बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- अपभ्रंश चित्रकला के नामकरण तथा शैली की पूर्ण विवेचना कीजिए।
अथवा
अपभ्रंश शैली पर एक समीक्षात्मक लेख लिखिए।
अथवा
अपभ्रंश चित्रण शैली क्या है? उसकी मुख्य कलात्मक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
अपभ्रंश शैली
गुजरात में जैन तथा अजैन दोनों प्रकार के चित्र प्राप्त हुये थे और इसी प्रकार के चित्र अन्य प्रदेशों में भी मिले, इसी कारण से इस शैली के उपयुक्त नामकरण में मतभेद बना रहा। किन्तु शुरू में इन्हें 'जैन शैली' का नाम दिया गया। परन्तु ऐसे ही चित्र मालवा, गुजरात तथा राजस्थान में दूसरे सम्प्रदाय के ग्रन्थों में भी मिले तो इस शैली को 'गुजरात' या 'पश्चिम भारत शैली' कहना उचित ही समझा गया। परन्तु जब इस प्रकार के चित्र, भारत के अन्य स्थानों में भी मिले तो 'पश्चिम भारत' शैली के नाम भी अनुपयुक्त जान पड़ा ऐसा मत डॉ. मोतीचन्द आदि विद्वानों का था।
श्री रामकृष्ण दास ने 'जैन-शैली' नाम को गलत बतलाया तथा उसके निम्नलिखित कारण बताये-
1. भारत की चित्रकला में कभी सम्प्रदाय परक भेद नहीं रहा है।
2. सित्तन वासल के जैन चित्र अजन्ता या बाघ के चित्रों से बिल्कुल भिन्न नहीं है।
3. 16वीं शती के तीसरे चरण में भारतीय कला के पुनरुत्थान के बाद जैन विषय के चित्रों की कोई भिन्न शैली नहीं रह जाती।
4. इस युग में जैन चित्र बहुत बने परन्तु इससे 'जैन शैली' नामक कोई आभास नहीं होता।
5. कुछ लोग जैन शैली का समर्थन इसलिये करते हैं कि ये चित्र जैन साधुओं ने बनाये थे परन्तु ये सत्य नहीं हैं, इनमें कुछ चित्र अनपढ़ चित्रकारों ने भी बनाये थे।
6. जैन शैली का नाम इसलिए भी त्रुटिपूर्ण लगता है कि ऐसे चित्र केवल श्वेताम्बरीय जैन ग्रन्थों में ही मिलते हैं।
7. इस शैली के कितने ही अजैन ग्रन्थ मिले हैं जिनमें गीत गोविन्द, दुर्गा सप्तशती आदि हैं। इसलिए इस शैली का नाम श्रीराय कृष्ण दास ने 'अपभ्रंश शैली' रखा। उनके अनुसार, "जब इन चित्रों का आलेख कोई नया उत्थान नहीं हैं, प्राचीन शैली की विकृति मात्र है तो अपभ्रंश ही एक ऐसा शब्द है जिसके द्वारा इन विकृतियों की समुचित अभिधा एवं व्यंजना हो सकती है।"
इस शैली का जन्म पश्चिम भारत में वहाँ के साहित्य के साथ ही हुआ और उसी के साथ समाप्त हो गया। इस शैली के चित्र तीन प्रकार के हैं-
(i) ताड़पत्र पर बने चित्र,
(ii) कपडे पर बने चित्र,
(iii) कागज पर बने चित्र।
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