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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- क्या शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय स्थापित करना सम्भव है? यदि हाँ, तो कैसे?

उत्तर-
(1) वैयक्तिक व सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय की आवश्यकता (Synthesis b/w Individual and Social Aims) - शिक्षा के वैयक्तिक व सामाजिक उद्देश्यों की अगर बात की जाए तो समय-समय पर इन पर विवाद होता ही रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि चाहे व्यक्ति हो या फिर समाज हो, दोनों को ही एक-दूसरे का विरोधी माना गया है। कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने वैयक्तिक उद्देश्यों का समर्थन करते हुए यह कहा कि शिक्षा के द्वारा व्यक्ति का विकास किया जाना चाहिए। इनके विपरीत वे विचारक हैं जो कि शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य पर बल देने के साथ यह कहते हैं कि व्यक्ति को हमेशा समाज के हित के लिए अपना बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। वास्तव में अगर देखा जाए तो दोनों ने ही व्यक्ति और समाज को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया है। इसी कारण व्यक्ति और समाज दोनों को समय-समय पर बहुत हानि उठानी पड़ी है।
इस हानि को रोकने के लिए केवल यही उपाय है कि वैयक्ति और सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय किया जाए। देखा जाए तो वास्तविक रूप से इसकी आवश्यकता भी है क्योंकि समन्वय होने से ही व्यक्ति और समाज दोनों का ही हित सम्भव है। इसे अगर हम ठण्डे दिमाग से सोचें तो शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक दोनों उद्देश्यों में समन्वय की कोई आवश्यकता नहीं है। इन दोनों में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि दोनों को एक-दूसरे से पृथक करना असम्भव है। सच तो यह ही है कि दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं
(2) वैयक्तिक व सामाजिक उद्देश्य : एक-दूसरे के पूरक (Individual & Social Aims : Complementary to Each Other) - शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य एक-दूसरे के पूरक हैं क्योंकि चाहे वो व्यक्ति हो या फिर समाज दोनों ही अपनी प्रगति के लिए एक-दूसरे का सहारा चाहते हैं क्योंकि न तो हम समाज विहीन व्यक्ति की कल्पना कर सकते हैं और न ही व्यक्ति विहीन समाज की। एक के अभाव में दूसरे का जीवन असम्भव है। व्यक्ति के लिए समाज के महत्व को बताते हुए रॉस ने लिखा है कि "वैयक्तिकता का विकास केवल सामाजिक वातावरण में होता है जहाँ सामान्य रुचियों और सामान्य क्रियाओं से उसका पोषण हो सकता है।
रॉस के द्वारा लिखे गए कथन से यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य की वैयक्तिकता और व्यक्तित्व का विकास केवल समाज के अन्तर्गत ही हो सकता है। जिस प्रकार से व्यक्ति समाज के लिए आवश्यक है उसी प्रकार समाज के लिए व्यक्ति आवश्यक है। ये दोनों मिलकर एक बनते हैं। इन दोनों का समन्वय वास्तविक सत्य है। दोनों एक-दूसरे के पूरक है। मैकाइवर के अनुसार - "सामाजीकरण और वैयक्तिकरण एक ही प्रक्रिया के दो पहलू हैं।
(3) वैयक्तिक व सामाजिक उद्देश्यों के समन्वय के अनुसार शिक्षा का रूप (Nature of Education According to Synthesis b/w Individual and Social Aims) शिक्षा के वैयक्तिक व सामाजिक उद्देश्यों के समन्वय के साथ अब प्रश्न यह उठता है कि समन्वय के शिक्षा का रूप कैसा होगा। शिक्षा के इस रूप को निश्चित करने के लिये हमें ऐसी शिक्षा की अनुसार व्यवस्था करनी चाहिए जिसमें न तो समाज व्यक्ति को अपना दास बना सके और न ही व्यक्ति इतना स्वतन्त्र हो जाए कि वह समाज के नियमों को ठुकराकर अपनी मनमानी कर सके।
इस शिक्षा व्यवस्था में व्यक्ति और समाज दोनों की स्वतन्त्रता ऐसी सीमाओं में रहनी चाहिए जिससे कि दोनों का विकास और कल्याण हो सके।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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