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तुलनात्मक सरकार और राजनीति : यू के, यू एस ए, स्विटजरलैण्ड, चीन
अध्याय - 7
कन्फ्यूशियस एवं माओवाद
(Confucianism and Maoism)
प्रश्न- माओवाद क्या है? माओवाद के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
अथवा
माओ कौन थे? उनके प्रमुख सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए?
उत्तर -
माओवाद
माओ-त्से-तुंग आधुनिक माओवादी चीन और चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के निर्माता व संगठन करता थे। उनका चीन की वर्तमान शासन प्रणाली के निर्माण में एक महत्वपूर्ण योगदान था। माओ-त्से-तुंग चीन के एक कृषक परिवार से सम्बन्धित थे। उन्होंने चीन में अपनी शक्ति बढ़ायी और नये ढंग से मार्क्सवाद को चीन एवं एशियावादी देशों में फैलाया। उनके द्वारा दिये गये विचारों एवं सिद्धान्तों को माओवाद कहा जाता है। माओवाद के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. माओवाद का शक्ति सिद्धान्त - माओ-त्से-तुंग शक्ति के महान उपासक थे। उन्होंने 1911 की यांगशा क्रान्ति में प्रयुक्त शक्ति का व्यावहारिक प्रयोग देखा था। माओ का मानना था कि मनुष्यों को शक्ति के प्रयोग से ही बदला जा सकता है और सामाजिक परिवर्तन का आधार शक्ति ही है। इसलिए उसने साम्यवादियों को अधिक से अधिक शक्ति अर्जित करने की सलाह दी ताकि चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना हो सके। उनके अनुसार "राजनीतिक शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन्न होती है। इसलिए उसे सैनिक शक्ति से पृथक नहीं किया जा सकता है।' अर्थात सैनिक शक्ति और राजनीतिक शक्ति में गहरा सम्बन्ध है। माओ का मानना था कि विचारों से समाज का निर्माण होता है न कि आर्थिक परिस्थितियों से विचारों के बाद सैनिक शक्ति का महत्व है। सैनिक शक्ति से प्रत्येक वस्तु प्राप्त की जा सकती है। माओ ने अपनी पुस्तक "प्रत्येक वस्तु बन्दूक से जीती जा सकती है' में लिखा है। उसने स्वयं चीनी साम्यवादी क्रान्ति का संचालन करने में सशस्त्र सेना का प्रयोग किया।
2. माओ का युद्ध का सिद्धान्त - माओ युद्ध का समर्थक है, वह युद्ध और शक्ति प्रयोग को अनिवार्य मानता है। माओ के अनुसार वर्गयुक्त समाज में एक निश्चित दिशा में वर्गों, राष्ट्रों, राज्यों अथवा राजनीतिक समूहों में विरोधों के समाधान के लिए युद्ध संघर्ष का सबसे उच्चतम रूप रहा है। जिस प्रकार राष्ट्रीय क्षेत्र में साम्यवाद की स्थापना के लिए हिंसक क्रान्ति की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी साम्यवाद की स्थापना के लिए युद्ध अनिवार्य है। इसलिए माओ चीन को सदैव तृतीय विश्व युद्ध के लिए तैयार रहने को कहता है, क्योंकि तृतीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में साम्यवाद का प्रसार होगा।
माओ ने ऐतिहासिक आधार पर युद्धों को वैध ठहराया है। उसने कहा कि, "इतिहास में दो प्रकार के युद्धों क्रान्तिकारी व क्रान्ति विरोधी युद्धों का वर्णन मिलता है हम पहले के समर्थक व दूसरे के विरोधी हैं, केवल क्रान्तिकारी युद्ध ही पवित्र है। हम पवित्र राष्ट्रीय क्रान्तिकारी युद्धों के तथा पवित्र वर्ग विनाशक युद्धों के समर्थक है।'
3. माओ-त्से-तुंग के क्रांति का सिद्धान्त - माओ के क्रान्ति सिद्धान्त का आधार मार्क्सवाद- लेनिनवाद है। माओ ने सशस्त्र क्रान्ति को उतना ही महत्व दिया है जो मार्क्स और लेनिन के समय में था। उसने क्रान्ति के सिद्धान्त को नया व व्यावहारिक रूप देकर एक महान कार्य किया है। उसने क्रान्ति के दो पक्षों राष्ट्रवादी क्रान्ति जो साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध थी तथा लोकतान्त्रिक क्रान्ति जो सामन्तवादी जमींदारों के विरुद्ध थी, को मिलाकर एक किया है। माओ का मानना था कि ये दोनों क्रान्तियाँ एक-दूसरे पर निर्भर हैं। उसने लिखा है, "साम्राज्यवाद को जब तक उखाड़कर फेक नहीं दिया जाता सामन्तवादी जमींदारों के अत्याचारों का अन्त भी संभव नहीं है। इसी तरह साम्राज्यवादी शासन का अन्त करने के लिए शक्तिशाली सैनिक टुकड़ियों का गठन तब तक नहीं किया जा सकता जब तक किसानों को सामन्तवादी जमींदार वर्ग से संघर्ष के लिए तैयार नहीं कर लिया जाता है।' इस तरह माओ ने दोनो क्रान्तियों को मिलाकर अपना जनवादी क्रान्ति का सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
