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बी ए - एम ए >> चित्रलेखा

चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- आध्यात्मिक चेतना के विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
आध्यात्मिक चेतना के विकास का उद्देश्य
यह शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य है, यह बात दूसरी है कि आज राज्यों द्वारा संचालित शिक्षा में प्रायः इसके लिए प्राविधान नहीं होता और जिन राज्यों में होता भी है उनमें धर्म विशेष की शिक्षा के रूप में होता है। संसार के अधिकतर लोग मनुष्य को शरीर, मन और आत्मा का योग मानते हैं। उसके शरीर और मन का विकास करना शिक्षा के सर्वप्रथम दो उद्देश्य हैं। इसके साथ वह एक सामाजिक प्राणी भी है अतः उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास की भी बात सभी करते हैं। मनुष्य की कुछ शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक आवश्यकताएँ होती हैं, इनकी पूर्ति के लिए उसके व्यावसायिक विकास की बात भी सब सोचते हैं पर बीच में इस आध्यात्मिक विकास की बात क्यों छोड़ दी जाती है, अपनी, समझ में नहीं आता।
शिक्षा के क्षेत्र में आध्यात्मिक विकास से तात्पर्य मनुष्य को इस पूरे ब्रह्माण्ड की वास्तविकता से परिचित कराना है, उसे अपनी आत्मशक्ति का ज्ञान कराना है, उसे परम सूक्ष्म पर परम शक्तिशाली सत्ता का ज्ञान कराना है। यूँ तो आज राज्य द्वारा संचालित औपचारिक शिक्षा द्वारा प्रत्यक्ष रूप से इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया जाता परन्तु साहित्य, इतिहास, सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा के साथ इस सबका ज्ञान हो ही जाता है। अनौपचारिक शिक्षा में तो इसकी शिक्षा स्वाभाविक से होती है। बुद्ध, महावीर, ईसा, मुहम्मद साहब और गुरु नानक ने हमें आध्यात्मिक ज्ञान ही कराया है।
इसमें दो मत नहीं हैं कि मनुष्य जीवन के तीन पक्ष हैं - प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक और कोई भी व्यक्ति कितनी की भौतिक उन्नति क्यों न कर ले और कितना भी सुधार क्यों न कर ले परन्तु अपने जीवन की कला में वह वास्तविक सुख और शान्ति का अनुभव तब तक नहीं कर सकता जब तक उसका आध्यात्मिक विकास नहीं किया जाता, उसे आत्मा-परमात्मा का ज्ञान नहीं कराया जाता। मनुष्य का यह तीसरा पक्ष (आध्यात्मिक) ही उसके प्रथम दो पक्षों-प्राकृतिक और सामाजिक के विकास के लिए संचा आधार प्रस्तुत करता है। वास्तविकता यह है कि मनुष्य के इन तीनों पक्षों-प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक का विकास एक-दूसरे पर निर्भर करता है, अतः मनुष्य के इस आध्यात्मिक पक्ष का विकास अवश्य होना चाहिए।
इस सब विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शिक्षा का आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य सर्वोच्च उद्देश्य है, इसी की प्राप्ति से हम मनुष्य को मनुष्य बना सकते हैं। परन्तु इसके आगे हमें उसके प्राकृतिक एवं सामाजिक पक्ष को नहीं भूलना चाहिए। शिक्षा अपने कार्य में तभी सफल होगी, जब वह मनुष्य के तीनों पक्षों-प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक का समुचित रूप से विकास करें।

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