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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर मूल्यांकन
शिक्षा की उपलब्धि का स्तर उसके मूल्यांकन से ही पता चलता है। आज की प्रणाली इस प्रकार की है कि मौखिक परीक्षण से ही छात्रों की योग्यता को मापा जाता है। परन्तु मौखिक तथा आंशिक लिखित परीक्षा में छात्रों में वांछित शिक्षण लक्ष्यों को मापा नहीं जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से हमारी परम्परागत प्रणाली इसी प्रकार की है
मूल्यांकन के इन दोषों को दूर करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 1958 में सेन्ट्रल एक्जामिनेशन यूनिट की स्थापना की है जिसने मूल्यांकन की नई प्रणाली के विकास पर बल दिया है। इस प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
1. मूल्यांकन एक क्रमिक प्रक्रिया है।
2. शैक्षिक लक्ष्यों तथा मूल्यांकन में घनिष्ठ सम्बन्ध है
3. शिक्षण विधियों तथा अध्ययन की आदतों का पारस्परिक सम्बन्ध है।
4. शैक्षिक उपलब्धि सदा मापन में सहायक होते हैं।
5. मूल्यांकन से वस्तुनिष्ठ विश्वसनीय मूल्यांकन होता है।
कोठारी आयोग ने मूल्यांकन के सन्दर्भ में निम्न सुझाव दिये हैं-
1. कक्षा में 40-50 छात्र होने चाहिये। लोअर प्राइमरी में अधिकतम 50 छात्र होने चाहिये।
2. मूल्यांकन शिक्षा का अभिन्न अंग है इसमें लिखने की परीक्षा में सुधार होना चाहिये तथा विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
3. प्राइमरी स्तर पर बालकों की मूलभूत कौशल, मनोवृत्ति व आदतों का मूल्यांकन किया जाये।
4. कक्षा एक से कक्षा चार तक एक ही इकाई मानी जाये तथा अधिकतम दो इकाई (1-2,3-4) मानी जायें:
5. हायर प्राइमरी स्तर पर लिखित परीक्षाओं के साथ मौखिक परीक्षाओं का आन्तरिक अनुमान होना चाहिये।
6. निदान करने वाले परीक्षण एवं स्कूल रिकार्ड पर विशेष ध्यान दिया जाये।
7. प्राथमिक स्तर के अन्त में मूल्यांकन राष्ट्रीय स्तर पर किया जाये।
8. जिले के शिक्षा अधिकारियों को प्राइमरी स्तर के अन्त में एक सामान्य परीक्षा आयोजित करनी चाहिए जोकि वैध तथा विश्वसनीय हो। परीक्षा के बाद परीक्षाफल के साथ-साथ रिकार्ड भी दिया जाये।
9. छात्रवृत्ति के लिए अलग से परिक्षायें होनी चाहियें।

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