बी ए - एम ए >> फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्रयूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर
प्रश्न- आध्यात्मिक चेतना के विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
आध्यात्मिक चेतना के विकास का उद्देश्य
यह शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य है, यह बात दूसरी है कि आज राज्यों द्वारा संचालित शिक्षा में प्रायः इसके लिए प्राविधान नहीं होता और जिन राज्यों में होता भी है उनमें धर्म विशेष की शिक्षा के रूप में होता है। संसार के अधिकतर लोग मनुष्य को शरीर, मन और आत्मा का योग मानते हैं। उसके शरीर और मन का विकास करना शिक्षा के सर्वप्रथम दो उद्देश्य हैं। इसके साथ वह एक सामाजिक प्राणी भी है अतः उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास की भी बात सभी करते हैं। मनुष्य की कुछ शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक आवश्यकताएँ होती हैं, इनकी पूर्ति के लिए उसके व्यावसायिक विकास की बात भी सब सोचते हैं पर बीच में इस आध्यात्मिक विकास की बात क्यों छोड़ दी जाती है, अपनी, समझ में नहीं आता।
शिक्षा के क्षेत्र में आध्यात्मिक विकास से तात्पर्य मनुष्य को इस पूरे ब्रह्माण्ड की वास्तविकता से परिचित कराना है, उसे अपनी आत्मशक्ति का ज्ञान कराना है, उसे परम सूक्ष्म पर परम शक्तिशाली सत्ता का ज्ञान कराना है। यूँ तो आज राज्य द्वारा संचालित औपचारिक शिक्षा द्वारा प्रत्यक्ष रूप से इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया जाता परन्तु साहित्य, इतिहास, सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा के साथ इस सबका ज्ञान हो ही जाता है। अनौपचारिक शिक्षा में तो इसकी शिक्षा स्वाभाविक से होती है। बुद्ध, महावीर, ईसा, मुहम्मद साहब और गुरु नानक ने हमें आध्यात्मिक ज्ञान ही कराया है।
इसमें दो मत नहीं हैं कि मनुष्य जीवन के तीन पक्ष हैं - प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक और कोई भी व्यक्ति कितनी की भौतिक उन्नति क्यों न कर ले और कितना भी सुधार क्यों न कर ले परन्तु अपने जीवन की कला में वह वास्तविक सुख और शान्ति का अनुभव तब तक नहीं कर सकता जब तक उसका आध्यात्मिक विकास नहीं किया जाता, उसे आत्मा-परमात्मा का ज्ञान नहीं कराया जाता। मनुष्य का यह तीसरा पक्ष (आध्यात्मिक) ही उसके प्रथम दो पक्षों-प्राकृतिक और सामाजिक के विकास के लिए संचा आधार प्रस्तुत करता है। वास्तविकता यह है कि मनुष्य के इन तीनों पक्षों-प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक का विकास एक-दूसरे पर निर्भर करता है, अतः मनुष्य के इस आध्यात्मिक पक्ष का विकास अवश्य होना चाहिए।
इस सब विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शिक्षा का आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य सर्वोच्च उद्देश्य है, इसी की प्राप्ति से हम मनुष्य को मनुष्य बना सकते हैं। परन्तु इसके आगे हमें उसके प्राकृतिक एवं सामाजिक पक्ष को नहीं भूलना चाहिए। शिक्षा अपने कार्य में तभी सफल होगी, जब वह मनुष्य के तीनों पक्षों-प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक का समुचित रूप से विकास करें।
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- प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।