बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
अथवा
कार्ल रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त में मानव व्यवहार को किस प्रकार परिभाषित किया गया है? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर -
कार्ल रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त - कार्ल रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त के अन्तर्गत, व्यक्ति की अनुभूतियों, भावों एवं मनोवृत्तियों तथा उनके अपने बारे में तथा दूसरों के बारे में व्यक्तिगत विचारों का अध्ययन विशेष रूप से किया जाता है। रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त आत्मन् सिद्धान्त या व्यक्ति केन्द्रित सिद्धान्त भी कहलाता है। रोजर्स ने व्यक्तित्व सिद्धान्त का वर्णन निम्नांकित तीन प्रमुख भागों में किया है
(1) व्यक्तित्व के स्थायी पहलू - रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त उनके द्वारा प्रतिपादित क्लायंट-केन्द्रित मनोचिकित्सा से प्राप्त अनुभूतियों पर आधारित है। इस सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य व्यक्तित्व में होने वाले परिवर्तनों एवं वर्धन का अध्ययन करना है। इसके दो पहलू निम्न हैं-
(i) प्राणी - रोजर्स के अनुसार प्राणी एक ऐसा दैहिक जीव है जो शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही तरह से कार्य करता है। इसमें प्रासंगिक क्षेत्र तथा आत्मन् दोनों ही सम्मिलित होते हैं। रोजर्स का मत है कि प्राणी सभी तरह की अनुभूतियों का केन्द्र होता है।
(ii) आत्मन् - रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त का यह सबसे महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। रोजर्स के अनुसार आत्मन् का विकास शैशवावस्था में होता है। जब शिशु की अनुभूतियों का एक अंश या भाग अधिक मूर्त रूप प्राप्त करने लगता है।
(a) आत्म-संप्रत्यय - आत्म-संप्रत्यय से तात्पर्य व्यक्ति के उन सभी पहलुओं एवं अनुभूतियों से होता है, जिससे व्यक्ति अवगत होता है। आत्म-संप्रत्यय का एक बार निर्माण हो जाने से उसमें सामान्यतः परिवर्तन नहीं होता है। हाँ बहुत प्रयत्न करने से उसमें परिवर्तन हो सकता है, जो अनुभूतियाँ व्यक्ति के आत्म-संप्रत्यय के साथ असंगत होती हैं, उसे व्यक्ति स्वीकार नहीं करता है और यदि स्वीकार भी करता है तो विकृत रूप से करता है।
(b) आदर्श आत्मन् - आदर्श आत्मन् से तात्पर्य अपने बारे में विकसित किए गए एक ऐसे छवि से होता है, जिसे वह आदर्श मानता है।
(2) व्यक्तित्व की गतिकी - रोजर्स ने अपने व्यक्तित्व गतिकी की व्याख्या करने के लिए एक महत्वपूर्ण अभिप्रेरक 'वस्तुवादी प्रवृत्ति' की व्याख्या की है। "वस्तुवादी प्रवृत्ति से तात्पर्य प्राणी में सभी तरह की क्षमताओं को विकसित करने की जन्मजात प्रवृत्ति से होता है जो व्यक्ति को उन्नत बनाने या प्रोत्साहन देने का काम करती है। वस्तुवादी प्रवृत्ति के कुछ खास गुण हैं, जिसमें निम्नांकित प्रमुख हैं -
(i) वस्तुवादी प्रवृत्ति एक जैविक तथ्य है, जोकि व्यक्ति की न्यून आवश्यकताओं जैसे भूख, प्यास, हवा आदि की आवश्यकता, की पूर्ति करती ही है। साथ-ही-साथ शरीर के अंगों की संरचनाओं एवं कार्यों को भी सुदृढ़ एवं मजबूत बनाती है।
(ii) रोजर्स का मत है कि वस्तुवादी प्रवृत्ति सभी तरह के प्राणियों अर्थात मानव एवं पशुओं दोनों में ही होती है।
(iii) वस्तुवादी प्रवृत्ति एक ऐसी कसौटी के रूप में कार्य करती है, जिस पर रखकर व्यक्ति अपनी जिन्दगी की अनुभूतियों की परख या मूल्यांकन करता है।
(3) व्यक्तित्व का विकास - रोजर्स ने व्यक्तित्व के विकास का वर्णन विभिन्न चरणों या अवस्थाओं में नहीं किया है। उन्होंने व्यक्तित्व के विकास में आत्मन् तथा व्यक्तित्व की अनुभूतियों में संगतता को महत्वपूर्ण बतलाया है। जब इन दोनों में अर्थात व्यक्ति की अनुभूतियों तथा उनके आत्म-संप्रत्यय के बीच अन्तर हो जाता है तो इससे व्यक्ति में चिन्ता उत्पन्न होती है। असंगतता के अन्तर से उत्पन्न इस चिन्ता की रोकथाम के लिए व्यक्ति कुछ खास प्रक्रियाएँ प्रारम्भ कर देता है। इसे प्रतिरक्षा की संज्ञा दी गयी है। रक्षात्मक उपायों का अधिक प्रयोग करने से व्यक्तित्व में दृढ़ता का विकास हो जाता है। वैक्तिकीकरण, क्षतिपूर्ति विभ्रम, गलत विश्वास तथा अन्य तंत्रिकातापी व्यवहार इस तरह की दृढ़ता से उत्पन्न होते हैं।
यदि व्यक्ति की अनुभूतियों एवं आत्म-प्रत्यय में कोई अन्तर नहीं होता है, तो इससे एक स्वस्थ व्यक्ति का विकास होता है। इस तरह से रोजर्स का तात्पर्य उन व्यक्तियों से होता है जो अपनी क्षमताओं एवं योग्यताओं का सही-सही प्रयोग करते हैं। रोजर्स ने पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति के निम्नांकित पाँच गुण बतलाए
(i) एक पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति अपनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति स्पष्ट शब्दों में करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी अनुभूतियों की माँगों पर ध्यान देते हैं और उसके अनुरूप व्यवहार करने की कोशिश करते हैं।
(ii) अपनी जिन्दगी के प्रत्येक क्षण का उपयोग ऐसे व्यक्ति सही अर्थ में करते हैं तथा प्रत्येक क्षण में कैसे रहना चाहिए, उसका उन्हें पूरा-पूरा ज्ञान होता है।
(iii) ऐसे व्यक्ति एक निश्चित विश्वास के साथ व्यवहार करते हैं और उन्हें अपने व्यवहार की सार्थकता पर पूर्ण विश्वास होता है। इसे रोजर्स ने जैविक विश्वास का नाम दिया है।
(iv) रोजर्स के अनुसार एक पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति की चौथी विशेषता आनुभाविक स्वतंत्रता है। आनुभाविक स्वतंत्रता से तात्पर्य व्यक्ति के इस अनुभूति से होता है कि वह कोई भी कार्य करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र होता है तथा प्रत्येक व्यवहार एवं उसके परिणाम के लिए वह स्वयं ही जिम्मेवार है।
(v) पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति की एक विशेषता यह भी है कि इसमें सर्जनात्मकता का गुण होता है। ऐसे व्यक्ति रचनात्मक ढंग से अपना समय व्यतीत करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ण भरपाई करने की कोशिश करते हैं। ऐसे व्यक्ति बदलती हुई परिस्थितियों के साथ रचनात्मक ढंग से समायोजन कर लेते हैं।
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