने पर पाये जाते
हैं।
* हिमानी द्वारा विस्तृत क्षेत्र में बोल्डर क्ले (Boulder clay) के निक्षेपण
के फलस्वरूप टिल मैदान का निर्माण होता है। प्रेथरी का मैदान टिल मैदान का
उदाहरण है।
* हिमनद बोल्डर क्ले के निक्षेपण द्वारा उल्टी नाव की आकृति की एक स्थलाकृति
का निर्माण करती है, जिसे ड्रमलिन कहा जाता है। ये सामान्यतः झंडों में पाये
जाते है। इस प्रकार दूर से देखने पर ये 'अंडों की टोकरी' के समान प्रतीत होते
हैं।
* हिमानी जलोढ़ निक्षेप (Glacio Fluvial Deposits) के द्वारा सांप की तरह
टेढ़ी-मेढ़ी एक स्थलाकृति का निर्माण होता है जिसे एस्कर कहा जाता है। इसका
निर्माण मोटे बालू एवं कंकड़ से होता है।
* हिमनद के अग्र भाग में हिम के पिघलने के पश्चात् रेत एवं बजरी का निक्षेप
टीले के रूप में होता है, जिसे केम (Kame) कहा जाता है।
* हिम के बड़े-बड़े टुकड़ों के पिघलने के फलस्वरूप गर्त का निर्माण होता है,
जिसे केटिल कहते हैं। केटिल के मध्य में कई छोटे-छोटे टीले पाये जाते हैं
जिन्हें हमक (Hummock) के नाम से जाना जाता है।
* हिमनद के पिघलने पर उसका जल कई धाराओं में बंट जाता है एवं डेल्टा के समान
धरातल पर एक विशेष प्रकार के मैदान का निर्माण करता है, जिसे अवक्षेप
मैदान या हिम जलोद मैदान (Out wash plain) कहा जाता है।
* हिमनद की घाटी में मलवा के भर जाने से घाटी हिमोढ़ (Valley Morain) का
निर्माण होता है।
* हिमयुग का प्रादुर्भाव कई कारणों से होता है, जिनमें से निम्नलिखित
महत्वपूर्ण हैं :
(i) सूर्य कलंको (Sun Sports) की संस्था का घटना-बढ़ना;
(ii) ध्रुवों का स्थानांतरण; (iii) महाद्वीपीय विस्थापन;
(iv) वायुमंडल में कार्बन एवं ओजोन गैसों की मात्रा में कमी;
(v) स्थलाकृतिक उच्चावच में परिवर्तन।
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