बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पाल शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पाल शैली के चित्रों का वर्ण-संयोजन कैसा था?
2. रागमाला चित्र किससे संबंधित हैं?
उत्तर-
पाल शैली के संयोजन में तलखंड की किसी विशेष प्रक्रिया को शामिल नहीं किया गया है लेकिन प्रभावित सिद्धांतों को अपनाते हुए प्रमुख हिस्सों को केंद्र में या बड़े आकार में बनाया गया है। पाल शैली की संरचना में मुख्य रूप से अजन्ता की विशेषताएँ संक्षिप्त रूप में उभर कर सामने आती हैं। मुख्य रूप से वास्तुशिल्प पृष्ठभूमि, शिल्प, आभूषण आदि में अजन्ता का प्रभाव है। वनस्पति का सीमित उपयोग कहीं-कहीं कैडली या नारियल का वृक्ष दृश्यगोचर होता है। महायान सम्प्रदाय सम्बन्धी चित्र जो पोथियों तथा पैट्रों पर मिलते हैं। नीला, लाल, पीला प्राथमिक रंगों के अतिरिक्त श्वेत वर्णों का सुन्दर प्रयोग साहित्य में दिया गया है। सिन्दूर, महावर तथा हिंगूल लाल रंग, नील से नीला रंग तथा पीली मिट्टी से पीला रंग स्वयं द्वारा तैयार किये गये। इन प्राथमिक रंगों को मिलाकर भी अन्य रंग तैयार किए गए हैं, स्थानीय रंगों को गहरा करके और काले रंग का प्रयोग किया गया है। अधिकांश सवाचश्म चेहरे शामिल हैं जिनमें नाक परले गॉल से बाहर चित्रित किया गया है। सम्मुख चेहरे में आँख और नाक के चेहरे को लोचदार रेखा के अंदर ही होते हैं। अर्द्धनिर्मित उत्सव मुद्राएँ, मुद्राएँ और भाव-भंगिमाओं में अजन्ता का प्रभाव होता है। थियोपियाईयों की भीड़-भाड़ का अभाव है। प्राय 2 या तीन सिद्धांत वाले सरल संयोजन हैं। मध्य में महायान देवी देवताओं और बुद्ध संप्रदाय के अनुयायी या वर्गाकार चित्र के विषय प्रक्षेप हैं। पाल शैली में अधिकांश दृष्टान्त चित्र हैं जिन पर नागागी लिपी में सुन्दर चित्रों में चित्रों को दर्शाया गया है जिनमें चित्रों को सुदृढ़ का सौन्दर्य अनुपम हैं। कहीं-कहीं काली पृष्ठभूमि पर सफेद रंग से लिखा हुआ है। रेखांकन बहुत सुंदर है। कुछ पाट चित्र भी मिलते हैं। नेपाल के पाल संरचना की मुखाकृति में मंगोलियाई हैं।
रागमाला के चित्रों में कलाकारों ने संगीत जैसे अमूर्त तत्व को चित्रकला जैसी दृश्य कला द्वारा प्रस्तुत कर एक अनोखा प्रयोग किया। रागमाला के चित्रों का प्रारम्भिक स्वरूप लगभग 15वीं शताब्दी से दिखायी देने लगता है। मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (1433-1468 ई०) महान संगीतज्ञ एवं कला प्रेमी थे। उन्होंने संगीतराज नामक ग्रन्थ में रागों के मूर्तिकरण का बहुत सुन्दर विवरण प्रस्तुत किया है।
रागमाला सम्बन्धित चित्र राजस्थान की कई शैलियों में मिलते हैं। मेवाड़ में भी इसका अंकन सफलता से किया गया है। इस विषय से सम्बन्धित चित्रों की शैलीगत विशिष्टता को वर्ण वस्त्राभूषण स्थापत्य नायक-नायिका आदि के माध्यम से चित्रित किया गया है।
भारतीय काव्य तथा संगीत में राग-रागिनियों को प्रमुखता दी गयी है जिन्हें राजपूत कलम के अन्तर्गत मानवीकृत किया गया है। मुख्यतः छः राग और 30 रागिनियों को भारतीय संगीत में प्रमुख रूप से वर्णित किया गया है।
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- प्रश्न- राजस्थानी शैली के चित्रों की विशेषताएँ क्या थीं?
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- प्रश्न- मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग पर एक लेख लिखिए।
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- प्रश्न- मेवाड़ एवं मारवाड़ शैली के मुख्य चित्र कौन-से है?
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- प्रश्न- अकबरकालीन वास्तुकला के विषय में आप क्या जानते है?
- प्रश्न- जहाँगीर के चित्रों पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
- प्रश्न- मुगल शैली के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
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