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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।



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पवन के कार्य एवं निर्मित स्थलाकृतियाँ

अध्याय का संक्षिप्त परिचय अपरदन के अन्य कारकों के समान पवन भी अपरदन तथा निक्षेपण का एक प्रमुख कारक है। परन्तु हिमानी या सरिताओं के परिवहन कार्य सर्वथा भिन्न होता है। पवन की प्रवाह दिशा में भिन्नता तथा अनिश्चितता के कारण उसका परिवहन भी किसी भी रूप में किसी भी दिशा में हो सकता है। वैसे पवन का कार्य सर्वाधिक विस्तृत होता है, परन्तु अर्द्धशुष्क तथा शुष्क मरुस्थलीय भागों में पवन, अपरदन का एक सक्रिय कारक होती है। यद्यपि अर्द्धशुष्क तथा शुष्क मरुस्थलों में अंतर स्थापित करना कठिन कार्य हैं परन्तु वर्षा के आधार पर वे भाग अर्द्धशुष्क रेगिस्तान होते हैं जहाँ पर वार्षिक वर्षा 10 से 20 इंच तक होती है तथा मरुस्थली भागों में वर्षा 10 इंच से भी कम होती है। वनस्पतियों का अभाव होता है परन्तु कुछ छिट-पुट वनस्पतियाँ अवश्य होती है, जिनमें कटीली झाड़ियाँ प्रमुख हैं। यदि आर्द्र प्रदेशों में बहते हुये जल अर्थात् नदियों के कार्य की प्रधानता होती है तो मरुस्थली भागों में सरिता के कार्य होते ही नहीं। मरुस्थली भागों में भी अचानक वृष्टि के कारण अल्पकालिक तथा आन्तरिक नदियाँ (ephemeral and intermittent streams) का आविर्भाव हो जाता है जिसे अपरदन कार्य महत्वपूर्ण हो जाता है। पवन द्वारा अपरदनात्मक कार्य (Erosional work of wind) पवन का अपरदन सम्बन्धी कार्य प्रमुख रूप से भौतिक या यांत्रिक (Physical or Mechanical) रुपों में ही सम्पादित होता है। मरुस्थलों में रासायनिक कार्य कुछ सीमा तक अल्पकालिक सरिताओं तथा वर्षा के जल द्वारा होता है। मरुस्थली भागों में अपरदन का कार्य अपक्षय से अधिक प्रभावित होता है। शुष्क मरुस्थलों में यांत्रिक अपक्षय के कारण चट्टानों के विघटन (disintegration) हो जाने से चट्टानें ढ़ीली पड़ जाती हैं। इन असंगठित चट्टानों को पवन आसानी से अपरदित कर देती है। पवन द्वारा अपरदन का कार्य तीन रुपों में होता है।

(i) अपवाहन (deflation) (ii) अपघर्षण (abrasion or corrasion) (iii) सन्निघर्षण (attrition)
पवन द्वारा परिवहन कार्य (Transportational coork of wind)-पवन का परिवहन कार्य अपरदन के अन्य कारकों के समान सुनिश्चित नहीं होता है। इसका प्रमुख कारण पवन के चलने की दिशा की अनिश्चितता है। इस कारण पवन का परिवहन कार्य आगे-पीछे ऊपर-नीचे कई रूपों में हो सकता है। पवन के परिवहन की कई विशेषतायें होती हैं-1. पवन द्वारा परिवहन की दिशा निश्चित नहीं होती है। 2. पवन का परिवहन अधिक दूरी तक विस्तृत होता है। इस तरह अपरदन के अन्य कारकों की तरह पवन का परिवहन कार्य अपरदन तक ही सीमित नहीं है। 3. पवन द्वारा परिवहन बहुदिशी होता है।
4. पवन द्वारा परिवहन सतह पर तथा सतह के ऊपर वायुमण्डल में भी होता है। 5. पवन द्वारा परिवहन कार्य मुख्य रुप से निलम्बन, साल्टेशन, टैक्शन आदि द्वारा होता है। पवन द्वारा निक्षेपण कार्य (Depositional work of wind) पवन का निक्षेपण (deposition) कार्य अधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस कार्य द्वारा बलुका स्तूपों (Sand dunes) तथा लोयस जैसे महत्वपूर्ण स्थलों का निर्माण होता है। पवन का निक्षेप कई बातों पर करता है। तीव्र वेग से चलने वाली पवन की परिवहन सामर्थ्य अधिक होने से उसके साथअधिक मात्रा में पदार्थों का परिवहन होता है। जैसे ही पवन के वेग में कमी आ जाती है, उसकी परिवहन सामर्थ्य घट जाती है जिस कारण अतिरिक्त पदार्थ नीचे बैठने लगते हैं। इसके अलावा निक्षेपण के लिए पवन मार्ग में अवरोध का होना आवश्यक होता है। पवन मार्ग में अवरोध, वनों, झाड़ियों, दलदलों, नदियों, जलाशयों तथा दीवालों आदि से उपस्थित हो जाते हैं। इन अवरोधों के कारण पवन का वेग कम हो जाने से पदार्थों का विभिन्न रूपों में निक्षेप होने लगता है। निक्षेप जनित स्थलरुपों में बलुका स्तूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

इस प्रकार उपरोक्त कार्यों के घटित होने से पवन विभिन्न प्रकार के स्थलाकृतियों का निर्माण करती है।

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