भूगोल >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
* 'प्लेट विवर्तनिकी' भूमंडलीय गतिशीलता (Global dynamics) का सिद्धान्त है।
* प्लेट विवर्तनिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम तुजो विल्सन (Tujo Wilson) ने
1965 में किया। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त का सर्वप्रथम प्रतिपादन
डब्ल्यू0जे0 मॉर्गन (W.J. Margan) ने 1967 में किया।
* प्लेट विवर्तनिकी का आधार हेनरी हेस (Henery Hess) के सागरतलीय प्रसार
(Sea-floor spreading) की संकल्पना है।
कानपुर 2019]
* प्लेट विवर्तनिकी, वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संशोधन और
विकसित रूप है।
* मैक्केजी (Makenzie), पारकर (Parker) और मोरगन (Morgan) ने स्वतन्त्र रूप
से उपलब्ध विचारों को समन्वित कर अवधारणा प्रस्तुत की जिसे 'प्लेट
विवर्तनिकी' (Plate techomics) कहा गया।
* प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य
प्लेटों व कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है।
* नवीन वलित पर्वत श्रेणियाँ, खाइयाँ और भ्रंश इन मुख्य प्लेटों को सीमांकित
करते हैं।
* अंटार्कटिक प्लेट, जिसमें अंटार्कटिक से घिरा महासागर भी शामिल है।
* उत्तर अमेरिकी प्लेट, जिसमें पश्चिमी अंध महासागरीय तल सम्मिलित है तथा
दक्षिणी अमेरिकन प्लेट व कैरेबियन द्वीप इसकी सीमा का निर्धारण करते हैं।
* दक्षिणी अमेरिकी प्लेट, पश्चिमी अंटलांटिक तल समेत और उत्तरी अमेरिका प्लेट
व कैरेबियन द्वीप इसे पृथक् करते हैं।
* अफ्रीकी प्लेट, जिसमें पूर्वी अटलांटिक तल शामिल है।
* यूरेशियाई प्लेट, जिसमें पूर्वी अटलांटिक महासागरीय तल सम्मिलित है।
* कोकोस (cocoas) प्लेट, यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका और प्रशान्त महासागरीय
प्लेट के बीच स्थित है।
* नजका प्लेट (Nazca Plate)—यह दक्षिण अमेरिका व प्रशान्त महासागरीय प्लेट के
बीच स्थित है।
* अरेबियन (Arabian) प्लेट—इसमें अधिकतर अरब प्रायद्वीप का भू-भाग सम्मिलित
है।
* फिलीपीन प्लेट (Phillippine plate)—यह एशिया महाद्वीप और प्रशान्त
महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
* फ्यूजी प्लेट (Fuji plate)—यह आस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
* प्रशान्त महासागरीय प्लेट यह प्रशान्त महासागर के चारों ओर विस्तृत है।
* इंडो-आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैण्ड प्लेट—यह प्लेट इंडिया, आस्ट्रेलिया व
न्यूजीलैण्ड में विस्तृत है।
* कैरोलिन प्लेट (Caroline plate)—यह न्यू गिनी के उत्तर में फिलिपियन व
इंडियन प्लेट के बीच स्थित है।
* स्थलीय दृढ़ भूखण्ड को प्लेट कहते हैं।
* प्लेटों के स्वभाव तथा प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी
कहते हैं।
* प्लेट संकल्पना का प्रादुर्भाव दो तथ्यों के आधार पर हुआ है-(i) महाद्वीपीय
प्रवाह की संकल्पना तथा (ii) सागर तली के प्रसार (Sea floor spreading) की
संकल्पना।
* स्थलमण्डल आन्तरिक रूप से दृढ़ प्लेटों का बना है।
* प्लेट के सीमान्त भाग को प्लेट किनारा कहते हैं।
* दो प्लेट के मध्य संचलन मण्डल (Motion Zone) को प्लेट सीमा (boundary) कहते
हैं।
* संरक्षी किनारों के सहारे दो प्लेट एक-दूसरे के बगल से खिसकते हैं जिसके
कारण रूपान्तरण भ्रंश (transform fault) का सृजन होता है तथा प्लेट के
किनारों के धरातलीय क्षेत्र में अन्तर नहीं होता है।
* संरक्षी प्लेट सीमा को शीयर सीमा भी कहते हैं।
* संरक्षी प्लेट सीमा के सहारे न तो प्लेट का क्षय होता है और न ही नयी
क्रस्ट का निर्माण।
* रचनात्मक प्लेट सीमा (constructive plate margins) को अपसारी (Divergent)
या सम्वर्धा (accreting) प्लेट सीमा भी कहते हैं।
