भूगोल >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
|
0 |
बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
* धरातल पर पाये जाने वाले विभिन्न स्थल रुपों का निर्माण दो प्रकार की
शक्तियों की परस्पर क्रिया का परिणाम है। (i) अन्तर्जात शक्तियाँ तथा (ii)
बहिर्जात शक्तियाँ। * पृथ्वी के आंतरिक भाग में उत्पन्न होने वाली शक्तियों
को अन्तर्जात शक्तियाँ (Endogenetic Forces) कहा जाता है। ये शक्तियाँ भूतल
पर असमानताएं लाती हैं। * पृथ्वी की सतह एवं वायुमंडल में उत्पन्न होने वाली
शक्तियों को बहिर्जात शक्तियाँ (Exogenetic Forces) कहा जाता है। ये शक्तियाँ
पृथ्वी के अन्तर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने का
कार्य करती हैं।
* आकस्मिक अन्तर्जात बलों द्वारा उत्पन्न संचलन को आकस्मिक संचलन (Sudden
movement) के अन्तर्गत रखा जाता है। जैसे-भूकंप तथा ज्वालामुखी। * पटलविरुपणी
संचलन (diastrophic movement) के अन्तर्गत पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उत्पन्न
होने वाली लम्बवत् तथा क्षैतिज दोनों गतियों को सम्मिलित किया जाता है।
* पटलविरुपणी बल मंद. गति से कार्य करते हैं तथा इनका प्रभाव हजारों वर्षों
बाद परिलक्षित होता है।
* महादेशीय संचलन (Epeirogenetic movement) से महाद्वीपों में उत्थान तथा
अवतलन एवं निर्गमन तथा निमज्जन की क्रियाएँ होती हैं।
* जब महाद्वीपीय भाग या उनका कोई भाग अपनी समीपी सतह से ऊँचा उठ जाता है तो
उसे उत्थान (upliftment) या उभार कहते हैं।
* जब महाद्वीप का तटीय भाग सागरतल से (जो पहले जलमग्न था) ऊपर उठ जाता है तो
उसे निर्गमन (Emergence) कहते है।
* जब स्थल का भाग स्थानीय या प्रादेशिक रूप में अपनी समीपी सतह से नीचे फँस
जाता है, तो इस क्रिया को अवतल कहते हैं।
* जब स्थलखण्ड सागर तल से नीचे चला जाता है तथा जलमग्न हो जाता है, तो इस
क्रिया को निमज्जन (submergence) कहते हैं।
* अवतलन की क्रिया तटीय भाग या महाद्वीप के बीच कहीं हो सकती है, परन्तु
निमज्जन की क्रिया "तटीय भागों या सागरीय भागों में ही होती है।
* जब बल दो विपरीत दिशाओं में कार्य करता है तो उससे तनाव (tension) की
स्थिति उत्पन्न हो जाती है। तनाव के कारण धरातल में भ्रंश (Fault), दरार।
(Fracture) तथा चटकने (cracks) पड़ जाती हैं।
* जब बल आमने-सामने कार्य करता है तो संपीडन होने लगता है। इससे धरातलीय
चट्टानों में संवलन (warp) तथा वलन (Folds) पड़ जाते हैं।
* दो अपनतियों के बीच नीचे धंसे भाग को अभिनति (Syncline) कहते हैं।
* अन्तर्जात बल के कारण क्षैतिज संचलन से उत्पन्न सम्पीडनात्मक बल
(Compressional Force) के कारण परवदार शैलों में उत्पन्न वलन के ऊपर उठे भाग
को अपनति (Anticline) कहते हैं।
* सममित वलन (Symmetrical fold) में वलन की दोनों भुजाएं समान रुप से झुकी
हुई होती है। इसे सरल मोड़े (Simple fold) भी कहा जाता है।
* जब दबाव शक्ति की तीव्रता कम रखें दोनों दिशाओं से एक समान हो, तो सरल मोड़
(Simple fold) का निर्माण होता है। जैसे—स्विट्जरलैंड का जूरा पर्वत।
* असममित मोड़ (Asymmetrical fold) में वलन की दोनों भुजाओं का झुकाव असमान
