बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान : लोक प्रशासन
प्रश्न- आदेश की एकता सिद्धान्त के गुण बताते हुए इसकी समालोचनाओं पर भी प्रकाश डालिए।
सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. आदेश की एकता सिद्धान्त के प्रमुख गुण क्या हैं?
2. 'आदेश की एकता मात्र एक सैद्धान्तिक धारणा है, कैसे?
3. क्या आदेश की एकता सिद्धान्त को प्रशासन में सार्वदेशिक रूप से लागू किया जा सकता है?
उत्तर -
'आदेश की एकता सिद्धान्त' संगठन का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इसके तमाम गुण हैं तो वहीं इसकी कई कटु आलोचनाएँ की विचारकों द्वारा की जाती हैं। इसके गुणों व समालोचनाओं की विस्तृत विवेचना निम्नांकित शीर्षकों के अधीन सरलता से की जा सकती है -
आदेश की एकता सिद्धान्त के गुण - आदेश की एकता सिद्धान्त के गुणों का बखान करते हुए 'हेनरी फेयाफल' लिखते हैं कि - "यदि इस सिद्धान्त का उल्लंघन किया जाए तो सत्ता कमजोर होती है, अनुशासन खतरे में पड़ जाता है, व्यवस्था गड़बड़ा जाती है और स्थायित्व संकट में पड़ जाता है।"
वस्तुतः आदेशक की एकता सिद्धान्त के निम्नलिखित प्रमुख गुण बताए जा सकते हैं -
1. एक व्यक्ति एक स्वामी' की धारणा की स्थापना - आदेश की एकता सिद्धान्त का एक प्रमुख गुण यह है कि यह एक व्यक्ति एक स्वामी की धारणा को भली प्रकार स्थापित करता है। यह अवधारणा संगठन के सुगम एवं क्षमताशील संचालन में बहुत सहायक होती है। इस धारणा के तहत अधीनस्थों को अपने शीर्ष अधिकारियों के विषय में पता रहता है। उन्हें यह निश्चित रूप से पता होता है कि किस अधिकारी आदेशों का पालन उन्हें करना है। इसी प्रकार अधिकारियों को भी भली प्रकार पता रहता है कौन सा आदेश किस कार्मिक के जरिए पालित कराना है। इस प्रकार एक तरह की 'एक व्यक्ति- एक स्वामी' की स्थिति बन जाती है। इससे संगठन में कार्य-निष्पादन तत्परता के साथ होता है।
2. भ्रम की स्थिति से निजात - आदेश की एकता सिद्धान्त का यह भी गुण है कि इससे संभ्रम की स्थिति उत्पन्न नहीं हो पाती। इसमें आदेश के अनेक स्त्रोतों के स्थान पर एक स्त्रोत पर बल दिया जाता है। इससे आदेश एक सीधी रेखा के निरन्तर बिना किसी भ्रम के चलते रहते हैं।
3. कार्यकुशलता का विकास - आदेश की एकता सिद्धान्त का एक प्रमुख गुण यह भी है कि इससे कार्यकुशलता का विकास होता है। चूँकि इसमें आदेश जारी करने के निश्चित स्त्रोत होते हैं तथा आदेश पालन के निश्चित पालनकर्ता निर्धारित होते हैं, अतः इससे उत्तरदायित्व स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाता है। इसके परिणामस्वरुप संगठन की कार्यकुशलता का विकास होता है।
4. प्रशासकीय कार्यों में शीघ्रता - आदेश की एकता सिद्धान्त के समर्थकों का यह भी मानना है कि इससे प्रशासकीय कार्यों के निस्तारण में अनुचित विलम्ब की स्थिति से बचा जा सकता है। आदेशों के क्रमिक निर्वाह व निश्चित उत्तदायित्व के चलते प्रशासकीय कार्य शीघ्रता से निष्पादित होते हैं।
वस्तुतः आदेश की एकता सिद्धान्त को यदि कुशलता से लागू किया जाए तो इसके उपर्युक्त गुणों से इन्कार नहीं किया जा सकता। जैसाकि 'लूथर गुलिक' लिखते हैं कि - "यदि इस सिद्धान्त का कठोरता से पालन किया जाए तो हो सकता है कि कुछ घातक परिणाम पैदा होंगे किन्तु ये परिणाम मतिभ्रम, अकार्यकुशलता और अनुत्तदायित्व की तुलना में कुछ भी नहीं हैं जो इस सिद्धान्त का उल्लंघन करने पर पैदा होंगे।"
आदेश की एकता सिद्धान्त की समालोचनाएँ - आदेश की एकता सिद्धान्त की अनेक आधारों पर आलोचनाएँ भी की जाती हैं। इसकी कुछ प्रमुख समालोचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. सार्वदेशिकता का अभाव - आदेश की एकता सिद्धान्त की सर्वप्रथम आलोचना यह की जाती है कि इस सिद्धान्त का मानना है कि आदेश की श्रृंखला में एक व्यक्ति को केवल एक अधिकारी के ही आदेश मानने चाहिए, इस बात को प्रशासन में सार्वदेशिकता के साथ लागू नहीं किया जा सकता। इसके कुछ अपवाद भी होते हैं। उदाहरण के लिए प्रावधिक, या तकनीकी कर्मचारियों को लिया जा सकता है, जैस एक सहायक यन्त्री। आदेश की एकता सिद्धान्त के अनुसार उसे अपने जिले के सामान्य उच्च अधिकारी (जिला न्यायाधीश) की आज्ञा का पालन करना चाहिए। लेकिन चूँकि वह एक तकनीकी कर्मचारी है, इसलिए उसे अपने तकनीकी उच्च अधिकारी (कार्यपालन मन्त्री) से ही निर्देश मिलना चाहिए। ऐसी समस्या का समाधान यह निकाला जाता है कि अधीनस्थ तकनीकी कर्मचारी तकनीकी मामलों में उच्च तकनीकी पदाधिकारियों से ही आदेश ग्रहण करे, किन्तु अन्य सामान्य बातों के विषय में वे सामान्य उच्च अधिकारी के अधीन रहे। इस प्रकार स्पष्ट रूप से आदेश की एकता सिद्धान्त में सार्वदेशिकता का अभाव दृष्टिगोचर होता है।
