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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2796
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान : लोक प्रशासन

अध्याय - 6

संगठन के सिद्धान्त

(Theories of Organisation).

प्रश्न- पदसोपान प्रणाली के गुण व दोष बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।

सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पदसोपान प्रणाली के चार प्रमुख गुण बताइए।
2. पदसोपान प्रणाली के प्रमुख दोष क्या हैं?
3. पदसोपान प्रणाली का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

पदसोपान प्रणाली संगठन का एक सर्वव्यापी महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इसका प्रत्येक सभी प्रकार के संगठनों में किया जाता है। जैसाकि डा. एम. पी. शर्मा लिखते हैं कि - "यह एक धागा है जिसके द्वारा विभिन्न हिस्से एक साथ सिले जाते हैं। अतः पदसोपान एक लाभदायक प्रणाली है परन्तु साथ ही साथ इसके कई दोष भी हैं। पदसोपान प्रणाली के प्रमुख गुण-दोषों की विवेचना करते हुए इसका मूल्यांकन निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है -

पदसोपान प्रणाली के गुण - पदसोपान प्रणाली के गुणों का उल्लेख करते हुए 'साइमन' स्मिथबर्ग और थाम्पसन' के अनुसार "पदसोपान सुविधाजनक है, उद्देश्यों का कार्य विभाजन द्वारा प्राप्त करवाता है तथा मतभेदों को दूर करके संगठन में सामंजस्य करता है।"

वस्तुतः विचारकों द्वारा पदसोपान प्रणाली के निम्नलिखित गुण बताए जाते हैं-

1. आदेश की एकता सिद्धान्त का पालन - इस सिद्धान्त का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण यह है कि इसमें आदेश की एकता के सिद्धान्त को अपनाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की जानकारी रहती है कि उसका तत्कालीन उच्च अधिकारी कौन है, जिसकी आज्ञा का उसे पालन करना है। प्रत्येक कर्मचारी केवल एक ही व्यक्ति के अधीन रहकर कार्य करता है और उसी के प्रति उत्तरदायी रहता है। इससे संगठन का कार्य सुचारु रूप से चलता है।

2. नेतृत्व का निर्धारण - संगठन को पदसोपान द्वारा भिन्न-भिन्न स्तरों में विभाजित करके यह निश्चित कर दिया जाता है कि कौन किसका नेतृत्व करेगा तथा निर्णयों के लिए कौन उत्तरदायी होगा।

3. समग्रीकरण - पदसोपान से संगठन की इकाइयाँ परस्पर एकीकृत और सुसम्बद्ध रहती हैं। इस प्रकार इसमें एक समग्रीकरण पाया जाता है।

4. उचित मार्ग द्वारा कार्य - इसके द्वारा प्रशासन और कार्यालयीन पद्धति के महत्वपूर्ण सिद्धान्त 'उचित मार्ग द्वारा' (Through Proper Channel) का विकास हुआ है। इस पद्धति में प्रत्येक मामला हर स्तर में से गुजरता हुआ ऊपर तक पहुँचता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे उच्च अधिकारियों के बहुमूल्य समय की बड़ी बचत होती है।

5. उत्तरदायित्व का प्रत्यायोजन - इस प्रक्रिया द्वारा उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अपनी कुछ शक्तियाँ हस्तान्तरित अथवा प्रत्यायोजित कर देता है। इसे सत्ता का प्रत्यायोजन कहते हैं। इससे सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो जाता है और निचले स्तरों पर आवश्यक कार्य किए जाने से सर्वोच्च पदाधिकारी का कार्यभार बहुत हल्का हो जाता है, वह अधिक दक्षतापूर्वक अपने संगठन का संचालन कर सकता है।

6. प्रशासन में सूचना माध्यम का कार्य - इसके अंतर्गत प्रशासन के संगठन की विभिन्न सोपानें सूचना माध्यम के रूप में कार्य करती हैं। इसके द्वारा ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर की ओर संसार का मार्ग प्रशस्त किया जाता है। इसके द्वारा प्रत्येक कर्मचारी को यह मालूम हो जाता है कि उसको अपने कार्यों में किस प्रकार आगे बढना चाहिए।

