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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

* पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त 30 Km मोटी जल, वायु, स्थल, मिट्टी तथा शैल युक्त तथा जीवनदायी परत होती है जिसके अन्तर्गत पौधों एवं जन्तुओं का जीवन सम्भव होता है।
* वायुमण्डल में 15 Km की ऊंचाई तक जीवाण्विक सक्रियता (Bacterial Actirrity)का पता चला है।
* जीवमण्डल की निचली सीमा (मृदा का गहराई तथा सागरीय गहराई) आक्सीजन तथा प्रकाश की सुलभता तथा जबाव द्वारा निर्धारित होती है।
* सागरीय भाग में 9 किमी0 की गहराई तक जीवों का पता लगाया गया है। * भूतंत्र के दो प्रमुख घटक होते हैं- जैविक (Biotic) और अजैविक (Abiotic) * अजैविक संघटक भौतिक पर्यावरण का प्रतिनिधित्व करते हैं।
* वायुमण्डल में ओजोन गैस पराबैगनी किरणों (Untra-voilet Rays) को अवशोषित कर लेती हैं।
* सौर्मिक ऊर्जा को हरी पत्ती वाले पौधे प्रकाश संश्लेषण विधि से अन्य ऊर्जा रूपों में परिवर्तित करते हैं।
* जलमण्डल से जीवमण्डल के लिए जलवाष्प (water vapour) तथा जलीय घोल (water solution) प्राप्त होता है।
* मृदा आवरण वायुमण्डल तथा स्थलमण्डल के मध्य आवान्तर मण्डल (Transition Zone) होता है।
* मृदा में लघु जीवों के अलावा खनिज व जैविक पदार्थ (Organic Matter) निहित होते हैं जो जीवों तथा वनस्पतियों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। * मृदा जीवों को आवास देने के साथ-साथ पोषक आहार भी देता है।
* मृदा जीवें में असंख्य सूक्ष्म स्तरीय बैक्टीरिया तथा फंगस (कवक, फंफूद) तथा बड़े एवं दृश्य प्राणी यथा कीट, मकड़, कुटकी, कृमि (Worms), छंछूदर (Moles) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों के ऊतकों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं और इस प्रक्रिया के दौरान ये जैविक पदार्थों का विघटन करते हैं।

* मृदा को जैविक कारखाना या प्रयोगशाला (Biological factory or laboratory) कहते हैं।
* जैविक पदार्थों के अन्तर्गत वनस्पति एवं प्राणियों के अजीवित बायोमास (non-living Biomass) को सम्मिलित करते हैं।
* जब जैविक पदार्थों का वियोजन होता है तो वनस्पतियों एवं प्राणियों की मौलिक संरचना समाप्त हो जाती है तथा ये हरुमस में परिवर्तित हो जाते हैं।
* ह्यरुमस में सामान्य रूप से ह्यरुमिक एसिड की मात्रा 80 से 90 प्रतिशत तक होती है।
* मिट्टी में कार्बन डाई आक्साइड (Co2) का प्रतिशत वायुमण्डल की तुलना में कई सौ गुना अधिक होता है क्योंकि मृदा में जैविक पदार्थों के वियोजन के समय co2 जनित होती है।
* वायुमण्डल की तुलना में मृदा में नाइट्रोजन अधिक होती है।
* मात्र पौधे ही जैविक या कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते हैं।
* अजैविक या भौतिक पर्यावरणीय कारकों में मृदा तथा जलवायु का पौधों की प्रजाति, संरचना एवं वृद्धि पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।
* पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना आहार स्वयं निर्मित करते हैं। इसलिए पौधों को स्वपोषित (Autotrophs) भी कहा जाता है।
* पौधों को प्राथमिक उत्पादक (Primary Producurs) के नाम से भी जाना जाता है।
* कार्यात्मक आधार पर जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तंत्र को दो प्रमुख भागों में विभक्त करते हैंस्वपोषित संघटक (Autorrophic Components) तथा परपोषित संघटक (Heterotrophic Componnets)।
* परपोषित जन्तुओं को 3 प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है— मृतजीवी (Saprophytes), परजीवी (Parasites) तथा प्राणिसमभोजी (Holozonic) * मृतजीवी वे होते हैं जो मृत पौधे तथा जन्तुओं से प्राप्त जैविक या कार्बनिक यौगिकों को घोल रूप में ग्रहण करके अपना जीवन निर्वाह करते हैं।
* प्राणिसमभोजी (Holozonic) वे जन्तु होते हैं जो अपना आहार अपने मुख द्वारा ग्रहण करते हैं। ये जन्तु अवियोजित आहार के बड़े-बड़े भाग तक (जैसे पेड़ों की शाखाएँ) खा जाते हैं, जैसे हाथी, गाय, बैल इत्यादि।
* जीवमण्डलीय पारिस्थितिकीय तंत्र के जन्तुओं एवं सूक्ष्म जीवों को सात क्रमिक वर्गों में विभाजित किया गया है- (1) जन्तु जगत (2) संघ (Phyla) (3) वर्ग (Classes) (4) कोटि (Order) (5) परिवार (Family) (6) वंश (Genera) तथा प्रजाति (Species)।
* प्राथमिक उपभोक्ता शाकाहारी जन्तु होते हैं तथा द्वितीय उपभोक्ता मांशाहारी जन्तु होते हैं, जबकि सर्वाहारी (Omnivorons) के अन्तर्गत मुख्यतः मानव आता है जो शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों होता है।
* वियोजकों (Decomposers) में से अधिकांश जीव सूक्ष्म बैक्टीरिया तथा कवक के रूप में मृदा में रहते हैं।
* आहार श्रृंखला के आधार पर (सबसे नीचे) प्राणी अपेक्षाकृत संख्या में अधिक होते हैं तथा अन्त में (सबसे ऊपर) बहुत कम होते हैं तथा इन दोनों चरण स्थितियों के मध्य (प्राणी संख्या में) प्रगामी कमी होती है।
* संख्या पिरामिड में जीवों की मात्रा संख्या को ध्यान में रखा जाता है, उनके आकार को नहीं।

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