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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


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भू-सन्नति : पर्वत निर्माणकारी सिद्धांत

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

भूपटल के लगभग समस्त मोड़दार पर्वत चट्टानों से निर्मित हुए हैं, जिनमें जीवों के अवशेष खासतौर पर सागरीय जीवों के अवशेष प्राप्त होते हैं। जिस तरह 'पृथ्वी की उत्पत्ति' तथा महाद्वीप और महासागरों की उत्पत्ति के अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं, उसी प्रकार पर्वत निर्माण के सम्बन्ध में भी अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। पर्वतों की उत्पत्ति में सम्पीड़न शक्ति का पूर्ण हाथ होता है। पर्वतों के निर्माण व दृढ़ भूखण्डों तथा भू-सन्नतियों (Geo-synclines) का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसलिए पर्वत निर्माण की प्रक्रिया को समझने के लिए दृढ़ भूखण्ड व भू-सन्नति को समझना अति आवश्यक है। भूपटल के पर्वतों के वितरण के सम्बन्ध में एक बात विशेष उल्लेखनीय है कि अधिकांश पर्वत महाद्वीपों के किनारे वाले भागों में विद्यमान हैं तथा महाद्वीपीय किनारों के समानान्तर सागर के किनारे स्थित हैं, जैसे-

1. उत्तर तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम किनारे पर प्रशांत महासागर के सामने राकीज और एण्ड्रीज पर्वत।
2. अफ्रीका के उत्तरी पश्चिमी किनारे पर रुम सागर के सामने आल्पस पर्वत।
3. यूरोप के दक्षिणी किनारे पर भूमध्य सागर के सामने अल्पाइन पर्वत इत्यादि।

पर्वतों का निर्माण एक निश्चित समय, निश्चित स्थान और निश्चित प्रक्रिया के अन्तर्गत हुआ है। भूगर्भ-शास्त्रियों ने पर्वत निर्माण के चार अलग-अलग युग निर्धारित किये हैं, जो निम्न हैं-

(i) प्रीकैम्ब्रियन काल
(ii) कैलिडोनियन काल


(iii) हर्नीनियन या वारिस्कनकाल (iv) टर्शियरी काल।

भू-सन्नति या भू-अभिनति (Geo-syncline) लम्बे, सकरे व छिछले सागर होते हैं, जिनमें तलछटीय निक्षेप के साथ धसाव होता है। भू-सन्नतियाँ गतिशील होती हैं। इन्हें पानी के गर्त (water depression) भी कहा गया है। प्राचीन समय में इनकी स्थिति दृढ़-भूखण्डों के मध्य था किनारों पर पायी जाती थी। भू-सन्नतियों की संकल्पना का विकास मोड़कर पर्वतों की व्याख्या के रुप में ही किया जाता है। इस क्षेत्र में हॉल और डाना नामक दो भू-वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम प्रयास किया। लेकिन इसको संकल्पना के रुप में रखने का श्रेय हॉग को जाता है।

हॉल और डाना का मत-हॉल और डाना वैज्ञानिकों का मुख्य उद्देश्य मोड़कर पर्वतों में चट्टानों और पर्वतों की अत्यधिक मोटाई की व्याख्या करना था। अतः ऐसे भाग जो समूह में निरन्तर धंसते रहते हैं तथा जो लम्बे व संकरे हैं, भू-सन्नति कहलाते हैं। जिसका डाना ने 1873 में नामकरण किया जो निम्न प्रकार से उल्लेखित है-

1. रॉकीज भू-सन्नतियाँ
2. यूराल भू-सन्नतियाँ
3. टैथिज भू-सत्रतियाँ
4. परि प्रशांत भू-सन्नतियाँ

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