बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- डाल्टन पद्धति की सीमाओं या दोष का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
डाल्टन पद्धति की सीमाएँ या दोष
(Limitations or Demerits of Dalton Method)
डाल्टन पद्धति के दोष निम्नलिखित हैं -
1. डाल्टन पद्धति में बालकों को अधिकतर अपना समस्त कार्य लिखित रूप से करना होता है और इनमें मौखिक कार्य की अपेक्षा की जाती है।
2. इस पद्धति में प्रत्येक विषय की अलग प्रयोगशाला होती है जिससे विषयों की सानुबन्धता का अभाव रहता है तथा विद्यार्थियों को पूर्ण ज्ञान प्रदान करने में समस्या होती है।
3. मन्दबुद्धि बालकों के लिए यह पद्धति उचित नहीं प्रतीत होती क्योंकि वे अन्य बालकों से बहुत पिछड़ जाते हैं और निराश होकर अध्ययन छोड़ देते है।
4. इस पद्धति को सफलतापूर्वक चलाने के लिए अत्यन्त योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता होती है, जिसका नितान्त अभाव है।
5. डाल्टन पद्धति में वैयक्तिक शिक्षण पर अत्यधिक बल दिया जाता है जिसके कारण बालकों में सामूहिक भावना का उचित विकास नहीं होता और वे अत्यधिक स्वार्थी बन जाते हैं।
6. इस पद्धति में शिक्षा सम्बन्धी अनैतिक कार्यों के होने की सम्भावना बहुत अधिक रहती है। कभी-कभी विद्यार्थी अपने कार्य को स्वयं समाप्त न करके दूसरे विद्यार्थियों से करवा लेते हैं अथवा दूसरे विद्यार्थियो की नकल उतार लेते हैं।
7. इस पद्धति में शिक्षण की सफलता सम्पूर्ण विषय के दत्त कार्य के बनाने पर निर्भर करती है। इस दत्त कार्य के बनाने में अनुभव और कुशलता की आवश्यकता होती है।
8. हमारे देश में मातृभाषा या अन्य प्रादेशिक भाषाओं में विभिन्न विषयों की पाठ्य-पुस्तक, सहायक पुस्तक तथा प्रमाणिक पुस्तकों का इतना अधिक अभाव है कि हम कक्षा शिक्षक की पद्धति को अभी पूर्णतः हटा नहीं सकते। यदि हम डाल्टन प्रणाली से पढ़ाते हैं तो प्रत्येक विषय पर देशी भाषा में पुस्तकों का इतना व्यापक संकलन होना चाहिए कि छात्र दत्त कार्य पूरा करने हेतु पुस्तकों के अभाव का अनुभव न करे।
9. प्राथमिक या माध्यमिक कक्षाओं के छात्रों का मानसिक विकास इस सीमा तक नहीं होता है कि वे दत्त कार्य को पाकर आत्मनिर्भरता के साथ सम्पूर्ण कार्य को जिम्मेदारी के साथ कर लें। यदि उन्हें कार्य करने में समय अधिक लगता है या दत्त कार्य करने में पूर्ण सफलता नहीं मिलती, तब वे निरुत्साही एवं निराशापूर्ण हो जाते हैं और विषय के प्रति रुचि और जिज्ञासा खो बैठते हैं। छोटी कक्षाओं के लिए यह विधि पूर्णतः असंतोषजनक है।
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