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बी ए - एम ए >> चित्रलेखा

चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- शासनतन्त्र एवं नागरिकता की शिक्षा के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
शासनतन्त्र एवं नागरिकता की शिक्षा का उद्देश्य
आज संसार के प्रायः सभी देशों में शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य का कर्त्तव्य माना जाता है। तब राज्यों द्वारा अपने शासनतन्त्र एवं तदनुकूल नागरिकता की शिक्षा देना स्वाभाविक है। आज यह शिक्षा का मुख्य उद्देश्य माना जाता है। हम जानते हैं कि संसार में भिन्न-भिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न शासन प्रणालियों हैं - कहीं एकतन्त्र, कहीं लोकतंत्र और कहीं कोई अन्य तन्त्र। इतना ही नहीं अपितु एकतन्त्र भी अनेक प्रकार के हैं और लोकतन्त्र भी अनेक प्रकार के हैं और सभी राष्ट्र अपने राज्य के शासनतन्त्र को उपयुक्तम समझते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में शासनतन्त्र की शिक्षा से तात्पर्य जनता को अपने देश के शासनतन्त्र के गुणों से परिचित कराने से किया जाता है। पर किसी भी शासनतन्त्र के ज्ञान का जब तक कोई अर्थ नहीं जब तक देशवासियों में उसके प्रति आस्था न हो और वे उसके अनुसार व्यवहार न करें। किसी भी देश के शासनतन्त्र में उसकी जनता के अधिकार एवं कर्त्तव्य सुनिश्चित होते हैं। देश की जनता को अपने इन अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान कर आना और उन्हें तदनुकूल आचरण की ओर प्रवृत्त करना ही नागरिकता की शिक्षा है। उदाहरण के लिए एकतन्त्र शासन प्रणाली वाले देशों में जनता को शासक की आज्ञा का पालन करना होता है, उनमें अन्धे राष्ट्र भक्त तैयार किये जाते हैं। जबकि लोकतंत्र में जनता को नियमों के पालन करने के साथ-साथ स्वतन्त्र चिन्तन और स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के अवसर भी दिये जाते हैं, उनमें जागरूक नागरिक तैयार किये जाते हैं। लोकतन्त्र में नागरिक शासन द्वारा निश्चित नियमों का पालन तो करते हैं पर जब इन नियमों से जनता को लाभ नहीं होता तो वे उनमें परिवर्तन करने के लिए आवाज उठाने का अधिकार भी रखते हैं।
तब कहना न होगा कि शासनतन्त्र एवं नागरिकता की शिक्षा, शिक्षा का अनिवार्य उद्देश्य तो होना चाहिए परन्तु उसके द्वारा संकीर्ण राष्ट्रीयता का विकास नहीं करना चाहिए, अपने राष्ट्र के प्रति वफादार होने के साथ-साथ दूसरे राष्ट्रों के प्रति उदार होना भी आवश्यक है। फिर केवल शासनतन्त्र एवं नागरिकता की शिक्षा से किसी व्यक्ति अथवा राष्ट्र का भला नहीं होने वाला। इसके साथ-साथ अन्य उद्देश्यों की प्राप्ति भी आवश्यक है।

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