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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

* कोरल प्रायः उष्णकटिबन्धीय महासागरों में पाये जाते हैं तथा चूने पर निर्वाह करते हैं।
* एक स्थान पर असंख्य मूंगे एक साथ समूह में रहते हैं तथा अपने चारों ओर चूने की खोल बनाने लग जाते हैं।
* प्रवाल भित्ति का निर्माण 25°N-25°S अक्षांशों के मध्य किसी द्वीप या तट के सहारे या यथोचित गहराई पर स्थित अन्तः सागरीय चबूतरों पर होता है।
* प्रवाल जल के बाहर जीवित नहीं रह सकता है। अतः प्रवाल भित्ति सदैव या तो सागर तल के नीचे या सागर तल तक ही पायी जाती है।
* उष्णकटिबंधीय महासागरों में प्रवालों की 1,000,000 प्रजातियाँ हैं जिनमें से केवल 10 प्रतिशत प्रजातियों का ही अध्ययन किया जा सका है।
* प्रवालों को सामुद्रिक वर्षावन (Rainforest of the Occeans) कहा जाता है। प्रवाल जन्तु के शरीर के बाहरी तन्तुओं में एक प्रकार की पादप शैवाल रहती है जिसे जुक्सान्थलाई अलगी (Zooxan thallac Algec) कहते हैं।
* जुक्सान्थलाई शैवाल प्रकाश संश्लेषण विधि से भोजन बनाती है।
* शैवाल के निकल जाने के कारण प्रवाल श्वेत रंग के हो जाते हैं। इसे प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) कहते हैं।
* प्रवाल को जीवित रहने के लिए उच्च तापक्रम (20-21°C) की आवश्यकता होती है। कानपुर 2019]
* प्रवाल भित्ति सागरीय जल की 200 फीट से 250 फीट के बीच पाये जाते हैं।
* प्रवाल के विकास के लिए स्वच्छ जल, आक्सीजन तथा सूर्य प्रकाश आवश्यक है।
* अत्यधिक सागरीय लवणता प्रवाल के विकास के लिए हानिकारक होती है।
* प्रवाल के विकास के लिए अन्तः सागरीय चबूतरों की गहराई 50 फैदम (300 फीट) तक होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा गठित IPCC (Inter-governmental Panel on Climate) की एक रपट के अनुसार यदि भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका गया तो आगामी 30 वर्षों में प्रवालों का अस्तित्व ही संदिग्ध हो जायेगा।
* हिन्द महासागर के प्रवालों पर भूमण्डलीय तापमान (Global warming) के कारण सबसे अधिक बुरा प्रभाव पड़ा है। क्योंकि केनिया, मालदीप, लक्षद्वीप तथा अण्डमान के 70 प्रतिशत प्रवाल नष्ट हो गये।
* अध्ययनों से पता चला है कि जब महासागरीय जल का तापमान सामान्य से IPC अधिक हो जाता है तो प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) प्रारम्भ हो जाता है।
* एल निनो (El nino) को भी प्रवाल विरंजन का प्रमुख कारण बताया गया है। 1997-98 में एल निनो का प्रभाव बहुत अधिक हो गया था जिस कारण प्रवालों का विरंजन व्यापक पैमाने पर हुआ था।
* भित्तियाँ यद्यपि स्थलीय भागों में सटी होती है; परन्तु कभी-कभी इनके तथा स्थल भाग के बीच अन्तराल हो जाने के कारण उनमें छोटी लैगून का निर्माण हो जाता है। जिन्हें वोट चैनल (Boat Channel) कहते हैं।
* अवरोधक प्रवाल भित्ति (Barriar Reef) सभी प्रकार की भित्तियों से लम्बी, विस्तृत, चौड़ी तथा ऊँची होती है। इनका ढाल 45° तक होता है।
* विश्व की सर्वप्रमुख अवरोधक प्रवाल भित्ति ग्रेट बैरियर रीफ (Great Bassier Reef) है जो आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के सहारे विकसित हुई है।
* घोड़े के नाल या मुद्रिका के आकार वाली प्रवाल भित्ति को एटॉल (Atoll) कहा जाता है। इसकी उपस्थिति प्रायः द्वीप के चारों ओर अण्डाकार रूप में पायी जाती है।
* प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति से सम्बन्धित सिद्धान्तों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है1. अवतलन सिद्धान्त तथा 2. स्थिर स्थल सिद्धान्त।

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