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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक


17
भारतीय संविधान में शिक्षा के लिए अनुबन्ध
(Constitutional Provisions for Education)

प्रश्न- मौलिक अधिकारों का क्या अर्थ है? मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर-
मौलिक अधिकारों का महत्व
सामाजिक जीवन पद्धति में व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों में अधिकारों का एवं कर्त्तव्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। शान्ति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को राज्य के बनाये कानूनों एवं नियमों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए, किन्तु साथ ही राज्य की शक्ति एवं अधिकारों को परिसीमित करना भी आवश्यक है। मौलिक अधिकारों के तात्पर्य को निम्न अर्थों में व्यक्त किया गया है-
1. मौलिक अधिकार व्यक्ति के पूर्ण मौलिक और मानसिक विकास के लिए अपरिहार्य हैं। इनके अभाव में व्यक्ति का यथोचित विकास नहीं हो सकता है। ये वे न्यूतनम अधिकार हैं जो किसी भी लोकतान्त्रिक शासन पद्धति में व्यक्ति को प्राप्त होने चाहिए।
2. इन्हें मौलिक अधिकार इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इनका उल्लेख देश की मौलिक विधि संविधान में किया गया है।
3. मौलिक अधिकार अनुल्लेखनीय हैं, अर्थात् व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा इनका अतिक्रमण या उल्लघन नहीं किया जा सकता है।
प्रो० लास्की के अनुसार - "अधिकार राज्य की आधारशिला है। ये वे गुण हैं जो राज्य द्वारा शक्ति के प्रयोग को नैतिक रूप देते हैं और वे प्राकृतिक अधिकार इस अर्थ में हैं कि अच्छे जीवन के लिए उनका अस्तित्व आवश्यक है।' इस प्रकार मूल अधिकार नागरिकों के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास तथा राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक हैं।
भारतीय संविधान में लिखित मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ - भारतीय संविधान में लिखित मौलिक अधिकार की व्यवस्था की कुछ निम्नलिखित विशेषताएँ हैं.
1. विस्तृत अधिकार पत्र है - भारतीय संविधान के पूरे एक भाग अर्थात् भाग 3 के पूरे हिस्से में मौलिक अधिकारों का विस्तृत विवेचन किया गया है। अनुच्छेद 12 से 30 तथा अनुच्छेद 32 से 35 कुल 22 अनुच्छेदों में मौलिक अधिकारों की व्याख्या की गई है।
2. मूल अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं - मूल अधिकार निरपेक्ष नहीं है अर्थात् उन पर प्रतिबन्ध भी लगाए जा सकते हैं। जैसे-
(i) संसद सशस्त्र दल या पुलिस के सन्दर्भ में मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन को कर सकती है ताकि वे अपने कर्तव्यों का सम्यक रूप से पालन कर सके।
(ii) सामान्यतः मौलिक अधिकारों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, सदाचार आदि के अधीन रखा गया है।
3. कुछ मौलिक अधिकार केवल नागरिकों के लिए हैं - मौलिक अधिकारों की व्याख्या में संविधान में कहीं पर व्यक्ति तथा कहीं पर नागरिक शब्द का प्रयोग किया गया है। निम्न मौलिक अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्राप्त है -
(अ) अनुच्छेद 15 के तहत धर्म देश जाति लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर विभेद।
(ब) अनुच्छेद 16 के तहत सार्वजनिक नौकरियों में अवसर की समानता।
(स) अनुच्छेद 29 व 30 के तहत अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक अधिकार।
4. मौलिक अधिकार व्यावहारिकता पर आधारित है - भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार मात्र आदर्श लक्ष्य या विचार ही नहीं है अपितु ये वास्तविकता एवं व्यावहारिकता पर भी आधारित हैं और सम्पूर्ण समाज मानवता एवं सभ्यता के लिए आवश्यक है मौलिक अधिकार लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली की सफलता के लिए अपरिहार्य भी है।
5. मूल अधिकारों के हनन पर न्यायालय का आश्रय है - संविधान के द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के हनन होने की स्थिति पर न्यायालय की शरण या आश्रय लिया जा सकता है। संविधान की धारा 132 के अनुसार “प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपने अधिकारों के हनन होने पर वह उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है।"

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