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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- जीवन मूल्यों की स्थापना में परिवार का क्या महत्व है?

उत्तर-

परिवार और मूल्य शिक्षा
(Family and Value Education)

बालक की प्राथमिक पाठशाला परिवार को ही माना जाता है। यहाँ पर बालक भाषा और आचरण की विधियाँ सीखता है तथा धर्म और संस्कृति ग्रहण करता है। बालकों की नींव परिवार में ही रखी जाती है। बालक आकस्मिक अवस्था में अपने माँ बाप, भाई-बहन आदि का अनुकरण करता है तथा भाषा का एवं आचरण की विधियों का ज्ञान प्राप्त करता है। तत्पश्चात् वह अपने कार्यों के प्रति दूसरों की अनुक्रिया देखकर उनमें सही विधियों को चुनता है तथा गलत विधियों को त्याग देता है। जब उसे थोड़ी समझ आ जाती है तो वह अपने कार्यों का विश्लेषण करने लगता है तथा न्याय-अन्याय व सही-गलत का फैसला करने लगता है। मूल्यों के निर्माण की क्रिया बस यहीं से आरम्भ हो जाती है। परिवार में बच्चों में उचित मूल्यों का उचित ढंग से विकास करने के निम्नलिखित कार्य किये जाने चाहिए -
1. कहानी कथन - बच्चों की इनमें स्वाभाविक रुचि होती है। इनमें बच्चों का मनोरंजन होता है तथा इससे वे अनेक गुणों को प्राप्त करते हैं। परिवार में बच्चों को सरल एवं स्पष्ट अर्थ वाली कहानी सुनाई जानी चाहिए। इससे बच्चों को प्रेम, सहानुभूति, सहयोग, क्षमा, दान, दया, शौर्य, वीर्य आदि के महत्व का ज्ञान होता है।
2. मूल्य आधारित आचरण - मूल्य शिक्षा का स्वाभाविक क्रम व्यवहार से व्यवहार की ओर है। बच्चा आरम्भिक अवस्था में अपने माँ-बाप एवं भाई-बहन आदि का अनुकरण करता है और नयी-नयी व्यवहार एवं विधियों को सीखता है। जब बच्चा कुछ बड़ा होता है तो वह इन विधियों के औचित्य के बारे में सोचने लगता है और क्योंकि उत्तर में वे मूल्य पर पहुँच जाते हैं तत्पश्चात् यह मूल्य पर पहुँच जाते हैं तत्पश्चात् यह मूल्य ही उनके व्यवहार का आधार बन जाता है और उनका व्यवहार इन मूल्यों के अनुसार ही होने लगता है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि बच्चों में उचित विकास के लिए सामाजिक एवं सास्कृतिक पर्यावरण की मूलभूत आवश्यकता होती है।
3. टेलीविजन, रेडियो कार्यक्रम विश्लेषण - वर्तमान समय में अधिकांश परिवारों में टेलीविजन देखें और रेडियो सुने जाते हैं। इन पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। जैसे- फिल्म व नाटक आदि। अधिकांश परिवार के सभी सदस्य इन्हें एक साथ देखते व सुनते हैं। बच्चे इन कार्यक्रमों के प्रति अपने माता-पिता की अनुक्रियाओं को बड़े ही ध्यान से देखते हैं। बच्चे उनकी इन्हीं अनुक्रियाओं से गलत एवं अच्छे व्यवहार सीखते हैं। ऐसे में परिवारों को यह चाहिए कि वे समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार विधियों की चर्चा करे और बच्चों को यह चाहिए कि वे केवल दूसरे की अनुक्रियाओं के आधार पर ही नहीं बल्कि कुछ मूलभूत आधारों पर अपना व्यवहार निश्चित करे। परिवार द्वारा बच्चों के समक्ष समाज द्वारा स्वीकृत आचरण की पुष्टि करनी चाहिए।
4. पुरस्कार एवं दंड - परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों के मूल्य आधारित व्यवहार की प्रशंसा की जानी चाहिए और मूल्य व्यवहार के प्रतिकूल व्यवहार के प्रति अन्यथा अनुक्रिया की जानी चाहिए। बच्चों से मोह न करके प्रेम करना चाहिए। बच्चों के सही आचरण को सही व गलत को गलत कहना चाहिए तथा उनके अनुचित व्यवहार करने पर उनके दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए। किन्तु दंड देते समय इस बात को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए कि जो कुछ किया जा रहा है वह उनके स्वयं के हित के लिए किया जा रहा है। क्रोध में दिया गया दंड सदैव हानिकारक होता है।
5.विद्यालयों के मूल्य शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों में सहयोग - अच्छे विद्यालयों की अच्छी परिपाटी मूल्य शिक्षा का बड़ा सशक्त साधन होती है। इसीलिए आज विद्यालयों की मूल्य शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। लेकिन विद्यालय अपने इस कार्य में उस समय तक सफलता नहीं पा सकते हैं जब तक कि परिवार उनका सहयोग न करें। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम बात यह है कि परिवार और विद्यालयों को सिखाये जाने वाले मूल्यों के प्रति सहमति होनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि मूल्यों के विकास हेतु परिवारों को सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण सुलभ कराया जाना चाहिए।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि मूल्य में परिवार का विशेष महत्व होता है। अतः जीवन मूल्यों के विकास में परिवार के योगदान को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए तथा इसी के आधार पर ही उचित या अनुचित कार्यों को किया जाना चाहिए जिससे इनका विकास उचित प्रकार से हो सके।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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