7. समन्वय - यह सिद्धान्त समूचे विभाग की कार्यवाहियों में समन्वय स्थापित करने में सफल होता है। चूँकि सत्ता के अंतिम सूत्र शिखर के अधिकारी के पास रहते हैं, इसलिए वह विभाग की विभिन्न शाखाओं की गतिविधियों में तालमेल बैठा सकता है।

पदसोपान पद्धति के दोष - पदसोपान पद्धति के तमाम गुणों के साथ-साथ इसमें कई दोष भी पाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

1. कार्य में विलम्ब - इस पद्धति का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें कार्य में विलम्ब होता है। इसमें प्रत्येक पत्रावली को हर स्तर के अधिकारियों के माध्यम से होकर गुजरना होता है, प्रत्येक अधिकारी के यहाँ पत्रावली पर आवश्यक कार्यवाही करने में कुछ समय लगता है। अतः इस पद्धति में निर्णय लेने में काफी देर लग जाती है।

2. लालफीताशाही व नौकरशाही को बढ़ावा - पदसोपान पद्धति का एक प्रमुख दोष यह है कि इससे प्रशासन में लालफीताशाही एवं नौकरशाही जैसी विकृतियों को बढ़ावा मिलता है। अधिकारी व कर्मचारी फाइल के उचित माध्यम से आने का हवाला देकर अनुदार व कठोर रवैया अपनाने लगते हैं।

3. औपचारिकता को बढ़ावा - पदसोपान पद्धति का एक बड़ा दोष यह भी है कि इसमें अति- औपचारिकता का समावेश होता है। इसके कारण प्रशासन की प्रवृत्ति मानवीय न होकर कठोर हो जाती है। इससे सौहार्दपूर्ण मानवीय व संवेदनपूर्ण सम्बन्धों का विकास नहीं हो पाता। प्रत्येक मामले पर तभी विचार किया जाता है और आवश्यक कार्यवाही की जाती है जब वह 'उचित माध्यम' से उच्च अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। इस अति औपचारिक प्रवृत्ति के चलते विभिन्न समस्याओं के तत्काल विस्तारण में अनावश्यक रूप से विलम्ब होता है।

4. भ्रष्टाचार व कर्त्तव्यविमुखता को बढ़ावा - पदसोपान पद्धति को एक अन्य प्रमुख दोष यह है कि इसमें भ्रष्टाचार को आसानी से बढ़ावा मिल जाता है। अधिकारी व कर्मचारी औपचारिकता व उचित मार्ग का हवाला देकर आसानी से अपने कर्त्तव्यों से इतिश्री कर लेते हैं। व्यक्ति औपचारिकताओं के जाल से बचने के लिए रिश्वत व प्रलोभन का प्रयोग करने लगता है और इस प्रकार भ्रष्टाचार आसानी से पनपने लगता है।

पदसोपान पद्धति का मूल्यांकन - पदसोपान पद्धति के गुण-दोषों के आधार पर हमें इसके दोनों पक्ष दिखाई पड़ते हैं। इसके सकारात्मक पक्ष में हम देखते हैं कि पदसोपानीय सिद्धान्त संगठन के निर्माण की सुसम्बद्ध व्यवस्था प्रदान करता है। इसमें सत्ता और उत्तरदायित्व का स्पष्ट निर्धारण रहता है जोकि संगठनात्मक कार्यप्रणाली को सुविधाजनक बना देता है। यह संगठन में कार्य विकासन करने और विभिन्न कार्यों को एकीकृत करने का उचित उपाय है। इस पद्धति में किसी भी 'पद' की अवहेलना की सम्भावनाएँ नगण्य होती हैं।

