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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा स्विट्जरलैण्ड इत्यादि देशों में व्यावहारिक रूप से मौलिक अधिकारों को वहाँ के संविधान में कोई उल्लेख नहीं किया गया है, किन्तु भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की विधिवत एवं विस्तृत व्यवस्था की गई है। वास्तव में भारत जैसे देश के संविधान में इस मार्ग का अपनाया जाना स्वाभाविक भी था और अनिवार्य भी। ब्रिटेन, स्विटजरलैण्ड आदि देशों में वैधानिक परम्पराओं और राजनीतिक जागरूकता का उच्च स्तर है यही कारण है कि उन देशों के संविधानों में किसी प्रकार के अधिकारों का उल्लेख न होने पर भी नागरिकों द्वारा लगभग सभी नागरिक स्वतंत्रताओं तथा अधिकारों का उपयोग किया जाता है, जबकि भारत में उक्त दोनों ही बातों का अभाव होने के कारण संविधान में अधिकारों के उल्लेख से किस व्यवहार में अधिकारों के उपयोग की आशा करना व्यर्थ है।
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख का एक अन्य कारण यह भी था कि भारत के नागरिकों ने अंग्रेज शासकों के अत्याचार सहे थे। उन्होंने अपने अधिकारों का हनन देखा था। अतः वे अब यह नहीं चाहते थे कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त भी नागरिकों को उनके अधिकार से वंचित होना पडे। मौलिक अधिकारों को संविधान में उल्लिखित करने के सम्बन्ध में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि - "भारत में इन अधिकारों को विधानमंडलों पर सरकार की इच्छा पर छोड देना उचित नहीं था क्योंकि भारत मे लोकतंत्र पूर्ण रूप से अभी तक पनप नहीं पाया है, इसलिए इन अधिकारों को संविधान में उल्लिखित कर दिया गया।"

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