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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।



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पृथ्वी की गतियाँ या हलचल

अध्याय का संक्षिप्त परिचय यदि भूतल का विहंगावलोकन किया जाय तो उच्चावच स्थिर तथा अपरिवर्तनशील लगते हैं, परन्तु यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो उनकी परिवर्तनशीलता स्पष्ट हो जाती है। वास्तव में परिवर्तन प्रकृति का नियम है। पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास के अध्ययन से उसके अंदर तथा बाहर महान परिवर्तनों के उदाहरण मिलते हैं। ये परिवर्तन दो तरह के होते हैं-1. दीर्घकालिक तथा 2. आकस्मिक (अल्पकालिक)। दीर्घकालिक परिवर्तन इतनी मन्द गति से होता है कि मनुष्य को उसका आभास नहीं हो पाता है। जैसे-पर्वतों का निर्माण। इसके विपरीत आकस्मिक परिवर्तन कुछ सेकेण्ड या मिनट में ही हो जाते हैं, परिणामस्वरूप मनुष्य उसका आभास शीघ्र पा लेता है। ज्वालामुखी तथा भूकंप इसके प्रमुख उदाहरण हैं। भूतल पर परिवर्तन लाने वाले बलों का आगमन दो स्रोतों से होता है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उत्पन्न होने वाले बल अन्तर्जात बल कहे जाते हैं। इन बलों द्वारा भूतल पर असमानताओं का सूत्रपात होता है। पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होने वाले बल बहिर्जात बल कहे जाते हैं। इन्हें समतल स्थापक बल भी कहते हैं। ये बल पृथ्वी के अन्तर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने में सतत प्रयत्नशील रहते हैं।

अन्तर्जात बल (Endogenetic Force) से पृथ्वी में दो तरह के संचलन (Movements) उत्पन्न होते हैं क्षैतिज संचलन (Horizontal movements) तथा लम्बवत् संचलन (vertical movements)। इन संचलनों द्वारा भूतल पर अनेक विषमताओं का सूत्रपात होता है जिस कारण भूतल पर तरह-तरह के उच्चावचों का निर्माण एवं विकास होता है। अन्तर्जात बलों के उत्पन्न होने की क्रिया तथा कारणों के विषय में हमें कम जानकारी प्राप्त है, क्योंकि इनका सम्बन्ध भूगर्भ से होता है। सामान्य रुप में अन्तर्जात बलों की उत्पत्ति के सम्भावित कारणों में पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापीय विषमता तथा शैलों का सिकुड़ना तथा फैलना ही सत्य के अधिक करीब लगता है। शैलों में संकुचन प्रायः भूगर्भ में तापीय अंतर के कारण चट्टानों में फैलाव तथा संकुचन के कारण उनमें स्थानान्तरण (displacement) तथा समयोजन (Adjustment) कभी-कभी इतनी तीव्र गति से होता है कि पृथ्वी के अन्दर गतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। तीव्रता के आधार पर अन्तर्जात बलों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-1. आकस्मिक तथा 2. पटल विरुपणी संचलन।
यदि अन्तर्जात बल भूतल पर असमानताएँ तथा विषमताएँ उपस्थित करते हैं तो बहिर्जात बल (Exogenetic Force) भूतल पर उत्पन्न इन विषमताओं को दूर करने का प्रयास करते हैं। इस तरह बहिर्जात बल समतल स्थापक बल होते हैं। यदि अन्तर्जात बलों द्वारा भूपटल पर विषमताओं का सृजन अचानक हो जाता है तो बहिर्जात वालों को उन्हें दूर करने के लिए दीर्घकाल तक प्रयास करना पड़ता है। बहिर्जात बलों का भूपटल पर प्रमुख कार्य अनाच्छादन (denudation) होता है। अनाच्छादन के अन्तर्गत अपक्षय तथा अपरदन की सम्मिलित क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। अपक्षय के अन्तर्गत चट्टानों का विघटन (disintegration) तथा वियोजन (decomposition) उसी स्थान पर होता है। इन विखंडित पदार्थों का परिवहन नहीं होता है। अपक्षय के कार्य में ताप, वर्षा का जल, तुषार, वनस्पति, जन्तु तथा मानव का हाथ रहता है। अपरदन के अन्तर्गत चट्टानों के टूटने-फूटने तथा कटने से लेकर उनके परिवहन को सम्मिलित किया जाता है। परिहिमानी, नदी, हिमनदी, पवन, भूमिगत जल तथा सागरीय लहरें अपरदन द्वारा चट्टानों को कुरेद कर उन्हें अपरदित करती रहती हैं। अपरदन से प्राप्त पदार्थों का परिवहन करके उनका यथास्थान निक्षेपण करती रहती हैं। इन क्रियाओं के दौरान विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण, विकास तथा विनाश होता रहता है। 'अपक्षय' तथा 'अपरदन' की क्रियाएँ स्थलरुपों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

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