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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भारत में भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं का वर्णन कीजिए इस सम्बन्ध में गोष्ठियों एवं समितियों के विचारों का भी उल्लेख कीजिए।

अथवा

राष्ट्रीय एकता में कौन-कौन सी बाधायें हैं?

उत्तर-
भारत में भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ
(Obstacles in the Way of Emotional and National Integration in India)

यह तथ्य सर्वविदित है कि हमने स्वतंत्रता संग्राम एकजुट होकर लड़ा था। तब हम सबके मन में एक ही विचार था कि हम भारतीय हैं। परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्ष बाद ही हमारे देश में भावात्मक (राष्ट्रीय) एकता में कमी आने लगी। सरकार का ध्यान इस ओर जाना स्वाभाविक था। शिक्षा जगत् में भी इस विषय पर गोष्ठियाँ आयोजित होने लगीं और राष्ट्रीय एकता के अभाव के कारणों और उसके विकास के उपायों पर विचार होने लगा। यहाँ हम कुछ मुख्य गोष्ठियाँ, सम्मेलनों और समितियों के इस सम्बन्ध में विचार प्रस्तुत कर रहे हैं -
1. राष्ट्रीय एकता गोष्ठी (1958) - इस गोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा किया गया था। इसमें अनेक शिक्षाविदों ने भाग लिया। इन लोगों की सम्मिति में राष्ट्रीय एकता में कमी का मुख्य कारण देश में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव बरतना है।
2. उपकुलपति सम्मेलन (1961) - इस सम्मेलन में कुलपतियों ने देश में क्षेत्र, जाति, धन और भाषा के आधार पर भेदभाव बरतने को राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधक बताया।
3. इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एकता समिति (1961) - इस समिति का गठन कांग्रेस के भावनगर अधिवेशन में किया गया था। इस समिति की सम्मति में जाति वा धार्मिक संकीर्णता, अशिक्षा पिछड़ापन व्यक्ति और संपत्ति की असुरक्षा राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधक है।
4. मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन (1961) केन्द्रीय सरकार ने इस विषय पर विचार हेतु 31 मई 1961 को राज्यों को मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में कई केन्द्रीय मंत्रियों ने भी भाग लिया। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने की पर एक दिन में क्या विचार हो पाता। अतः 10 अगस्त को यह सम्मेलन फिर बुलाया गया और इस बार यह 12 अगस्त तक चला। इस बार इसमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता समिति के सुझावों पर गंभीरता से विचार किया जाये। इन्होंने माना कि राष्ट्रीय एकता में कमी आने के मुख्य कारण जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रीयता और साम्प्रदायिकता है, जबकि इन पर काबू नहीं किया जाता राष्ट्रीयता का विकास नहीं किया जा सकता।
5. डॉ. सम्पूर्णानन्द भावात्मक एकता समिति (1961-62 ) - इस समिति का गठन केन्द्रीय सरकार ने 1961 में किया था। इसका कार्य राष्ट्रीय एकता में कमी आने के कारणों का पता लगाना। इन कारणों को दूर करने के उपाय सुझाना और राष्ट्रीय एकता के विकास हेतु शिक्षा की भूमिका निश्चित करना था। इस समिति ने अपना प्रतिवेदन 1962 में प्रस्तुत किया। इस समिति के सम्मति में भावात्मक (राष्ट्रीय) एकता के मार्ग में मुख्य बाधक तत्व - जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रीयता, प्रान्तीयता, साम्प्रदायिकता युवकों को निराशा और आदर्शों का अभाव है।
6. राष्ट्रीय एकता समिति (1967) - प्रारम्भ से ही हमारी सरकार की नीति रही है - विचार अधिक और काम कम। भारत-पाक युद्ध के बाद केन्द्रीय सरकार ने नये सिरे से राष्ट्रीय एकता समिति का गठन किया और इसमें सभी राजनैतिक दलों के लोग सम्मिलित किये। इसकी पहली बैठक जून 1968 में श्रीनगर में हुई। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने की। इस बैठक में मुख्य रूप में प्रान्तीय और साम्प्रदायिकता पर चर्चा हुई। इस समिति की दूसरी बैठक 1980 में तीसरी बैठक 1984 में हुई। हर बैठक में बढ़ते हुए जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रीयता और साम्प्रदायिकता पर चिन्ता व्यक्त की गई। पर किसी ने नहीं कहा कि इसको बढ़ाने का कार्य राजनैतिक दलों और स्वंय सरकार का है। भला अपने को दोषी कौन मानता है।
7. शिक्षा जगत की अन्य गोष्ठियाँ इस बीच शिक्षा जगत में न जाने कितनी गोष्ठियाँ और हुई। इन गोष्ठियों में मुख्य बिन्दु शिक्षा होना स्वाभाविक था। इन गोष्ठियों में भी बढ़ते हुए जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रीयता और साम्प्रदायिकता पर चिन्ता व्यक्त की गई परन्तु इसके साथ-साथ इन्होंने इसके लिए वर्तमान शिक्षा को भी दोषी ठहराया। अपने को दोषी मानने का साहस शिक्षाविद ही कर सकते हैं, राजनीतिज्ञ नहीं।

