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तुलनात्मक सरकार और राजनीति : यू के, यू एस ए, स्विटजरलैण्ड, चीन
प्रश्न- कन्फ्यूशियसवाद क्या है? इसके प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
अथवा
कन्फ्यूशियसवाद का प्रवर्तक कौन है? उनके नीतिशास्त्र सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
कन्फ्यूशियसवाद
कन्फ्यूशियसवाद आशावादी मानवतावाद पर आधारित एक धर्म है, जिसका जीवन, सामाजिक संरचना और चीन के राजनीतिक दर्शन पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। कन्फ्यूशियसवाद के प्रवर्तक कन्फ्यूशियस थे जो एक चीनी विचारक और सामाजिक दार्शनिक थे। कन्फ्यूशियस का जन्म 551 ई.पू. में चीनी राज्य लू के कूफू शहर में हुआ था। वह गौतम बुद्ध के समकालीन थे और उनका जीवन काल सुकरात और प्लेटो के समय से ठीक पहले का माना जाता है।
कन्फ्यूशियस चोऊ साम्राज्य ( 1100 ई.पू. से 256 ई.पू.) के काल में जीवित थे। इस समय भूमि पर सामन्त भूस्वामियों का अधिपत्य था। नैतिक और सामाजिक व्यवस्था का पतन हो रहा था। कन्फ्यूशियस ने सांस्कृतिक-राजनैतिक व्यवस्था को सुधारने का एक ढंग निकाला। उनका मानना था कि नेताओं को प्राचीन साहित्य और दर्शन की शिक्षा देने से उनका सुधार हो सकता है। इसलिए वो एक ऐसा राजनैतिक रूप से प्रश्भावशाली पद चाहते थे जहाँ से वो अपने सिद्धान्तों को क्रियान्वित कर सकें, किन्तु ऐसा सम्भव न हो सका।
कन्फ्यूशियस का कन्फ्यूशियसवाद के प्रमुख सिद्धान्त
कन्फ्यूशियसवाद के मूलभूत सिद्धान्त निम्न हैं-
(1) जेन - सुनहरा नियम
(2) चुन-ताई - पुण्य करने वाला सज्जन व्यक्ति
(3) चेन-मिंग - समाज की भूमिकाओं को उचित रूप में अदा करना
(4) ते - पुण्य की शक्ति
(5) ली - आचरण के आदर्श मापदण्ड
(6) वेन - शान्तिपूर्ण कला का उपयोग करना (संगीत, काव्य इत्यादि)
कन्फ्यूशियस का नीतिशास्त्र
कन्फ्यूशियस की शिक्षा में तीन मुख्य सिद्धान्तों ली, यी और रेन पर बल दिया जाता है
(1) ली - ली शब्द के अनेक अर्थ हैं जिन्हें प्रायः मर्यादा, सम्मान, रीति या आचरण की आदर्श स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसे ही कन्फ्यूशियस ने धार्मिक, नैतिक और सामाजिक आचरण की आदर्श स्थिति माना जाता है। ली जीवन के तीन प्रमुख संकल्पनात्मक पहलुओं पर आधारित है। ये पहलू हैं विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं और पूर्वजों के लिए यज्ञों से सम्बन्धित समारोह, सामाजिक और राजनैतिक संस्थान तथा दैनिक व्यवहार के शिष्टाचार ली की अवधारणा यह निर्धारित करती है कि किसी दिए गस सम्बन्ध में आप कैसे आचरण करें। दूसरे शब्दों में ली को व्यक्ति की नैतिकता के रूप में देखा जा सकता है। व्यक्ति की नैतिकता इसके लिए उत्तरदायी होती है कि वह व्यक्ति किन्हीं परिस्थितियों में कैसा आचरण या प्रतिक्रिया करता है और साथ ही वह किस प्रकार दुनिया को देखता है। कन्फ्यूशियस ने समाज में सामंजस्य के लिए ली की अनिवार्यता की वकालत की है।
(2) यी - आरम्भिक कन्फ्यूशियसवाद में यी और ली निकटरूप से सम्बन्धित शब्द हैं। यी को सदाचार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है तथापि इसका अर्थ मात्र इतना भर किया जा सकता है कि किसी दिए गए सन्दर्भ में नैतिक रूप से क्या करना श्रेष्ठ होता है। यह शब्द स्व-हित में किए गए कार्य का विरोधी है। यद्यपि अपने हित को पूरा करना आवश्यक रूप से बुरा नहीं है। लेकिन यदि व्यक्ति अपने जीवन को यी द्वारा प्रस्तावित वृहत भलाई को बढ़ाने के लिए बने पथ का अनुसरण करने में लगाये, तो वह स्वयं को एक बेहतर और अधिक सदाचारी व्यक्ति बना सकता है। यहाँ इसका अर्थ है सही कारण से सही कार्य करना। प्रायः इस शब्द का उपयोग व्यक्तिगत लाभ या हित के विरोध के लिए किया जाता है परन्तु इसका वास्तविक अर्थ है- अहंकारवाद के विपरीत व्यवहार का सही सिद्धान्त। यह कुछ-कुछ न्याय के सिद्धान्त जैसा है। अर्थात् व्यक्ति को कैसा आचरण करना चाहिए के समान है। यी मूलतः पारस्परिकता पर आधारित है।
(3) रेन - जिस प्रकार ली के द्वारा निर्दिष्ट कार्यों को यी के संगत होना अनिवार्य है उसी प्रकार यी का रेन के मूल मूल्य से जुड़ा होना चाहिए। रेन दूसरों के प्रति अपने दायित्वों को पूरी तरह से पूरा करने का सद्गुण है। इस सद्गुण को अधिकतर परोपकार या मानवता या भलाई के रूप में परिभाषित किया जाता है और इसके लिए जो अन्य अर्थ दिए गए हैं उनमें 'प्राधिकारता और निःस्वार्थता' शामिल हैं।
जब कन्फ्यूशियस दावा करते हैं कि रेन ली पर वापसी है तो वह प्रत्येक व्यक्ति से यह कहते हैं कि सामाजिक मूल्यों के अनुरूप आचरण करें और इस प्रकार उस समाज या परम्परा में स्वीकार्य और सम्मानीय बनें जिसके वे सदस्य हैं। रेन का व्यक्ति सबसे पहले ऐसा सामाजिक व्यक्ति होता है जो नैतिक गुणों से युक्त होता है। रेन का सिद्धान्त एक और अन्य महत्वपूर्ण अवधारणा से निकट रूप से सम्बन्धित है चुनत्जु अर्थात् एक वास्तविक सज्जन व्यक्ति का विचार है। यह वह व्यक्ति है जो उच्चतम नैतिक मानकों के अनुसार जीता है। सज्जन व्यक्ति पाँच सद्गुणों को प्रदर्शित करता है- आत्म-सम्मान, उदारता, निष्कपटता, स्थायित्व और परोपकारिता। उसके सम्बन्धों को निम्न प्रकार से वर्णित किया जा सकता है। एक बेटे के रूप में वह हमेशा पितृभक्त रहता है। एक पिता के रूप में वह न्यायसंगत और दयालु होता है। एक अधिकारी के रूप में वह निष्ठावान और ईमानदार होता है। एक पति के रूप में सदाचारी और यथाप्रिय होता है और एक मित्र के रूप में वह ईमानदार और व्यवहारकुशल होता है।
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