बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
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सामाजिक एकता
(Social Cohesion)
प्रश्न- सामाजिक तथ्य क्या है? इसी के साथ ही सामाजिक एकता की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक तथ्य
कॉम्टे जो कि समाजशास्त्र के जनक थे उनके उत्तराधिकारी माने जाने वाले फ्रांसीसी विद्वान दुर्खीम ने समाजशास्त्र को वैज्ञानिक धरातल पर दृढ़ करने में विशेष भूमिका निभाई। उनके अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु सामाजिक तथ्य हैं जिनका अध्ययन आनुभाविक रूप से किया जाता है। प्रत्येक समाज में घटनाओं का एक विशिष्ट समूह होता है जो कि उन तथ्यों से भिन्न होता है जिसका अध्ययन प्राकृतिक विज्ञान करते हैं। सामाजिक तथ्यों की श्रेणी में कार्य करने, सोचने, अनुभव करने के वे तरीके आते हैं जो व्यक्तिगत चेतना से बाहर अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उल्लेखनीय हैं।
सामाजिक एकता - सामाजिक एकता से तात्पर्य समाज की विभिन्न इकाइयों में सामजस्य से है अर्थात् यह एक ऐसी परिस्थिति है जिसमें समाज की विभिन्न इकाइयाँ अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका को निभाती हैं और निभाती हुई सम्पूर्ण समाज में संतुलन बनाए रखती हैं उनके अनुसार सामाजिक एकता पूर्ण रूप से एक नैतिक घटना है क्योंकि इसी के द्वारा पारस्परिक सहयोग तथा सद्भावना को बढ़ावा मिलता है। इसके अनुसार दुर्खीम ने सामाजिक एकता को दो श्रेणियों के अन्तर्गत रखा है
(1) यांत्रिक एकता, (2) सावयवी एकता।
(1) यांत्रिक एकता यह आदिम समाजों में या फिर सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से पिछड़े हुए समाजों में पायी जाती है। इसमें विभेदीकरण अर्थात् कार्यों का वितरण न के बराबर होता है तथा केवल लिंग और आयु के आधार पर ही कार्यों में विभेदीकरण पाया जाता है। सामूहिक चेतना को बनाए रखना देखा जाए तो सभी व्यक्ति अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि सामाजिक एकता वह एकता हैं जो कि व्यक्तियों द्वारा एक जैसे कार्यों के कारण आती है। अर्थात जो समरूपता का परिणाम है यह एक सरल प्रकार की एकता है जो कि दमनकारी कानून द्वारा बनाए रखी जाती है।
(2) सावयवी एकता - यह असमानताओं से विकसित होती है। इसका प्रमुख आधार होता है श्रम-विभाजन। यह एकता आधुनिक समाज की प्रमुख विशेषता मानी जाती है। इसी के आधार पर दुर्खीम का कहना है कि जैसे-जैसे समाज की जनसंख्या का घनत्व व आयतन बढ़ता है वैसे ही व्यक्तियों की उनकी आवश्यकता में भी बढ़ोत्तरी होती जाती है। उनकी इसी बढ़ती हुई आवश्यकताओं के कारण ही व्यक्तियों के द्वारा किए गए कार्यों में भिन्नता आती है तथा इसी के साथ ही साथ इनमें विशेषीकरण बढ़ता है। अर्थात् श्रम के विभाजन की वृद्धि होती है। उस एकता को जो कि कार्यों की भिन्नता द्वारा विशेषीकरण और इसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों की अन्योन्याश्रितता के कारण आती है।
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