हमारी अपनी सम्मति

हम मानते हैं कि राष्ट्रीय एकता के मार्ग में जातिवाद, भाषावाद, साम्प्रदायिकता और प्रान्तीयता मुख्य बाधक तत्व हैं परन्तु सोचना अब यह है कि इनको बढ़ावा कौन दे रहा है। हमारी सम्मति में इनको बढ़ावा स्वयं सरकार है और राजनैतिक दल दे रहे हैं। इनके अतिरिक्त बढ़ती हुई जनसंख्या, आर्थिक विषमता और अन्य राष्ट्रों का हस्तक्षेप भी हमारे देश में राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा डाल रहे हैं और जैसाकि शिक्षाविद स्वयं स्वीकार करते हैं, उदार शिक्षा की कमी भी इसके लिए उत्तरदायी है। अतः यहाँ इन पर थोडा विचार करना आवश्यक है -
1. जातिवाद, भाषावाद, साम्प्रदायिकता और प्रान्तीयता - हमारा देश एक विशाल देश है। इसमें अनेक जातियाँ हैं, अनेक भाषाओं का प्रयोग होता है, अनेक धार्मिक सम्प्रदाय हैं और यह शासन की दृष्टि से अनेक प्रान्तों में बंटा हुआ है और जहाँ वर्ग हो, वहाँ वर्ग-संघर्ष होना स्वाभाविक है और जहाँ संघर्ष हो वहाँ एकता का प्रश्न ही नहीं उठता पर वास्तविकता तो यह है कि हमारे देश में ये भिन्न-भिन्न जातियाँ, भिन्न-भिन्न भाषाएँ, भिन्न-भिन्न धार्मिक सम्प्रदाय और भिन्न-भिन्न क्षेत्र (जिनका आधार स्थान नहीं, भाषा और संस्कृति था) ये तो तब भी थे जब हमने स्वतंत्रता संग्राम लड़ा था, और तब देश में राष्ट्रीय एकता अपनी चरम सीमा में थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसमें निरन्तर कमी आती जा रही है और इसका मूल कारण है- हमारी सरकार और राजनैतिक दल।
2. राज्य की भेदभाव पूर्ण नीति - हमारे लोकतंत्र के मूल सिद्धान्त हैं - स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और न्याय। हमारे संविधान में भी यह घोषणा की गई है कि राज्य स्थान, जाति, लिंग और धर्म आदि किसी भी आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं बरतेगा, परन्तु अफसोस, हमारा राज्य स्थान, जाति, लिंग और धर्म, सभी के आधार पर भेदभाव बरत रहा है। किस प्रकार, यह आप स्वयं देख समझ रहे हैं। परिणाम यह है कि देश के नागरिकों में समान नागरिक होने का भाव ही उत्पन्न नहीं हो पा रहा जो राष्ट्रीय एकता का मूल आधार है।
3. वोट की राजनीति - भारत में विभिन्न जातियाँ, भाषाएँ और धार्मिक सम्प्रदाय तो पहले से ही थे परन्तु इनके बीच खाई खोदने का काम राजनैतिक दलों ने किया है, वोट की राजनीति ने किया है और यदि हम यह कहें कि वोट की राजनीति ही राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। इस संदर्भ में पहली बात तो यह है कि हमारे देश में अधिकतर राजनैतिक दलों का निर्माण जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बनते हैं सभी राजनैतिक दल जाति, भाषा और क्षेत्र के नाम पर वोट बटोरते हैं। कोई अपने को दलितों का हिमायती कहता है, कोई अपने को पिछड़े वर्ग का हिमायती कहता है और कोई अपने को अल्पसंख्यकों का हिमायती कहता है। इतना ही नहीं अपितु कोई अपने को किसानों के हितों का रक्षक बताता है तो कोई अपने को मजदूरों के हितों का रक्षक बताता है। कोई अपने क्षेत्र के विकास पर वोट मांगता है तो कोई अपनी भाषा के नाम पर वोट मांगता है। राष्ट्रहित की बात सोचने और करने वाले अब दिखाई ही नहीं देते तब आप ही सोचिए कि देश में राष्ट्रीय एकता कैसे हो सकती है।
4. बढ़ती हुई जनसंख्या और बेरोजगारी- हमारे देश में जिस तेजी के साथ जनसंख्या बढ़ रही है, उस तेजी के साथ उसमें उत्पादन के स्रोत नहीं बढ़ रहे हैं, परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ रही है। इससे राष्ट्र के चरित्र पर प्रभाव पड़ रहा है और चरित्र के अभाव में राष्ट्रीय एकता की बात सोचना व्यर्थ है।
5. आर्थिक विषमता - हमारे देश की जो भी आर्थिक नीति रही, उससे आर्थिक विषमता घटने के स्थान पर निरन्तर बढ़ रही है। इसमें कोई शक नहीं कि देश का आर्थिक विकास हो रहा है, देश में प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, लोगों का जीवन स्तर उठ रहा है परन्तु जिस तेजी से धनी और अधिक धनी हो रहा है उस तेजी से सामान्य जनता का आर्थिक स्तर नहीं उठ रहा है। इस आर्थिक दौड़ में लोग स्वार्थ के आगे राष्ट्र हित की बात नहीं सोच पा रहे जो राष्ट्रीय एकता की पहली शर्त है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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