भूगोल >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
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भूकंप एवं ज्वालामुखी
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
भूपटल पर परिवर्तन लाने वाली शक्तियों में भूकम्प एक महत्वपूर्ण घटना है।
भूकम्प मानव जगत के लिए हृदयविदारक विनाशकारी घटना है, जिसके प्रभाव से
क्षणमात्र में प्रभावित क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हो जाते हैं। साधारण अर्थ
में भूकंप वह घटना है, जिसके द्वारा भूपटल में हलचल पैदा हो जाती है तथा
कम्पन होने लगती है। भूकम्प की परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की जा सकती है
"जब किसी अज्ञात अथवा ज्ञात वाहय अथवा अन्तर्जात कारणे से पृथ्वी के भूपटल
में तीव्र गति से कम्पन पैदा हो जाती है तो उसे 'भूकंप' कहते हैं। जिस प्रकार
शान्त जल में पत्थर का टुकड़ा फेंकने से गोलाकार लहरें केन्द्र से चारों तरफ
बाहर की ओर प्रवाहित हाती हैं, उसी प्रकार जब कम्पन उत्पन्न होती है तो
उत्पत्ति केन्द्र से लहरें निकलकर बाहर की तरफ चतुर्दिक फैलती है। जैसे जैसे
ये केन्द्र से दूर होती हैं, इनकी शक्ति तथा तीव्रता में ह्रास होता जाता है।
भूकंप का प्रभाव प्रायः दो रुपों में देखा जाता है
1. उत्पत्ति केन्द्र से लहरें चारों तरफ को प्रवाहित होती हैं, जिसका प्रवाह
क्षैतिज होता है।
2. अधिक तीव्रता होने पर धरातलीय भागों में ऊपर तथा नीचे की तरफ लम्बवत् रुप
में धंसाव होने लगता है।
भूकम्प का यह रुप अत्यन्त विनाशकारी होता है। भूकम्प का सर्वप्रथम जहाँ पर
आविर्भाव होता है, उसे 'भूकंप मूल (Focus) कहते हैं तथा जहाँ पर सर्वप्रथम
लहरों का अनुभव होता है उसे 'भूकंप केन्द्र' (epicentre) कहते हैं। भूकम्प का
मूल कारण पृथ्वी की संतुलन अवस्था में अव्यवस्था का होना है। यदि विश्व के
भूकम्प क्षेत्रों पर दृष्टिपात किया जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि भूकम्प
प्रायः कमजोर एवं अव्यवस्थित भूपटल के सहारे पाये जाते हैं।
सामान्य अर्थों में ज्वालामुखी, ज्वालामुखी के प्रकट होने की क्रिया तथा
ज्वालामुखी क्रिया (volcanoes, mechanism of volcano and vulcanicity) समान
क्रियाएँ हैं, परन्तु भूगर्भशास्त्र में इनमें पर्याप्त अन्तर पाया जाता है।
ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र अथवा दरार से होता है जिससे होकर गर्म लावा,
गैस, पत्थर के टुकड़े तथा धूल आदि निकला करते हैं। जबकि ज्वालामुखी का उद्गार
तथा उससे निकलने वाले पदार्थों के बाहर प्रकट होने की प्रक्रिया को
'ज्वालामुखी के प्रकट होने की क्रिया' कहते हैं। ज्वालामुखी का शाब्दिक अर्थ
होता है जिसके मुख से आग की ज्वाला निकलती हो।' ज्वालामुखी के उद्गार के समय
जो पदार्थ निकलते हैं वे प्रायः अत्यधिक ताप के कारण लाल अंगारे जैसे होते
हैं तथा दूर से ये आग की लपट (ज्वाला-flame) की तरह लगते हैं। इसी प्रकार कुछ
ज्वलनशील गैसें (जैसे हाइड्रोजन) होती हैं, जिनके प्रज्जवलित होने पर लपेटें
उठती हैं। वरसेस्टर ने 'ज्वालामुखी क्रिया' (vulcanicity) के लिए 'vulcanism'
शब्द का प्रयोग किया है। इनके अनुसार 'ज्वालामुखी वह क्रिया है, जिसमें गर्म
पदार्थ की धरातल की तरह या धरातल पर आने की सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती
हैं।'
इस प्रकार ज्वालामुखी क्रिया के दो रुप होते हैं-आभ्यान्तरिक अथवा धरातल के
नीचे तथा बाह्य अथवा धरातल के ऊपर। आभ्यान्तरिक क्रिया में मैग्मा आदि धरातल
के नीचे ही जमकर ठोस रुप धारण कर लेता है तथा इनमें प्रमुख हैं-बैथोलिथ,
लैकोलिथ, सिल तथा डाइक। बाह्य क्रिया में गर्म पदार्थ के धरातल पर प्रकट होने
की क्रियायें सम्मिलित होती हैं। इनमें प्रमुख हैं-ज्वालामुखी (volcanoes),
धरातलीय प्रवाह (fissure flows), गर्म जल के सोते (hot springs) गीजर
(geyser) तथा धुंआरे (fumaroles)। इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि
ज्वालामुखी क्रिया एक व्यापक शब्द है, जिसमें अनेक क्रियाएँ तथा अनेक रुप
सम्मिलित हैं। ज्वालामुखी, ज्वालामुखी क्रिया का एक रुप है।
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