2. तानाशाही की प्रकृति का प्रशासन - आदेश की एकता सिद्धान्त की एक प्रमुख आलोचना यह भी की जाती है कि यह तानाशाही प्रकृति के प्रशासन को जन्म देता है। इस सन्दर्भ में 'टेलर' लिखते हैं कि "इससे सैनिक प्रकार की चौधराहट का विकास होता है। एक व्यक्ति को अपने कार्य के लिए कई अधिकारियों से निर्देश प्राप्त करना हितकर होता है। इसके बिना एक कर्मचारी दक्ष नहीं हो सकता। जबकि 'आदेश की एकता' सिद्धान्त में इस मामले में एक प्रकार की तानाशाही देखने को मिलती है।
3. अनुभाविक तौर पर अनुपयोगी, काल्पनिक एवं असम्भव - सेकलर हडसन' ने इसका विरोध अनुभव के आधार पर किया है। उसकी मान्यता है कि अनुभव ने इसे अनुपयोगी असम्भव तथा काल्पनिक सिद्ध किया है। अनका मत है कि "प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक उच्च अधिकारी की अवधारणा जटिल सरकारी स्थितियों में शायद ही कहीं वास्तव में पाई जाती है। शासन में स्थित प्रशासन के कई स्वामी रहते हैं और वह उनमें से किसी की भी अपेक्षा नहीं कर सकता।
4. एक कोरी सैद्धान्तिक धारणा आदेश की एकता - सिद्धान्त के आलोचकों का दावा है कि अनेक सिद्धान्तों की तरह आदेश की एकता की मात्र एक सैद्धान्तिक धारणा है जो व्यवहारिक रूप से संगठनों में लागू नहीं हो पाती। समितियों, आयोगों और स्वायत्त संगठनों में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है। अनुसंधान प्रयोगशालाओं जैसे संगठनों में इस सिद्धान्त को लागू करने से नुकसान ही होगा। नित नए तकनीकी अविष्कारों वाले तेजी से बदलते समाज में ऐसी धारणा महत्वहीन ही होती है।
इस प्रकार आधुनिक लेखकों की दृष्टि में यह सिद्धान्त पुराना पड़ गया है। विशेषज्ञों की संख्या एवं महत्व में वृद्धि तथा प्रशासन के क्षेत्र में बढ़ती हुई जटिलता ने आदेश की एकता के सिद्धान्त को लगभग समाप्त कर दिया है। इस सिद्धान्त के प्रबल समर्थक रहे लूथर गुलिक जैसे विद्वानों ने भी यह बात स्वीकार की है कि इस सिद्धान्त का कड़ाई से पालन करने में बड़ी बेहूदी स्थितियों सामने आ सकती हैं। फिर भी, इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इस सिद्धान्त के पालन से संगठन में एकता और स्थिरता बनी रहती है। यह नियंत्रण को बड़े प्रभावशाली रूप में स्थापित करता है, संगठन को अधिक शक्तिशाली व कार्यकुशल बनाता है।
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- प्रश्न- 'लोक प्रशासन' के अर्थ और परिभाषाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लोक प्रशासन की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतांत्रिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- निजी प्रशासन के दो प्रमुख लाभ बताइए।
- प्रश्न- लोक प्रशासन के महत्व पर विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक राज्यों में लोक प्रशासन के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विकासशील देशों में लोक प्रशासन की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संगठन का अर्थ स्पष्ट करते हुए, इसके आधारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संगठन के आधारों को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- औपचारिक संगठन की विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- प्रशासन में स्टाफ अभिकरण के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्टाफ अभिकरणों के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्टाफ अभिकरण के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- विकास प्रशासन के विभिन्न तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रकृति एवं साधन बताइए।
- प्रश्न- विकास प्रशासन के सामान्य अभिप्राय के सम्बन्ध में प्रमुख विवादों (भ्रमों) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकासात्मक नीतियों को लागू करने में विकास प्रशासन कहाँ तक उपयोगी है?
- प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
- प्रश्न- विकास प्रशासन के 'स्थानिक आयाम' को समझाइए।
- प्रश्न- विकास प्रशासन की धारणा के विकास के दूसरे चरण में विकास सम्बन्धी कि मान्यताओं का उदय हुआ?
- प्रश्न- विकास प्रशासन के समय अभिमुखी आयाम पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास प्रशासन और प्रशासनिक विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका से आप क्या समझते हैं और उनके मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय प्रशासन के विकास का विश्लेषणात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजनीति क्या है? मानव सामाजिकता में राजनीतिक भूमिका लिखिए।
- प्रश्न- वर्तमान भारतीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।