बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति का उद्देश्य
संसार में अनेक राष्ट्र हैं और प्रत्येक राष्ट्र में छोटे-बड़े अनेक समाज हैं। इन समाजों एवं राष्ट्रों की कुछ अपनी विशिष्ट आवश्यकताएँ हैं। साथ ही इनकी कुछ आकांक्षाएँ भी होती हैं और ये आवश्कताएँ एवं आकांक्षाएँ सदैव बदलती रहती हैं। उदाहरण के लिए आज हमारे समाज में वर्ग भेद बहुत बढ़ रहा है और हमारी आकांक्षा है कि हमारा समाज वर्गाविहीन समाज बने, हमारा देश एक पिछड़ा देश है और हमारी आकांक्षा इसे विकसित करने की है और इस सबके लिए हम शिक्षा का सहारा ले रहे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति का अर्थ है ऐसी शिक्षा की व्यवस्था करना कि यथा आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति हो। उदाहरणार्थ आज हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या पिछड़ेपन की है, इसके लिए हम वैज्ञानिक प्रवृत्ति के विकास पर बल दे रहे हैं, विज्ञान और तकनीकी के प्रयोग से देश के आधुनिकीकरण पर बल दे रहे हैं। हमारे देश के सामने दूसरी बड़ी चुनौती देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की है, इसके लिए हमने जनसंख्या शिक्षा की व्यवस्था की है। तीसरी बड़ी समस्या साम्प्रदायिकता की है, देश के नेताओं ने साम्प्रदायिकता का शोर मचाकर इसे और अधिक तूल दे दिया है, इसके लिए हम धर्मनिरपेक्षता की शिक्षा की बात कर रहे हैं। सर्वधर्म समभाव की बात कर रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या तो विश्व समस्या है। औद्योगीकरण के चक्कर में हम भी इसके शिकार हो रहे हैं। इस समस्या के समाधान हेतु संसार भर में पर्यावरण शिक्षा की व्यवस्था की जा रही है। हमारे सामने सबसे अधिक गम्भीर समस्या है - अलगाववाद और आतंकवाद की। इस समस्या के समाधान के लिए हम राष्ट्रीय एकता के विकास पर बल दे रहे हैं। यह आज हमारी शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य है। हम जानते हैं कि यह युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है अतः अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की भावना का विकास भी अति आवश्यक है और आज यह भी हमारी शिक्षा का एक उद्देश्य है।
शिक्षा मानव विकास का मूल साधन है। इसके लिए यह आवश्यक है कि यह किसी भी देश अथवा राष्ट्र की तत्कालीन समस्याओं के समाधान और उसकी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति एवं समाज को तैयार करे, यह उसका तत्कालीन उद्देश्य होना आवश्यक है।
परन्तु शिक्षा केवल तत्कालीन समस्याओं के समाधान एवं आकांक्षाओं तक ही सीमित नहीं की जा सकती, उसे मानव जीवन के सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति पर भी ध्यान देना होगा। समस्याओं के समाधान हेतु स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन का निर्माण पहली आवश्यकता है और व्यवसाय एवं उद्योग द्वारा धन उपार्जन दूसरी आवश्यकता है और जब तक मनुष्य का नैतिक एवं चारित्रिक विकास नहीं किया जाता तब तक उसे स्वार्थ की सीमा से नहीं निकाला जा सकता। मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए उसका सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास भी आवश्यक है।
तब कहना न होगा कि समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति शिक्षा का एक अनिवार्य उद्देश्य तो होना चाहिए परन्तु एकमात्र उद्देश्य नहीं। शिक्षा का उद्देश्य तो मानव को समग्र जीवन को तैयार करना होना चाहिए।
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