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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- शिक्षा के व्यावसायीकरण से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।

अथवा

माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर-

शिक्षा का व्यवसायीकरण
(Vocationalisation of Education)

किसी भी देश की तरक्की व खुशहाली उसकी शिक्षा पद्धति पर निर्भर करती है। यही कारण है कि दुनिया के प्रत्येक राष्ट्र का प्रथम प्रयास होता है कि उसके देश की शिक्षा श्रेष्ठ हो। इस विचारधारा में भारत कोई अपवाद नहीं है। भारत देश के लिए समुचित शिक्षा आज सभी की मुख्य इच्छा है। ऐसा नहीं है कि समुचित शिक्षा भारतीयों की केवल इच्छा मात्र है, अपितु इसे प्राप्त करने के लिए भरसक व हर संभव प्रयास किए गए हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् तो येप्रयास अति तीव्रगामी हो गए थे। जैसे ही देश स्वतन्त्र हुआ था, भारतीय नेताओं तथा मनीषियों ने शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का भरपूर प्रयास किया। स्वतन्त्रता से पहले भी शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के प्रयास अंग्रेजी सरकार द्वारा किए गए थे, परन्तु वे केवल स्वार्थ के वशीभूत थे। अंग्रेजी सरकार शिक्षा के माध्यम से केवल सस्ते लिपिक तैयार करने तक सोचती थी। महात्मा गाँधी की आधारभूत शिक्षा प्रणाली शिक्षा के व्यवसायीकरण की ओर लक्ष्य करती थी। इसका मुख्य उद्देश्य उस शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना था जो शिल्प पर आधारित हो। इसलिए शिक्षा में बुनना, सिलाई-कढ़ाई तथा कृषि को सम्मिलित किया गया। सम्पूर्ण शिक्षा शिल्प पर केन्द्रित होती थी। इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थियों को शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ जीवनयापन में सहायक होती थीं। परन्तु ऐसे विद्यार्थियों में वास्तविक अधिगम अपेक्षाकृत कम होता गया। इसका परिणाम यह निकला कि मूलभूत शिक्षा अथवा महत्व खोती गई। यही कारण था कि आज के तीव्रगति से बदलते युग में शिक्षा के व्यवसायीकरण को नए तरीकों से सोचा गया। इस नई सोच के अनुसार शिक्षा में व्यवसायीकरण माध्यमिक स्तर पर ही लागू किया जाना था। भारत में उन विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा है जो माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के बाद या बीच में ही पढ़ना छोड़ देते हैं। ऐसे में यदि माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक विषयों को पढ़ाया जाता तो वे विद्यार्थी जो माध्यमिक स्तर पर या इसके बाद पढ़ना छोड़ देते हैं तो वे कम से कम अपनी आजीविका कमाने में तो समर्थ हो सकते हैं।
माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण को लेकर भारत सरकार ने कई आयोगों का गठन ही नहीं किया अपितु उनकी सलाहों पर कार्य भी किया। परन्तु फिर भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ। ऐसा क्यों? इस प्रश्न का उत्तर 'कोठारी कमीशन 1964-66 द्वारा दिए गए वक्तव्य से स्वयं ही प्राप्त हो जाता है। आयोग का कथन है कि, "बार-बार सलाह देने के पश्चात् भी दुर्भाग्य की बात यह है कि विद्यालय स्तर पर व्यवसायिक शिक्षा को एक घटिया किस्म की शिक्षा समझा जाता है और अभिभावक तथा विद्यार्थियों का सबसे आखिरी चुनाव होता है।'
व्यवसायीकरण का अर्थ - व्यवसायीकरण का सामान्य शब्दों में अर्थ होता है कि किसी व्यवसायिक में प्रशिक्षण अर्थात् विद्यार्थी को कोई एक व्यवसाय सिखाना ताकि वह अपना जीवनयापन सुगमता से कर सके। विस्तार से यदि व्यवसायीकरण को देखें-समझें तो इसका अर्थ होता है - शिक्षा के साथ-साथ उन कोर्सों की भी व्यवस्था की जाए जो छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ किसी व्यवसाय में भी कुशल व्यक्ति बनाए। कोठारी कमीशन ने व्यवसायीकरण के व्यापक स्वरूप को लेकर जो विचार प्रस्तुत किए हैं उनके अनुसार व्यवसायीकरण का अर्थ है, "हम यह देखते हैं कि भविष्य की विद्यालयी शिक्षा का स्थान साधारण शिक्षा व तकनीकी शिक्षा के लाभप्रद संयोग में है, जिसमें पूर्व तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के कुछ हिस्से शामिल हैं और परिणामस्वरूप सामान्य शिक्षा का तत्व आ जाता है। हम जिस प्रकार के समाज में रह रहे हैं उसमें इन दोनों की शिक्षा को अलग-अलग करना अनुचित ही नहीं वरन् असम्भव होगा।' शिक्षा में व्यवसायीकरण का अर्थ उस शिक्षा से है जो विद्यार्थी को किसी व्यवसाय में निपुण व समर्थ बनाती है। परन्तु माध्यमिक स्तर पर व्यवायीकरण का अर्थ भिन्न-भिन्न लोगों ने भिन्न- प्रकार से लिया है। कुछ लोग इसे किसी व्यवसाय विशेष में प्रशिक्षण देने से लेते हैं। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य किसी विशेष पाठ्यक्रम के सुखान्त पर कोई काम शुरू करने के लिए किसी व्यापार कला, कौशल या किसी व्यवसाय आदि का सीखना है। परन्तु दूसरे समूह के लोग माध्यमिक शिक्षा में व्यवसायीकरण का अर्थ व्यवसायिक प्रशिक्षण से समझते हैं। परन्तु यह दृष्टिकोण अति संकीर्ण एक निश्चित व्यवसायिक कार्यक्रम से जुड़े होंगे, क्योंकि ये विद्यालय मात्र व्यवसायिक विद्यालय मात्र नहीं है। भारतीय शिक्षा आयोग ने यह महसूस किया कि विद्यालय स्तर पर भविष्य में साधारण शिक्षा एवं व्यवसायिक शिक्षा में पूर्व व्यवसायिक तथा तकनीकी तत्व शामिल होंगे और व्यवसायिक शिक्षा साधारण शिक्षा का तत्व बनाए रखेगी। इन दोनों प्रकार की शिक्षाओं की पूर्ण रूप से अलग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि पूर्ण अलगाव का सोचना भी अवांछनीय तथा असंभव है।