4. सांस्कृतिक क्रान्ति - 1958 में माओं ने सांस्कृतिक क्रान्ति का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। माओ ने इस बात पर जोर दिया कि मार्क्सवाद की विजय या चीन में साम्यवाद को मजबूत बनाने के लिए वैचारिक और भावनात्मक क्रान्ति की आवश्यकता है। विश्व में माओवाद की सफलता के लिए सभी माओवादियों में सांस्कृतिक एकता का होना आवश्यक है। माओ का विश्वास है कि साम्यवादी क्रान्ति एक लम्बा संघर्ष है, जिसमें आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तन के साथ-साथ सांस्कृतिक परिवर्तन भी आवश्यक है। माओ ने कहा कि "इसमें कोई शक नहीं है कि आर्थिक परिणाम प्रभावशाली सिद्ध हुए है, लेकिन साम्यवाद को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के लिए क्रान्ति का स्वरूप बहुमुखी होना भी आवश्यक है। 1966 से 1976 तक का दशक आधुनिक चीन के इतिहास में सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति का समय है। माओ ने सांस्कृतिक क्रान्ति द्वारा दल के महत्व को कम करने और जनता के महत्व को बढ़ाने का प्रयास किया, क्योंकि जन सहयोग के बिना सामाजिक कल्याण क्रार्यक्रम पूरा नहीं हो सकता और न ही सत्ता में स्थायित्व रहेगा। माओ ने इस क्रान्ति द्वारा लाल सेना का निर्माण किया। माओ ने चीन की राष्ट्रीय सेना में इस लाल सेना को मिलाकर अपनी राजनीतिक सत्ता पर पकड़ मजबूत की।
5. क्रान्तिकारी वर्गों के संयुक्त अधिनायकवाद का सिद्धान्त - माओ का विचार था कि चीन में उद्योग-धन्धों का पूर्ण विकास नहीं होगा, तब तक वहाँ मजदूरों की अधिनायकता स्थापित करना असम्भव है। इस संक्रमणकालीन दशा में सर्वहारा मजदूर वर्ग इस क्रान्ति को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अन्य समाजवादी विचारधारा वाले दलों का सहयोग प्राप्त कर सकता है। माओ ने इन वर्गों में मजदूर, किसान, दुकानदार तथा छोटे पूँजीपति तथा राष्ट्रीय पूँजीपति (जो समाजवाद में विश्वास रखते हैं।) को शामिल किया है। माओ ने कहा ये चार वर्ग साम्यवादी दल के नेतृत्व में कार्य करेंगे। इसमें कृषक वर्ग का योगदान सबसे अधिक हो सकता है, क्योंकि कृषक ग्रामीण क्षेत्र में क्रान्तिकारी अड्डे स्थापित कर सकते हैं और शहरों की तरफ कूच करके उद्योगों पर धीरे-धीरे अपना नियन्त्रण स्थापित कर सकते हैं। इसी तरह अन्य समाजवादी वर्ग भी संयुक्त अधिनायकतन्त्र की स्थापना में अपना योगदान देकर क्रान्ति के लक्ष्यों को स्थाई रूप से प्राप्त कर सकते हैं। जब सर्वहारा वर्ग उद्योगों को पूरी तरह अपने नियन्त्रण में ले लेगा तब संयुक्त अधिनायकतन्त्र धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा और चीन में सर्वहारा वर्ग का ही शासन होगा।
6. माओ-त्से-तुंग के लम्बी छलांगों का सिद्धान्त - माओ ने 1958 तक कम्युनिस्ट पार्टी में अपनी अत्यधिक शक्ति अर्जित कर ली थी। उसने देश के विकास के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये। उसने लम्बी छलांगों का सिद्धान्त प्रतिपादित करके तेज गति से औद्योगिक विकास करने की विचारधारा जनता के सामने पेश की। उसने एक साथ लघु, मध्यम व विशाल उद्योगों के विकास करने का आह्वान किया। माओ ने कहा है, "समाजवाद से साम्यवाद के संक्रमणकाल में हमें अपनी प्रगति समाजवाद के चरण पर ही नहीं रोक देनी चाहिए वरन साम्यवाद के अन्तिम लक्ष्य तक जारी रखनी चाहिए।"
7. व्यक्ति-पूजा का सिद्धान्त - माओ व्यक्ति-पूजा के सिद्धान्त का प्रतिष्ठापक है। उसने एक तरफ जो सैकड़ों फूलों को एक साथ खिलने की बात कही। दूसरी तरफ लोकतन्त्रीय केन्द्रीयवाद सर्वहारा वर्ग की तानाशाही आदि सिद्धान्तों के नाम पर साम्यवादी पार्टी में अपना पूर्ण नियन्त्रण व प्रभाव स्थापित किया। उसने चीन के शासन पर अपना प्रभुत्व इस प्रकार स्थापित किया कि वह चीन का आराध्य देवता बन गया।
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- प्रश्न- तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- तुलनात्मक राजनीति से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलनात्मक राजनीति और तुलनात्मक सरकार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उदार लोकतन्त्र से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- पूँजीवाद से आप क्या समझते हैं, इसके गुण-दोष क्या हैं?
