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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

* जब किसी बाह्य या अंतर्जात कारणों से पृथ्वी के भू-पटल में कम्पन उत्पन्न होता है, तो उसे भूकंप कहा जाता है।
* सामान्य भूकंप के उत्पत्ति स्थान की गहराई 50 किमी0 तक होती है। अधिकांश भूकंप सामान्य प्रकार के होते हैं एवं उनके उत्पत्ति स्थान की गहराई प्रायः 25 किमी0 से भी कम होती है।
* माध्यमिक भूकंप की उत्पत्ति स्थान की गहराई 50 से 250 किमी0 तक होती है। * गहरे भूकंप के उत्पत्ति स्थान की गहराई 250 से 720 किमी0 तक होती है।
* विश्व में प्रतिवर्ष 8000 से भी अधिक भूकंप आते है।
* भूगर्भ में जिस स्थान से भूकंप की घटना प्रारंभ होती है, अर्थात् भूकंपीय तरंगों की उत्पत्ति होती है, वह स्थान भूकंप केन्द्र (seismic Focus) कहलाता है।
* भूकंप केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल का वह स्थान, जहाँ भूकंपीय तरंग सबसे पहले पहुंचती हैं, अधिकेन्द्र (epicentre) कहलाता है।
* समान भूकंपीय तीव्रता अर्थात् समान बर्बादी वाले स्थानों को मिलने वाली रेखा को समभूकंप रेखा (Isoseismal Line) कहा जाता है। इसका आकार प्रायः अनियमित (Irregular) होता है।
* किसी क्षेत्र के उन स्थानों को मिलाने वाली रेखा, जहाँ भूकंप एक साथ अनुभव किया जाता है, सहभूकंप रेखा (Homoseismal Line) कहलाती है।
* भूकंप का अध्ययन 'भूकंप विज्ञान' (seismology) कहलाता है।
* भूकंपीय तरंगों का अंकन करने वाला यंत्र 'सिस्मोग्राफ' (seismograph) कहलाता है।
* मरकेली मापक (mercalli scale) भूकंप की तीव्रता मापने का एक यंत्र है। यह मापक गुणात्मक है, परिमाणात्मक नहीं। यह मापक इन्द्रियों द्वारा प्राप्त अनुभव विनाशकारी प्रभाव आदि के आधार पर विकसित किया गया है।
* वर्तमान समय में भूकंप के मापन हेतु रिक्टर स्केल (Richter Scale) का प्रयोग अधिक किया जाता है।
* रिक्टर स्केल लोगरिथमिक (Logarithmic) स्केल होता है, जिसमें 1 से 9 तक की संख्याएं होती हैं। इसके अन्दर प्रत्येक आगे की संख्या अपनी पीछे वाली संख्या के 10 गुने परिमाण के बताती है। यह स्केल भूकंप की ऊर्जा पर आधारित है।
* अंतः सागरीय (submarine) भूकंपों द्वारा उत्पन्न समुद्री लहरों को सुनामी (Isunamis) कहा जाता है। 1883 ई. में क्राकातोआ ज्वालामुखी के उद्गार के फलस्वरूप समुद्र से 120 फीट ऊंचे सुनामी उत्पन्न हुए थे।
* भ्रंश रेखाओं में उत्पन्न होने वाले भूकंप उन्हीं क्षेत्रों में आते हैं जहां की भूगर्भीय चट्टानें संतुलित नहीं है। ऐसे क्षेत्रों को दुर्बल क्षेत्र कहा जाता है।
* विश्व के सभी नये पर्वतीय क्षेत्र जैसे—हिमालय, आल्पस, रॉकी, एण्डीज आदि दुर्बल क्षेत्र हैं।
* प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धांत (Elastic Rebound theory) का प्रतिपादन अमेरिकी भूगर्भवेत्ता डॉ. एच. एफ. रीड (Dr. H.F. Reid) द्वारा किया गया।
* अधिकांश भूकंपीय क्रियाएं प्लेट सीमांत क्षेत्र (रचनात्मक विनाशात्मक एवं संरक्षक) में होती हैं।
* परि प्रशांत पेटी (circum pacific Belt) विश्व की सबसे विस्तृत भूकंप पेटी है तथा समस्त विश्व का दो तिहाई भूकंप इसी पेटी में आता है।
* परि प्रशांत पेटी, दो प्लेटों के अभिसरण सीमांत पर स्थित है। यह नवीन मोड़दार पर्वतों एवं ज्वालामुखी का क्षेत्र है, जिसके कारण यहां भूकंप अधिक आते हैं।
* मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid continental Belt) भूमध्य सागर से लेकर पूर्वी द्वीप समूह तक फैली हुई है।
* मध्य महाद्वीपीय पेटी नवीन मोड़दार पर्वतों के क्षेत्र में स्थित हैं, जहां मुख्यतः संतुलन मूलक एवं भ्रंशमूलक भूकंप आते हैं।
* भारत का भूकंप क्षेत्र मध्य महाद्वीपीय पेटी क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।
* मध्य अटलांटिक पेटी, मध्य अटलांटिक कटक के सहारे उत्तर में आयरलैंड से लेकर दक्षिण में बोवेट द्वीप तक फैल हुई है।
* पूर्वी अफ्रीका का दरार घाटी क्षेत्र में मुख्यतः भ्रंशमूलक भूकंप आते हैं।
* हिमालय का भूकंप क्षेत्र ज्वालामुखी से रहित है।
* भारत के अधिकांश भीषण भूकंप के अधिकेन्द्र हिमालय क्षेत्र में स्थित हैं। उसका कारण यह है कि हिमालय एक नवीन मोड़दार पर्वत है यह अभी भी ऊपर उठ रहा है। * ज्वालामुखी उद्गार के फलस्वरूप निकलने वाले पदार्थ ठोस, द्रव एवं गैस तीनों ही रुपों में होते हैं।
* ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो गैंसे निकलती हैं उनमें 80 से 90F भाग वाष्प (हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन) का होता है। इसके अलावा अन्य गैसें कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फरडाइऑक्साइड आदि हैं।