शिक्षा के व्यवसायीकरण की आवश्यकता एवं महत्व
(Need and Importance of Vocationalisation of Education)

प्रत्येक राष्ट्र का यही प्रयास होता है कि उसके राष्ट्र की शिक्षा का ढाँचा उन्नत तथा सक्षम हो ताकि यह सभी व्यक्तियों की आवश्यकताओं तथा माँगों को पूरा कर सके। इसलिए देश में एक विशेष प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए, क्योंकि यह विशेष शिक्षा अर्थात् व्यवसायीकरण शिक्षा कई प्रकार से देश की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है। जिन क्षेत्रों में व्यवसायीकरण की आवश्यकता है वे निम्नलिखत हैं-
(1) आर्थिक विकास के लिए - भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसे प्रकृति ने खुले दिल से अपने तीनों गुणों शक्ति, सुन्दरता तथा ताकत को भरपूर मात्रा में दिया है। परन्तु इतने अच्छे तथा सशक्त प्राकृतिक साधनो के बावजूद भी हमारे देश को आर्थिक व्यवस्था उतनी सुदृढ़ नहीं है, जितना हमें होना चाहिए था। इस अवनति का एक मुख्य कारण प्रशिक्षित मानवीय शक्ति का न होना है। यह भी सत्य है कि जनसंख्या की दृष्टि से हमारा देश दुनिया में दूसरे स्थान पर है और प्रकृति ने भी इसे दोनों हाथों से सीचा है। परन्तु हमारी आयोग्य शिक्षा प्रणाली वह कारण है, जिससे देश के आर्थिक विकास की बुलन्दियों को छू नहीं पा रहा है।
अब समय आ गया है जब हमें हमारे छात्र-छात्राओं को व्यावसायिक तथ व्यावहारिक रूप से कुशल बनाना होगा ताकि वे औद्योगिक तथा तकनीकी उन्नति की योजनाओं में सार्थक योगदान देकर देश को आर्थिक रूप से सशक्त तथा खुशहाल बना सकें। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय शिक्षा आयोग ने शिक्षा के चार प्रमुख लक्ष्यों में से 'उत्पादन दृद्धि' को लक्ष्य साधकर उसकी प्राप्ति के लिए माध्यमिक शिक्षा को व्यावसायिक रूप देने की सिफारिश की है।
(2) बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए - भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में व्यावसायिक शिक्षा बेरोजगारी की समस्या दूर करने में सक्षम है। अतः शिक्षा में व्यवसायीकरण से शिक्षित लोगों में बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है। निःसन्देह व्यवसायीकरण विद्यार्थियों को किसी एक व्यवसाय में निपुण बनाती है। महात्मा गाँधी के अनुसार, "शिक्षा बेरोजगारी के विरुद्ध एक प्रकार का बीमा होना चाहिए।'
(3) विद्यार्थियों की योग्यताओं, रुचियों तथा गुणों को प्रशस्त करने के लिए आयोग के अनुसार माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण करने से विद्यार्थी अपनी-अपनी विशेष पसन्द तथा रुचियों के अनुरूप प्रशिक्षण ले सकते हैं। यह उनके लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने के साथ उन छुपी हुई क्षमताओं को भी विकसित करेगा।
(4) आत्मसंतुष्टि - अपने आपको केवल उस समय आत्मसंतुष्ट समझता है जब उसे अपनी पसन्द का व्यवसाय मिल जाए और शिक्षा में व्यवसायीकरण से विद्यार्थियों को पूरा नहीं तो कुछ हद तक उसकी रुचि के अनुरूप कोई-न-कोई व्यवस्था मिल ही जाता है।
(5) नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास यदि मानव की मूलभूत आवश्यकाएँ रोटी कपड़ा और मकान, पूरी हो जाती है तो नैतिकता व संस्कृति की बात सोचता है और शिक्षा के व्यवसायीकरण से विद्यार्थी अपनी पसन्द का रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, जो उन्हें धन के साथ-साथ संतुष्टि भी दे सकता है और आर्थिक रूप से सबल होने पर नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास स्वतः प्राप्त हो सकता है।
(6) बौद्धिक विस्तार - शिक्षा में व्यवसायीकरण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को रोजगार उपलब्ध कराना है। एक बार रोजगार प्राप्त होने पर वे दूसरे क्षेत्रों में भी कार्य करने की सोच सकते हैं। ऐसा करने से तथा दूसरे क्षेत्रों में रुचि लेने से उनका बौद्धिक विस्तार स्वतः ही हो जाता है।
शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए
(7) शिक्षा प्रक्रिया को उद्देश्यपूर्वक बनाना - व्यवसायीकरण अति आवश्यक है, क्योंकि व्यवसायीकरण शिक्षा की प्रक्रिया को दिशा देने में सक्षम है। यही कारण है कि शिक्षा व्यवासायिक रूप से विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हो सकती है।
(8) माध्यमिक शिक्षा को आत्मनिर्भर कोर्स बनाने के लिए- वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप अत्यधिक शैक्षिक होने के कारण इसका मुख्य कार्य विद्यार्थियों को महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिलाने मात्र तक सीमित होकर रह गया है। यदि सामान्य रूप से देखा जाए तो हम पायेंगे कि इस वर्तमान शिक्षा प्रणाली में पढ़कर महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में जाने वाले छात्रों की संख्या 25% भी नहीं होती है। माध्यमिक शिक्षा के तुरन्त बाद वे रोजी-रोटी कमाने की सोचते हैं, इसलिए इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए शिक्षा कार्यक्रम को व्यवसायिक स्वरूप देकर इस दिशा में कुछ प्रशिक्षण जरूर दिया जाना चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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