बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- ब्राउन ने शिक्षा के अभिकरणों को कितने भागों में बाँटा है? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ब्राउन का शिक्षा के अभिकरणों का वर्गीकरण
(Brown's Classification of Agencies of Education)
ब्राउन महोदय ने शिक्षा के समस्त अभिकरणों को चार वर्गों में विभाजित किया है - औपचारिक, अनौपचारिक, व्यावसायिक और अव्यावसायिक।
शिक्षा के औपचारिक अभिकरण ब्राउन महोदय के अनुसार इस वर्ग में अभिकरण आते हैं जिनका निर्माण कोई समाज बच्चों के ज्ञानवर्द्धन और व्यवहार को प्रभावित करने की दृष्टि से ही करता है जैसे - विद्यालय, पुस्तकालय, वाचनालय, संग्रहालय, आर्ट गैलरी और धार्मिक संस्थाएँ।
शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण -ब्राउन महोदय के अनुसार इस वर्ग में वे अभिकरण आते हैं जिनका निर्माण कोई समाज बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से शिक्षा देने के लिए नहीं करता, पर वे किसी न किसी रूप में बच्चों को प्रभावित करते हैं, जैसे- परिवार, खेल समूह और समाज और राज्य।
शिक्षा के व्यावसायिक अभिकरण - ब्राउन महोदय ने इस वर्ग में उन साधनों को रखा है। जिनका निर्माण व्यावसायिक दृष्टि से किया जाता है पर वे हमारी शिक्षा के लिए भी प्रयोग किये जाते हैं जैसे - समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविजन, नृत्यगृह, नाट्यशाला और चलचित्र। उनके अनुसार ये ऐसे साधन हैं जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में हमारे ज्ञान में वृद्धि करते हैं और आचरण को प्रभावित करते हैं। समाचार पत्र और पत्रिकाओं में हमें जो कुछ पढ़ते हैं, रेडियो पर जो कुछ सुनते हैं और टेलीविजन, नृत्यगृह, नाट्यशाला और चलचित्र पर जो कुछ सुनते और देखते हैं, उन सबसे हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है और हमारा आचरण प्रभावित होता है।
आज इन सब साधनों का प्रयोग नियोजित शिक्षा के क्षेत्र में भी किया जाता है। समाज की आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति के साधनों पर प्रचार आज प्रायः इन्हीं साधनों के माध्यम से किया जाता है। आज रेडियो, टेलीविजन और चलचित्रों के द्वारा देश-विदेश के समाचार और विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रसारण ही नहीं होता अपितु भाषा, इतिहास, भूगोल, विज्ञान और अन्यान्य विषयों की शिक्षा कक्षाओं के लिए विभिन्न विषयों में पाठ शिक्षण का प्रसारण होता है। इससे न केवल विद्यार्थी ही सीखते हैं अपितु अध्यापक भी पाठ शिक्षण की नई-नई विधियों से परिचित होते हैं। हमारी केन्द्रीय और प्रान्तीय सभी सरकारें शैक्षिक चित्र बनाने के लिए भी प्रयत्नशील हैं। इन चित्रों के माध्यम से हम शिक्षा भी देने लगे हैं।
शिक्षा के अव्यावसायिक अभिकरण - इस वर्ग के अन्तर्गत ब्राउन महोदय ने उन अभिकरणों को रखा है जिनका निर्माण समाज की सेवा के लिए किया जाता है और जिनका न तो व्यावसायिक दृष्टि से निर्माण किया जाता है और न ही उनका प्रयोग किसी व्यावसायिक कार्य के लिए किया जाता है। इस वर्ग में उन्होंने खेल, संघ, समाज कल्याण केन्द्र, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, युवक कल्याण संगठन, स्काउट संस्था आदि को रखा है। ये सभी अभिकरण बच्चे का समाजीकरण करने में बड़ी सहायता करते हैं। इनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने वाले समाज सेवा का सच्चा पाठ पढते हैं और उनके कार्यों से अन्य लोग भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों रूपों में सामाजिक आचरण की शिक्षा प्राप्त करते हैं।
एक स्पष्टीकरण - ब्राउन महोदय ने भी शिक्षा के अभिकरणों और शिक्षा के साधनों में भेद नहीं किया है। यूँ तो अनेक विद्वान आज भी ब्राउन के उपर्युक्त वर्गीकरण से सहमत हैं और अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में इन्हें स्थान भी मिला हुआ है लेकिन हमारी दृष्टि से यह एक भूल है। शिक्षा जगत के विद्वानों को इस भूल का सुधार कर लेना चाहिए।
उपसंहार - शिक्षा के अभिकरणों के उपर्युक्त तीनों वर्गीकरणों के पीछे न तो कोई ठोस आधार है और न ही उसके अनुसार यथा अभिकरणों के बीच कोई तार्किक सीमा नहीं है। ब्राउन द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण तो बड़ा भ्रामक है। उन्होंने तो शिक्षण साधनों को भी शिक्षा के अभिकरण मान लिया है। हमें सावधानी से काम लेना चाहिए। आज हमें शिक्षाशास्त्र का विकास केवल पाश्चात्य शिक्षा साहित्य के आधार पर ही नहीं करना चाहिए, अपितु अपने भारतीय साहित्य और अपने अनुभवों को भी उसका आधार बनाना चाहिए। यदि हम अपनी बुद्धि से काम लें तो इस प्रकार की अनेक भूलों का सुधार सम्भव है।
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