वहीं दूसरी ओर पदसोपानीय पद्धति का नकारात्मक पक्ष भी दिखाई पड़ता है। पदसोपानीय पद्धति में 'उचित मार्ग का नियम कार्यों में आनावश्यक विलम्ब उत्पन्न करता है। इससे प्रशासन में अति- औपचारिकता उत्पन्न हो जाती है, जोकि लालफीताशाही व नौकरशाही को जन्म देती है। इसी प्रकार पदसोपान पद्धति में अधिकारी संगठन व उसके उद्देश्यों की बजाय अपने पद और अधिकारों को अधिक महत्व देने लगते हैं। यह प्रवृत्ति कार्य प्रवाह में अवरुद्धता उत्पन्न करती है। पदसोपान पद्धति में केन्द्रीकृत सत्ता का विस्तार की पाया जाता है, जिससे निचले स्तरों पर स्थित अधिकारी वर्ग में निराशा पनपने लगती है। इस प्रकार पदसोपान पद्धति के तमाम् सकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।

अन्ततः दोनों पक्षों पर दृष्टिपात् करते हुए यह कहा जा सकता है कि पदसोपान पद्धति के यदि लाभ हैं तो नुकसान भी हैं। अतः यदि विभिन्न सुधारात्मक उपायों द्वारा इसके नकारात्मक पक्षों व दोषों को समाप्त किया जा सके तो निःसन्देह यह संगठन की श्रेष्ठ प्रणाली सिद्ध हो सकती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- 'लोक प्रशासन' के अर्थ और परिभाषाओं की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- लोक प्रशासन की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- लोकतांत्रिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्रशासन' शब्द का प्रयोग सामान्य रूप से किन प्रमुख अर्थों में किया जाता है?
  6. प्रश्न- "लोक प्रशासन एक नीति विज्ञान है" यह किन आधारों पर कहा जा सकता है?
  7. प्रश्न- लोक प्रशासन का महत्व बताइए।
  8. प्रश्न- प्रशासन के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र का 'पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण' की व्यख्या कीजिये।
  10. प्रश्न- लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने के क्या कारण हैं?
  11. प्रश्न- एक अच्छे प्रशासन के गुण बताइए।
  12. प्रश्न- विकासशील देशों में लोक प्रशासन की चुनौतियाँ बताइये।
  13. प्रश्न- 'लोक प्रशासन में सैद्धान्तीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति', टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- कार्मिक प्रशासन के मूल तत्व क्या हैं?
  15. प्रश्न- राजनीतिज्ञ एवं प्रशासक के मध्य अन्तर लिखिए।
  16. प्रश्न- शासन एवम् प्रशासन में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  17. प्रश्न- अनुशासन से क्या तात्पर्य है? लोक प्रशासन में अनुशासन के महत्व को दर्शाइए।
  18. प्रश्न- भारत में लोक सेवकों के आचरण को अनुशासित बनाने के लिए किए गए प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- लोक सेवकों को अनुशासन में बनाए रखने के लिए उन पर लगाए गए प्रतिबन्धों का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- किसी संगठन में अनुशासन के योगदान पर टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- प्रशासन में अनुशासनहीनता को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं?
  22. प्रश्न- "अनुशासन में गिरावट लोक प्रशासन के लिए चुनौती" इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  23. प्रश्न- लोक प्रशासन से आप क्या समझते हैं? निजी प्रशासन लोक प्रशासन से किस प्रकार भिन्न है?
  24. प्रश्न- "लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन में अनेकों असमानताएँ होने के बावजूद कुछ ऐसे बिन्दू भी हैं जो उनके बीच समानताएँ प्रदर्शित करते हैं।' कथन का परीक्षण कीजिए।
  25. प्रश्न- निजी प्रशासन में लोक प्रशासन की अपेक्षा भ्रष्टाचार की सम्भावनाएँ कम है, कैसे?
  26. प्रश्न- निजी प्रशासन के नकारात्मक पक्षों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- लोक प्रशासन की तुलना में निजी प्रशासन में राजनीतिकरण की सम्भावनाएँ न्यूनतम हैं, कैसे?-
  28. प्रश्न- निजी प्रशासन के दो प्रमुख लाभ बताइए।
  29. प्रश्न- लोक प्रशासन के महत्व पर विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- आधुनिक राज्यों में लोक प्रशासन के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिए।
  31. प्रश्न- विकासशील देशों में लोक प्रशासन की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- संगठन का अर्थ स्पष्ट करते हुए, इसके आधारों को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- संगठन के आधारों को स्पष्ट कीजिए।