* जब लावा जमीन पर गिरने से पहले जमकर गोल, अंडाकार या नाशपातीनुमा आकार ले लेता है, तो उसे ज्वालामुखी बम (Volcanic Bombs) कहा जाता है।
* जब लावा का आकार मटर के दाने या कांच की गोलियों की तरह छोटा होता है, तो उसे लैपिली कहा जाता है।
* लैपिली (Lapilli) से छोटे टुकड़े को स्कोरिया (Scoria) कहा जाता है।
* कुछ शिलाखंड काफी हल्के एवं छिद्रदार होते हैं, जो लावा के झाग से बने होते हैं, इन्हें प्यूमिस (pumice) कहा जाता है।
* सर्वाधिक बारीक कणों में ज्वालामुखी राख या अंगार (cinder) का नाम आता है। * ज्वालामुखी धूल एवं राख, लैपिली आदि के जमा होने से जो चट्टान बनता है, उसे टफ (Taff) कहा जाता है।
* स्कोरिया के संगठित नुकीले चट्टानी टुकड़ों को ब्रेसिया (Bracia) कहा जाता है। * केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी प्रायः संकरी नली या द्रोणी के सहारे एक छिद्र से होता है।
* केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी से लावा भयंकर आवाज के साथ अत्यधिक तीव्रता से बाहर निकलता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी अत्यधिक विनाशकारी होते हैं एवं इनके उद्गार से भयंकर भूकंप भी आते हैं।
* हवाई तुल्य ज्वालामुखी में विस्फोट क्रिया कम होती है एवं उद्गार शांत ढंग से होता है। इसका मुख्य कारण लावा का पतला होना तथा गैस की तीव्रता में कमी होना है।
* स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी में लावा कम पतला हाता है, विस्फोट मामूली होता है एवं गैसे लगातार या रुक-रुक कर निकलती हैं।
* स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी उद्गार भू-मध्य सागर में सिसली द्वीप के उत्तर में स्थित लिपारी द्वीप (Lipari Island) के स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी में पाया जाता है। * वलकेनियन तुल्य ज्वालामुखी में विस्फोट के पश्चात् राख एवं धूल से भरी गैसें, विशाल काले बादलों के रुप में काफी ऊँचाई तक ऊपर उठती हैं एवं फूलगोभी के रुप में दिखाई पड़ती है।
* पीलियन तुल्य ज्वालामुखी में उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर रुप में होता है तथा सर्वाधिक विनाशकारी होता है। पीलियन तुल्य ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा, विखंडित पदार्थ आदि ढाल के सहारे एवलांच (Arolanche) की तरह प्रवाहित होते हैं, जिसे ('Nuees Ardentes') अर्थात् जलता हुआ बादल (Glowing cloud) कहा जाता है।
* सन् 1883 में जावा एवं सुमात्रा के मध्य स्थित सुंडा जलडमरुमध्य में क्राकातोआ ज्वालामुखी का उद्गार हुआ था, जिससे भयानक भूकंप आया एवं समुद्र 120 फीट ऊंची लहरें उठीं।
* विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी का उद्गार विसुवियस में हुआ था, जिसे पहली बार प्लिनी ने रेकार्ड किया था, अतः इसे प्लिनियन प्रहार (plinian Type) का ज्वालामुखी भी कहा जाता है।
* जिन ज्वालामुखियों में लावा, गैस आदि के रूप में विखंडित पदार्थ सदैव निकला करते हैं, उन्हें जाग्रत या सक्रिय ज्वालामुखी कहा जाता है।
* वर्तमान समय में विश्व में जाग्रत ज्वालामुखियों की संख्या लगभग 500 है। जैसे–इटली का एटना, स्ट्राम्बोली, हवाई द्वीप का मोनालोआ आदि।
* स्ट्राम्बोली से सदैव प्रज्जवलित गैसें निकलती रहती हैं। अतः इस ज्वालामुखी को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ (Light House) कहा जाता है। कानपुर 2019
* विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी कोटोपैक्सी है (ऊँचाई 5879 मी0। जो दक्षिण अमेरिका में स्थित है।
* प्रसुप्त ज्वालामुखी वो ज्वालामुखी हैं जो उद्गार के बाद शांत पड़ जाते हैं परन्तु इनमें कभी भी उद्गार हो सकता है। उदाहरण-इटली का विसुवियस, इण्डोनेशिया का क्राकताओ जापान का फ्यूजीकामा आदि।
* सिण्डर शंकु (Cinder or Ash Cone) की ऊँचाई कम तथा ढाल अवतल होता है। * मैक्सिको का जोरल्लो (Jorullo), सान साल्वाडोर का माउंट इजाल्को, फिलीपिंस के लूजोन द्वीप का कैमग्विन आदि सिण्डर शंकु (Cinder Cone) के उदाहरण हैं।
* शील्ड शंकु (Shield Cone) को बेसिक या पैठिक लावा शंकु भी कहा जाता है। * जापान का फ्यूजीनामा ज्वालामुखी शंकु में शंकु (come in cone) ज्वालामुखी का उदाहरण है।
* विश्व के अधिकांश ऊंचे ज्वालामुखी पर्वत मिश्रित शंकु के अन्तर्गत आते है। इटली का विसुवियस, सिसली का एटना, जापान का फ्यूजीयामा, फिलिपींस का मेयन अमेरिका का रेनियार एवं हुड़ मिश्रित शंकु के उदाहरण हैं।

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