बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना (पिछड़) को समझाइए।
अथवा
भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सांस्कृतिक विलम्बना या पिछड़
सर्वप्रथम 1923 ई. में संस्कृति और सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिए ऑगबर्न ने अपनी कृति में कहा कि, "संस्कृति का अर्थ मानव द्वारा निर्मित समस्त प्रकार के भौतिक और अभौतिक तत्वों से होता है तथा विलम्बना का अर्थ पीछे रह जाना है।'
अतएव संस्कृति के भौतिक तत्व की तुलना में इसका अभौतिक तत्व पीछे रह जाता है तब संस्कृति में असन्तुलन या फिर असामंजस्य की स्थिति उत्पन्न होती है। उसी असन्तुलन की स्थिति को सांस्कृतिक विलम्बना कहते हैं। समाज में यही स्थिति सामाजिक परिवर्तन का एक मूलभूत सांस्कृतिक कारक होती है।
ऑगबर्न के अनुसार, संस्कृति को दो भागों में विभाजित किया गया। भौतिक संस्कृति और अभौतिक संस्कृति। इन दोनों का मानव जीवन से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध होता है तथा दोनों संस्कृतियों के दायरे में ही मानव अपना सामाजिक जीवन-यापन करता है। अतः जब कभी एक संस्कृति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होता है तो निश्चित तौर पर इसका प्रभाव इसी संस्कृति पर पड़ता है जिसके फलस्वरूप दूसरे में भी कुछ परिवर्तन होता ही है। परिवर्तन एक प्राकृतिक नियम है जिसका प्रभाव संस्कृति पर पड़ता है। ये प्रभाव भौतिक पक्षों पर पहले पड़ता है और अभौतिक पक्षों पर उसके बाद पड़ता है जिसके फलस्वरूप भौतिक संस्कृति पहले तीव्र गति से परिवर्तित होने लगती है और अभौतिक संस्कृति बाद में परिवर्तित होती है जिससे अभौतिक संस्कृति के परिवर्तन की गति धीमी होती है। अतएव भौतिक संस्कृति आगे की ओर बढ़ती जाती है और अभौतिक संस्कृति पीछे रह जाती है ऐसी स्थिति में दोनों संस्कृतियों के बीच असन्तुलन की स्थिति निर्मित हो जाती है और यही स्थिति सांस्कृतिक विलम्बना कहलाती है।
भौतिक और अभौतिक संस्कृति का एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। दोनों एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं तथा सामाजिक जीवन संस्कृति पर आधारित होता है। अतएव एक-दूसरे से पिछड़ जाने पर जो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है वो सामाजिक जीवन में असन्तुलन उत्पन्न करता है। इस स्थिति को दूर करने के लिए अभौतिक संस्कृति को भौतिक संस्कृति तक लाने का पूर्ण प्रयास किया जाता है लेकिन दोनों के बीच सामंजस्य तथा समायोजन होने में बहुत देर लगती है। इसलिए इसे सांस्कृतिक विलम्बना कहते हैं। उदाहरण के स्वरूप आज भौतिक संस्कृति में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। हमारे पास भौतिक सुख के अपार साधन हैं वहीं दूसरी ओर अभौतिक संस्कृति में बड़ी मन्दगति से परिवर्तन हो रहा है। आज भी देखा जाए तो हम परम्पराओं तथा रूढ़ियों पर अटूट विश्वास करते हैं। घर के बाहर जाते हुए छींक हो जाए या खाली घड़ा दिख जाए या फिर बिल्ली रास्ता काट जाए तो भी आज हमारे समाज में शिक्षित एवं प्रगतिशील व्यक्ति इसे अपशगुन या अशुभ मानते हैं। इसी तरह टूटा दर्पण रखने को अशुभ माना जाता है। इस प्रकार हमारी भौतिक और अभौतिक संस्कृति के परिवर्तन की दर में अन्तर है। इस अन्तर या फिर असन्तुलन को सास्कृतिक विलम्बना कहा जाता है।
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