  34. प्रश्न- संगठन के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए। औपचारिक संगठन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  35. प्रश्न- औपचारिक संगठन की विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- अनौपचारिक संगठन से आप क्या समझते हैं? इनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- संगठन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- संगठन के यान्त्रिक अथवा शास्त्रीय दृष्टिकोण (उपागम) को स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- पदसोपान प्रणाली के गुण व दोष बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  41. प्रश्न- संगठन के आदेश की एकता सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- आदेश की एकता सिद्धान्त के गुण बताते हुए इसकी समालोचनाओं पर भी प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- 'प्रत्यायोजन' से आप क्या समझते हैं? प्रत्यायोजन को परिभाषित करते हुए इसकी आवश्यकता एवं महत्व को बताइए।
  44. प्रश्न- प्रत्यायोजन के विभिन्न सिद्धान्तों एवं प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- संगठन के सिद्धान्तों के विशेष सन्दर्भ में प्रशासन को लूथर गुलिक एवं लिंडल उर्विक के योगदान की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र में एल्टन मेयो द्वारा प्रस्तुत मानव सम्बन्ध उपागम पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- हरबर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सम्बन्धी मॉडल की व्याख्या कीजिए।
  48. प्रश्न- हर्बर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सिद्धान्त का लोक प्रशासन में महत्व पर प्रकाश डालिए।
  49. प्रश्न- नौकरशाही का अर्थ बताइये और परिभाषाएँ दीजिए।
  50. प्रश्न- नौकरशाही की विशेषताएँ अथवा लक्षणों को बताइये।
  51. प्रश्न- निर्णयन का क्या अर्थ है? प्रशासन में निर्णयन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- हेनरी फेयाफल द्वारा उल्लिखित किये गये संगठन के सिद्धान्तों को बताइए।
  53. प्रश्न- 'गेंगप्लांक' पर टिप्पणी कीजिये।
  54. प्रश्न- हरबर्ट साइमन द्वारा 'प्रशासन की कहावत' किन्हें कहा गया है और क्यों?
  55. प्रश्न- ऐल्टन मेयो को मानव सम्बन्ध उपागम के प्रवर्तकों में शामिल किया जाता है, क्यों?
  56. प्रश्न- निर्णयन के अवसरों का वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- निर्णयन के लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- प्रतिबद्ध नौकरशाही की विवेचना कीजिए।
  59. प्रश्न- सूत्र एवं स्टाफ अभिकरण का आशय स्पष्ट कीजिए। सूत्र एवं स्टाफ अभिकरण में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- सूत्र या पंक्ति अभिकरण से क्या आशय है एवं सूत्र (लाइन) या पंक्ति अभिकरणों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- प्रशासन में स्टाफ अभिकरण के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- स्टाफ अभिकरणों के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- स्टाफ अभिकरण के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- सहायक अभिकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं स्टाफ अभिकरण से इनकी भिन्नता पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- मुख्य प्रशासक की प्रशासन में क्या स्थिति है? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- बजट से आप क्या समझते हैं? इसे परिभाषित कीजिए। भारत में बजट कैसे तैयार किया जाता है?
  67. प्रश्न- बजट किसे कहते है? एक स्वस्थ बजट के महत्वपूर्ण सिद्धान्त बताइए।
  68. प्रश्न- भारत में केन्द्रीय बजट का निर्माण किस प्रकार होता है?
  69. प्रश्न- वित्त विधेयक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  70. प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में राष्ट्रपति के विशेषाधिकार को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- बजट का महत्व बताइए।
  72. प्रश्न- भारत में बजट के क्रियान्वयन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- बजट के कार्य बताइये।
  74. प्रश्न- बजट के प्रकार लिखिए।
  75. प्रश्न- वित्त आयोग के कार्य बताइए।
  76. प्रश्न- योजना आयोग का प्रशासनिक ढाँचा क्या है?
  77. प्रश्न- शून्य आधारित बजट का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन से आप क्या समझते हैं? नवीन लोक प्रशासन के उदय के कारण बताते हुए इसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि का वर्णन कीजिए तथा नवीन लोक प्रशासन एवं दार्शनिक पृष्ठभूमि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए इसके लक्षणों का परीक्षण कीजिए।
