बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक अभिकरणों के सापेक्षिक सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक अभिकरणों में सन्तुलन
बच्चे के विकास में शिक्षा के औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक तीनों प्रकार के अभिकरणों का बड़ा हाथ रहता है। यदि विचार करके देखें तो हमें यह पता चलेगा कि बच्चों की शिक्षा उनके अपने घर से प्रारम्भ होती है। घर, पड़ोस और अन्य सामाजिक समूहों का उनके विकास पर कितना प्रभाव पड़ता है, इसकी चर्चा हमने आगे के अध्यायों में की है। यहाँ हम इतना ही लिखना पर्याप्त समझते हैं कि शिक्षा की ये संस्थाएँ बच्चे की शिक्षा में बड़ा महत्व रखती हैं और शिक्षा के औपचारिक अभिकरणों के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को होता है। शिक्षा के क्षेत्र में इनके महत्व को स्वीकार करना ही चाहिए।
दूसरी ओर आज हमारा सामाजिक विकास एक जटिल स्थिति को प्राप्त हो चुका है। हमने प्रायः सभी क्षेत्रों में आशातीत उन्नति की है। इन सबके समझने के लिए हमें व्यवस्था शिक्षा की आवश्यकता होती है। व्यवस्थित शिक्षा का प्रबन्ध औपचारिक, अभिकरणों और विशेषकर विद्यालयों में ही किया जाता है। विद्यालयों को बच्चों को अपनी रुचि, रुझान एवं आवश्यकताओं के अनुसार विकास करने के समान अवसर देने चाहिए।
लाख प्रयत्न करने के बाद भी कुछ लोग औपचारिक शिक्षा का लाभ नहीं उठा पाते। आज ऐसे लोगों को साक्षर बनाने और उन्हें अपने-अपने कार्यक्षेत्र में दक्ष करने के लिए प्रत्येक देश में निरौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।
परन्तु औपचारिक तथा निरौपचारिक अभिकरण अपने कार्यों में तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक उन्हें शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों का सहयोग प्राप्त नहीं होता। घर और विद्यालयों की मान्यताएँ समान होनी चाहिए भिन्न मान्यताओं के बीच बच्चे उचित निर्णय लेने में असमर्थ रहते हैं। बहुत सम्भव है कि वे दो विरोधी विचारधाराओं में से किसी को भी पूर्ण रूप से ग्रहण न करें। विद्यालयों में किये जाने वाले कार्यों की यदि घर और समुदायों में आवृत्ति नही होती तो बच्चों में अच्छी आदतें और उचित स्थायी भावों का निर्माण नहीं किया जा सकता। आज के युग में औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक तीनों प्रकार के अभिकरणों का अपना-अपना महत्व है। तीनों की सफलता एक-दूसरे पर निर्भर करती है। उन्हें आपस में सहयोग के साथ कार्य करना चाहिए। यदि औपचारिक निरौपचारिक और अनौपचारिक अभिकरण एक-दूसरे का सहयोग करेंगे तो हमारी शिक्षा व्यवस्था निश्चित रूप से बड़ी प्रभावशाली एवं फलदायक होगी। हमें इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए।
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