हिन्दी साहित्य >> गद्य संचयन गद्य संचयनडी पी सिंहराहुल शुक्ल
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बी.ए.-III, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
ललित निबन्ध
विद्वानों ने ऐसे निबन्धों को ललित निबन्ध की संज्ञा दी है जिनमें मानव,
प्रकृति से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न विषय, व्यक्तिगत चिन्तन एवं स्वतन्त्र
संवेदनाओं, अनुभूतियों को रोचक एवं ललित शैली में उल्लेखित किया गया हो |
उपर्युक्त समस्त गुणों विशेषताओं के कारण निबन्ध में एक विशेष प्रकार का आकर्षण
एवं लालित्य उत्पन्न हो जाने के कारण ही ललित निबन्ध कहलाता है। उपर्युक्त
विवरण केवल इस दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है कि विश्व साहित्य में निबन्ध
विधा के उद्भव और विकास की कुछ पृष्ठभूमि ज्ञात हो सके। 'पर्सनल एसे' जिसे
हिन्दी में 'ललित निबन्ध' के नाम से जाना जाता है। उपर्युक्त वर्गीकरण में
भावात्मक निबन्ध की कोटि में रखा गया है। सही अर्थों में इस विधा का विकास
हिन्दी में शुक्ल युग में हुआ यह कहना अनुचित नहीं होगा| शुक्ल जी ने तो
विचारात्मक निबन्ध अधिक लिखे किन्तु उनके युग के अन्य निबन्धकार ललित निबन्ध की
परिभाषा को स्पर्श करने वाले निबन्ध अच्छी मात्रा में लिखने लगे। इस विधा के
लेखकों में शुक्ल के पश्चात इस काल के दूसरे प्रतिष्ठित एवं प्रखर निबन्धकार
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी थे। मूलतः ललित निबन्ध के प्रणेता आचार्य हजारी
प्रसाद द्विवेदी ही हैं। उनके ललित निबन्धों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में उत्कट
जिजीविषा, नवीन जीवन बोध, सामाजिक विखण्डन के मध्य श्रेष्ठ एवं साहसिक पथ की
चाहत हर तरफ दृष्टिगोचर होती है। द्विवेदी जी ने संस्कृति की गत्यामकता में
नवीनता मिश्रित करके विगत को छोड़ने का प्रयास किया है जिसके कारण उनके ललित
निबन्धों में एक तीक्ष्ण धार उत्पन्न हो गई है जो पाठक के अन्तःकरण तक प्रवेश
कर जाती है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के ललित निबन्धों में सामूहिकता, इहलौकिकता,
व्यक्तिता एवं जिजीविषा मूल धर्म के रूप में परिलक्षित हुई है, जिसका कारण
संघर्ष है |
परिणामस्वरूप जीवनोन्मुखता और भी प्रखर हो उठी है। विशेषतः 'अशोक के फूल', -
'वसंत आ गया', 'शिरीष के फूल', 'आलोक पर्व', 'विचार प्रवाह', 'विचार और वितर्क'
एवं 'कुटज' आदि इनके श्रेष्ठ ललित निबन्ध संग्रह है जिनकी रचना प्रक्रिया में
सहजता एवं पाण्डित्य का खिंचाव, गुंफित पद रचना, लयात्मक भाषा, वस्तुओं का
बिम्बात्मक ' चित्रण आदि इस भाँति रच-बस गए हैं कि निबन्धों को व्यापक स्थाई
धरातल मिल गया है। ललित निबन्धों के अलावा आचार्य द्विवेदी ने समीक्षात्मक एवं
शोधपरक निबन्धों की भी रचना की है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के पश्चात् बहुत से अन्य प्रतिष्ठित लेखकों ने
श्रेष्ठ ललित निबन्धों की रचना की है, जिनमें- 'कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर'
(जिन्दगी मुस्काई, शंख बजे, दीप जले, जिन्दगी लहलहाई), रामनारायण उपाध्याय
(जनम-जनम के फेरे), रामदरश मिश्र (कितने बजे हैं), डॉ0 विजयेन्द्र स्नातक
(अनुभूति के क्षण), विवेकी राय (नया गाँव नामा), रतन लाल शर्मा (छोटी-छोटी
बातें), डॉ० श्यामसुन्दर दास (सौन्दर्य और साँप), डॉ0 शिवप्रसाद सिंह (शिखरों
का सेतु), डॉ० धर्मवीर भारती (ठेले पर हिमालय, पश्यन्ती), रामवृक्ष बेनीपुरी
(गेहूँ बनाम गुलाब), देवेन्द्र सत्यार्थी (धरती गाती है, एक युग एक प्रतीक,
रेखायें बेल उठीं), यशपाल (चक्कर क्लब, बात-बात में बात, गाँधीवाद की शव
परीक्षा, देखा-सोचा-समझा), सियारामशरण गुप्त (झूठासच), जयशंकर प्रसाद (काव्य,
कला और अन्य निबन्ध), निराला (प्रबन्ध पद्म, प्रबन्ध प्रतीक्षा, चाबुक),
धीरेन्द्र वर्मा (विचारधारा), पदुम लाल पुन्नालाल बख्शी (पंच पात्र, मकरन्द
बिन्दु, प्रबन्ध परिजात, त्रिवेणी, कुछ और कुछ, वासुदेवशरण अग्रवाल (कला और
संस्कृति, पृथ्वीपुत्र) आदि प्रमुख हैं।
ललित निबन्ध एक सशक्त व गरिष्ठ विधा है | चूँकि ललित निबन्धों में ज्ञान,
विद्वता, लेखन कौशल के साथ भाव प्रवणता एवं कल्पनाशीलता पर्याप्त मात्रा में
होती है इसलिए प्रत्येक निबन्ध लेखक-ललित निबन्ध लेखक हो, आवश्यक नहीं है
क्योंकि इसके लिए उसका उपर्युक्त गुणों से परिपूर्ण होना आते आवश्यक है। अन्य
ललित निबन्ध की महती सेवा करने वाले एवं ललित निबन्धों को एक नवीन क्षितिज,
उचित दिशा एवं विशिष्ट मार्ग प्रशस्त करने वालों में डॉ0 विद्यानिवास मिश्र,
प्रभाकर माचवे, डॉ0 शिवप्रसाद सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह एवं कुबेरनाथ राय (मराल,
प्रिया नीलकण्ठी, रस आखेटक, गन्धमादन, निषाद बासुरी, पर्णमुकुट, विषाद योग,
दृष्टि अभिसार) के नाम अग्रणीय हैं। इन्होंने इस विधा पर उल्लेखनीय कार्य किया
है।
विशेषतः डॉ0 विद्यानिवास मिश्र द्वारा रचित निम्न ललित निबन्ध संग्रह अमूल्य
साहित्य धरोहर हैं- 'तुम चन्दन हम पानी, छितवन की छाँह, आँगन का पंछी, बनजारा
मन, वसन्त आ गया पर कोई उत्कण्ठा नहीं, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है । कँटीले
तारों के आर-पार, कौन तू फूलवा बीननि हारी, लागौं रंग हरी, भ्रमरानन्द के पत्र,
अंगद की नियति, शेफाली झर रही है और कदम्ब की फूली डाल |
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