  81. प्रश्न- नवीन लोक प्रबन्ध के अभ्युदय कैसे हुआ? नवीन लोक प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएँ बताते हुए इसके अंतर्गत सरकार की भूमिका में आए बदलावों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन की भावी सम्भावनाओं को व्यक्त कीजिए।
  83. प्रश्न- नव लोक प्रशासन का उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  84. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के प्रमुख तत्व कौन से हैं?
  85. प्रश्न- 'नवीन लोक प्रबन्ध' दृष्टिकोण के हानिकारक पक्षों पर प्रकाश डालिए।
  86. प्रश्न- नव लोक प्रबन्ध की पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण के समर्थक क्या आलोचना करते हैं?
  87. प्रश्न- नव लोक प्रबन्ध की हरबर्ट साइमन द्वारा प्रस्तुत आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- प्रशासकीय कानून का क्या अर्थ है? प्रशासकीय कानून के विकास के प्रमुख कारण बतलाइए।
  89. प्रश्न- प्रशासकीय अधिनिर्णय का क्या अर्थ है? इसके विकास के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिए।
  90. प्रश्न- भारत में जन शिकायतों के निस्तारण हेतु ओम्बड्समैन की स्थापना हेतु किए गए प्रयासों की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- प्रशासन पर न्यायिक नियन्त्रण से क्या तात्पर्य है? कोई न्यायालय प्रशासन के कार्यों को किस प्रकार अवैध घोषित कर सकता है?
  92. प्रश्न- भारत में प्रशासन पर न्यायिक नियन्त्रण के विभिन्न साधनों का परीक्षण कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में प्रशासकीय न्यायाधिकरणों को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?
  94. प्रश्न- प्रशासकीय न्यायाधिकरणों से क्या लाभ हैं?
  95. प्रश्न- प्रशासकीय न्यायाधिकरणों की हानियाँ बताइए।
  96. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के आधुनिक उपागमों को बताइये तथा व्यवहारवादी उपागमन को सविस्तार समझाइये।
  97. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के व्यवस्था उपागम का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- लोक प्रशासन के संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के पारिस्थितिकी उपागम का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- सुशासन से आप का क्या आशय है? सुशासन की विशेषताएँ लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय क्षेत्र में सुशासन स्थापित करने की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- भारत में सुशासन की स्थापना हेतु किये गये प्रयासों पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- विकास प्रशासन से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  104. प्रश्न- विकास प्रशासन से आप क्या समझते हैं? विकास प्रशासन के विभिन्न सन्दर्भों का उल्लेख करें।
  105. प्रश्न- विकास प्रशासन की धारणा के उद्भव व विकास को समझाते हुए विकास की विभिन्न रणनीतियों की विवेचना कीजिए।
  106. प्रश्न- विकास प्रशासन के विभिन्न तत्वों की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रकृति एवं साधन बताइए।
  108. प्रश्न- विकास प्रशासन के सामान्य अभिप्राय के सम्बन्ध में प्रमुख विवादों (भ्रमों) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  109. प्रश्न- विकासात्मक नीतियों को लागू करने में विकास प्रशासन कहाँ तक उपयोगी है?
  110. प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
  111. प्रश्न- विकास प्रशासन के 'स्थानिक आयाम' को समझाइए।
  112. प्रश्न- विकास प्रशासन की धारणा के विकास के दूसरे चरण में विकास सम्बन्धी कि मान्यताओं का उदय हुआ?
  113. प्रश्न- विकास प्रशासन के समय अभिमुखी आयाम पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- विकास प्रशासन और प्रशासनिक विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका से आप क्या समझते हैं और उनके मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  116. प्रश्न- भारतीय प्रशासन के विकास का विश्लेषणात्मक वर्णन कीजिए।
  117. प्रश्न- राजनीति क्या है? मानव सामाजिकता में राजनीतिक भूमिका लिखिए।
  118. प्रश्न- वर्तमान भारतीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

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