रहता है। कम झुकाव वाली भुजा अपेक्षाकृत लम्बी एवं अधिक झुकाव वाली भुजा छोटी
होती है। जैसे-इंग्लैण्ड का दक्षिणी पेनाइन पर्वत,
* एकनति वलन (Monoclinal Fold) में वलन की एक भुजा बिल्कुल खड़ी एवं दूसरी
भुजा झुकी हुई होती है। जैसे आस्ट्रेलिया का ग्रेट डिवाइनिंग रेंज।
* अधिवलन (over fold) में वलन की एक भुजा बिल्कुल खड़ी न रहकर कुछ आगे की ओर
निकली हुई रहती है एवं तीव्र ढाल (Steep slope) बनाती है, जबकि दूसरी भुजा,
जो अपेक्षाकृत लंबी होती है, कम झुकी होने के कारण धीमी ढल बनाती है।
जैसे-कश्मीर हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी। स
* मनत पलन (Isoclinical fold) में वलन की दोनों भुजाएं एक ही ओर झुकी हुई
होती है एवं लगभग समानांतर होती हैं।
* परिवलन (Recumbent) में वलन की दोनों भुजाएं, इतनी अधिक झुक जाती हैं कि वे
एकदूसरे के ऊपर क्षैतिज अवस्था में आ जाती हैं। दबाव शक्ति की तीव्रता के
कारण पूरा वलन धरातल के लगभग समानांतर हो जाता है। इस दोहरा मोड़ भी कहा जाता
है। जैसे-यू.के. का कैरिक कैसल पर्वत।
* जब संपीडनात्मक बल बहुत अधिक प्रभावशाली होता है, तो चट्टानों की परतें बलन
अक्ष पर टूट जाती हैं और एक-दूसरे पर चढ़ जाती है या आगे बढ़कर दूसरे खंड पर
आरोपित हो जाती हैं, जिसे अधिक्षिप्त या प्रतिवलन (over thrust or overturned
fold) कहा जाता है।
* जब परिवलित मोड़ की एक भुजा टूटकर बहुत दूर अलग जा पड़ती है एवं अन्य
प्रकार की चट्टानों पर चढ़ जाती है, तो उसे 'ग्रीवा खंड' (Nappe) कहा जाता
है।
* अधिक्षिप्त वलन एवं ग्रीवाखंड के उदाहरण कश्मीर की 'पीर पंजाल श्रृंखला'
एवं गढ़वाल हिमालय में देखने को मिलते हैं।
* कभी-कभी विभिन्न स्थानों पर संपीडन की विभिन्नता के कारण वृहत् अपनति के
अन्तर्गत कई छोटीछोटी अपनतियां एवं अभिनतियां देखने को मिलती हैं। इसे ही
समपनति या पंखाकार वलन (Anticlinorium or Fan Fold) कहा जाता है। जैसे
छोटानागपुर का सिंहभूम समपनति।
* जब असमान संपीडन के कारण वृहत् अभिनति के अन्तर्गत कई छोटी-छोटी अपनतियां
एवं अभिनतियां बन जाती हैं, तो इस वृहत् अभिनति को सममिनति कहा जाता है।
जैसे-पाकिस्तान स्थित पोतवार पर्वत क्षेत्र।
* पृथ्वी के अन्तर्जात बल के कारण भू-पृष्ठ की चट्टानों में दरार का निर्माण
हो जाता है। एसे दरारों को 'विभंग' (Fracture) कहा जाता है।
* ऐसा विभंग, जिसमें चट्टानें टूटकर एक तल के सहारे स्थानांतरित हो जाती हैं,
भ्रंशन (Faulting) कहलाता है।
* भ्रंश मुख्यतः दो प्रकार का होता है—(i) सामान्य भ्रंश (Normal Fault) तथा
(ii) उत्क्रम भ्रंश (Reverse Fault)।
* सामान्य भ्रंश का निर्माण तनाव बल के कारण होता है। इसमें दरार के दोनों ओर
के भूखंड एकदुसरे की विपरीत दिशा में खिसकते हैं एवं एक खंड नीचे की ओर गिर
जाता है। इससे भू-पटल में प्रसार होता है।
* उत्क्रम भंश भिंचाव के कारण निर्मित होते हैं। इसमें सतह का फैलाव पहले की
तुलना में घट जाता है। इसे 'आरुढ़ भ्रंश' (Thrust Fault) भी कहा जाता है।
* जब किसी क्षेत्र में एक दूसरे के समानान्तर अनेक भ्रंश होते है एवं सभी
भ्रंश तलों की ढाल एक ही दिशा में होती है, तो इसे सोपानी भ्रंश कहा जाता है।
यूरोप की राइन घाटी सोपानी भ्रंशों पर ही है।
|