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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारतीय संविधान के निर्माण में कई देशों के संविधान की कुछ महत्वपूर्ण धाराओं को जो भारतीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुकूल थी सम्मिलित किया गया है। इसी क्रम में भारतीय संविधान में सम्मिलित मौलिक अधिकार, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अन्य आधुनिक संविधानों से अनुप्रेरित हैं, किन्तु भारतीय संविधान का अधिकार पत्र अधिकारों तथा उससे सम्बद्ध व्यवस्था के सम्बन्ध में अन्य देशों के संविधानों के अधिकार पत्रों से अलग एवं कुछ प्रमुख विशेषताओं से युक्त है -
1. व्यापक अधिकार पत्र - भारतीय संविधान के भाग तीन में वर्णित मूल अधिकार, विश्व के अन्य किसी भी संविधान में दिये गये अधिकार पत्र से अधिक विस्तृत एवं व्यापक है। मूल अधिकारों के सम्बन्ध में भारतीय संविधान के कुल 23 अनुच्छेद है जोकि अनुच्छेद 12 से 30 तथा अनुच्छेद 32 से 35 तक वर्णित है। इनमें से तो कुछ अनुच्छेद अत्यधिक व्यापक हैं। जैसेकि अनुच्छेद 17 के मूल रूप में 450 खण्ड थे। तथा अब तक हुए संशोधनों से इसके आकार में और भी अधिक वृद्धि हो चुकी है। इसकी व्यापकता का एक प्रमुख कारण यह है कि प्रत्येक अधिकार के साथ प्रतिबन्धों की भी व्यवस्था की गई है।
2. व्यवहारिकता एवं वास्तविकता पर आधारित भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार काल्पनिक नहीं है वरन् वास्तविक एवं व्यवहारिक भी है। साथ ही सम्पूर्ण समाज के लिए उपयोगी भी है। भारतीय संविधान में सभी व्यक्तियों के लिए समानता के अधिकार को स्वीकार करते हुए पिछड़े एवं दलित वर्गों के विकास के लिए संविधान में विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। शिक्षा एवं संस्कृति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत अल्पसंख्यकों की शिक्षा और भाषा सम्बन्धी हितों की रक्षा का प्रबन्ध किया गया है और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की व्यवस्था इस उद्देश्य से की गई है कि समाज में धार्मिक सहिष्णुता का वातावरण बना रहे।
3. मौलिक अधिकार असीमित एवं निरंकुश नहीं है - भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार असीमित तथा निरंकुश नहीं है। संविधान के अंतर्गत जहाँ एक ओर मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है वहीं दूसरी ओर इन पर प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं।
4. संविधान वर्णित अधिकार ही प्रभावी हैं अगणित या प्राकृतिक नहीं - भारतीय संविधान के भाग तीन में उल्लिखित अधिकारों को ही मान्यता प्राप्त है। संविधान के अंतर्गत अगणित या प्राकृतिक अधिकारों के लिए कोई स्थान नहीं है। तथा सर्वोच्च न्यायालय संविधान में उल्लिखित अधिकारों के अतिरिक्त अन्य अधिकारों को लागू करने की कार्यवाही नहीं कर पाता है।
5. मौलिक अधिकारों के हनन से सुरक्षा की व्यवस्था - भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार भारत में कोई कल्पना या कागजी लेखा जोखा ही नहीं है। इन्हें पूर्ण वैधानिक दर्जा प्राप्त है तथा संविधान ने न्यायालयों को यह निर्देशित किया है कि वे इस बात को सुनिश्चित करे कि नागरिकों को प्रदत्त इन मौलिक अधिकारों का हनन किसी के द्वारा न होने पाये
संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय पर उच्च न्यायालय की शरण ले सकता है और न्यायपालिका, व्यवस्थापिका या कार्यपालिका के ऐसे सभी कानूनों और कार्यों को अवैध घोषित कर सकती है जो मूल अधिकारों को अनुचित रूप से प्रतिबन्धित करते हैं। संविधान के द्वारा अधिकारों की रक्षा के लिए जिस प्रकार के वैधानिक उपचारों की व्यवस्था की गई है वे अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा पर्याप्त प्रभावशाली है।

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