* रचनात्मक किनारों के सहारे नये पदार्थों का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया
मध्य महासागरीय फलटक के सहारे सम्पन्न होती है।
* हेस के अनुसार, महाद्वीप तथा महसागर विभिन्न प्लेटों के ऊपर टिके हैं। जब
ये प्लेट प्रवाहित होते हैं तो उनके साथ महाद्वीप तथा महासागरीय तली भी
विस्थापित हो जाती है।
* कार्बोनिफेरस युग से पैंजिया के विभिन्न प्लेटों के स्थानान्तरण तथा प्रवाह
के कारण ही वर्तमान महाद्वीपों तथा महासागरों का रूप प्राप्त हुआ है।
* हैरी हेस (Harry Hess) की संकल्पना सागर भूवैज्ञानिकों (Marine geologists)
तथा भूभौतिकीविदों के प्रारंभिक कार्यों पर आधारित थी।
* सन् 1952 में मैसन ने प्रशान्त महासागर में चुम्बकमापी यंत्र की सहायता से
सागर नितल की शैलों के चुम्बकत्व से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त
की।
* 1963 में वाइन तथा मैथ्यू ने हिन्द महासागर में कार्ल्सबर्ग कटक के
मध्यवर्ती भाग का चुम्बकीय सर्वेक्षण किया तथा सामान्य चुम्बकन की अवधारणा के
आधार पर चुम्बकीय परिच्छेदिका का परिकलन किया।
* पुराचुम्बकीय (Palaeomagnetism) एवं सागर नितल के प्रसरण (Sea-floor
spreading) के प्रमाणों के आधार पर इस तथ्य का सत्यापन होता है कि महाद्वीप
तथा महासागर स्थायी नहीं रहे हैं।
* जब महासागर में विस्तार होता है तो महाद्वीपीय भाग एक-दूसरे से दूर
विस्थापित होते हैं और जब महासागर में संकुचन होने लगता है तो महाद्वीपीय भाग
एक-दूसरे के करीब आने लगते हैं।
* सागर नितल का प्रसरण मण्डल (Zone of sea-floor Spreading) निरन्तर उत्तर
तथा दक्षिण की ओर बढ़ता गया।
* उत्तरी अमेरिका से अफ्रीका के अलगाव के बाद यूरोप तथा ग्रीनलैण्ड लेब्राडोर
से टूट कर अलग हो गया।
* टर्शियरी युग के प्रारम्ब में राकल पठार ग्रीनलैण्ड से टूटकर अलग हो गया।
* मध्य इयोसीन युग तक यूरोप तथा ग्रीनलैण्ड के मध्य उत्तरी अटलांटिक एवं
लेब्राडोर सागर का विस्तार होता रहा।
* मध्य मायोसीन युग में लेब्राडोर सागर का प्रसरण स्थगित हो गया परन्तु
अटलाण्टिक का प्रसरण जारी रहा।
* हिन्द महासागर का अस्तित्व क्रीटैसियस युग के पहले नहीं था।
* मैकेन्जी तथा स्क्लैटर ने चुम्बकीय विसंगति (Magnetic anomoly) के आधार पर
हिन्द महासागर के विकास का विवरण उपस्थित किया।
* पाँच घूर्णन ध्रुवों (Poles of rotation) के साक्ष्य के आधार पर ही
अण्टार्कटिका भारत के बीच गति की व्याख्या की जा सकती है।
* क्राक्स, डोयल, डलरिम्पल के 1964, opdyke (1966) तथा Heritzler (1966) आदि
के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में अध्ययन के बाद यह सत्यापित हो गया था-
(i) पृथ्वी के मुख्य चुम्बकत्व क्षेत्र में उत्क्रमण होता है,
(ii) मध्य महासागरीय फटक के दोनों ओर सामान्य एवं उत्क्रमण चुम्बकीय विसंगति
एकान्तर रूप (Alternate) में पायी जाती है।
(iii) फटक के दोनों ओर चुम्बकीय विसंगतियों में पूर्ण समरूपता पायी जाती है।
(iv) वैसाल्ट शैल या अवसादी शैल के चुम्बकन के आधार पर 4.5 मिलियन वर्षों के
लिए परिकलित पुराचुम्बकीय कल्प एवं घटनाओं के समय अनुक्रमण में सामंजस्य पाया
जाता है।
* मध्य महासागरीय कटक के सहारे नयी बेसाल्ट परत का निर्माण होता है।
* कटक के दोनों ओर धनात्मक एवं ऋणात्मक चुम्बकीय विसंगतियाँ (Positive and
megative magnatic anomalios) पायी जाती हैं जो कि चुम्बकीय क्षेत्र में
सामयिक परिवर्तन का कारण बनती हैं।
* सामान्य भूचुम्बकीय क्षेत्र के समय निर्मित शैलों में धनात्मक चुम्बकीय
विसंगति होगी तथा चुम्बकीय क्षेत्र के उत्क्रमण (reversepolarity) के समय
ऋणात्मक विसंगति होगी।
* सागर नितल के प्रसरण की दर का परिकलन दो आधारों पर किया जाता है-
(i) समकालिक रेखा की आयु. (ii) उनके बीच की दूरी।
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