- प्रश्न- समाजवादी राज्य क्या है, इसकी कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजवाद की परिभाषा दीजिए। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उपनिवेशवाद क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- विकासशील देशों में राज्य की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूढ़ियों से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूढ़ियों कानून से किस प्रकार भिन्न हैं? प्रमुख अभिसमयों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूढ़ियों का पालन क्यों होता है? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- राजपद से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी शक्तियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राजा एवं राजपद अन्तर को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मन्त्रिमण्डलात्मक प्रणाली का उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मन्त्रिमंडल के संगठन एवं मंत्रिमण्डल व्यवस्था की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मन्त्रिमंडल के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिटिश प्रधानमंत्री सारे शासन तंत्र की धुरी है।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्रेट ब्रिटेन की सम्प्रभुता की विवेचना कीजिए तथा इस प्रभुसत्ता की सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड सभा की रचना कार्यों व उनकी शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- इंग्लैंड की समिति प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके कितने प्रकार होते हैं?
- प्रश्न- कामन्स सभा क्या है? इसके संगठन एवं पदाधिकारियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कामन्स सभा की शक्तियों, कार्यों एवं व्यावहारिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कामन सभा के स्पीकर एवं उसकी शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश समिति व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटेन में विधेयकों का वर्गीकरण कीजिए एवं व्यवस्थापन प्रक्रिया पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- न्यायपालिका से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश न्यायपालिका के संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश न्याय व्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विधि का शासन ब्रिटिश संविधान का एक विशिष्ट लक्षण है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राजनीतिक दलों से क्या तात्पर्य है? राजनीतिक दलों की भूमिका एवं महत्व को समझाइये।
- प्रश्न- राजनीतिक दल प्रणाली के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटेन में राजनीतिक दलों के संगठन, कार्यक्रम एवं उनकी भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ग्रेट ब्रिटेन में राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश दल पद्धति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूढ़ियों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटेन में राजपद के ऐतिहासिक कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटेन में राजपद के राजनैतिक कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटेन में राजपद के मनोवैज्ञानिक कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटेन में राजपद के अन्तर्राष्ट्रीय कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिमण्डल की कानूनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिमण्डल की व्यावहारिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिमण्डल एवं क्राउन के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मन्त्रिमंडल का ब्रिटिश की संवैधानिक व्यवस्था में क्या महत्व है?
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- प्रश्न- मंत्रिमण्डल की महत्ता के कारण बताइये।
- प्रश्न- लार्ड सभा ने सुधार के क्या प्रयास किये?
- प्रश्न- क्या ग्रेट ब्रिटेन में संसद संप्रभु है?
- प्रश्न- 'संसदीय प्रभुता' के सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- विपक्षी दल की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रिवी काउन्सिल की न्यायिक समिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड सभा एवं प्रिवी काउन्सिल की न्यायिक समिति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश कानून कितने प्रकार से प्रयोग में लाये जाते हैं?
- प्रश्न- राजनीतिक दलों के कार्यों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- ब्रिटेन तथा फ्राँस की दलीय प्रणाली का तुलनात्मक विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- अमेरिका के राष्ट्रपति के कार्यों, शक्तियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अमेरिकी राष्ट्रपति की वृद्धि एवं उसके कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- अमेरिकी व ब्रिटिश मंत्रिमंडल की तुलना कीजिए।
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- प्रश्न- जैरीमैण्डरिंग पर संछिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सीनेट के महत्व पर प्रकाश डालिये।
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- प्रश्न- प्रतिनिधि सभा की दुर्बलता के कारण बताइये।
- प्रश्न- संघीय न्यायपालिका कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- संघीय न्यायलय क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जिला न्यायालय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संघीय अपील न्यायालय पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- अमेरिका में राजनीतिक दलों के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अमेरिका में राजनीतिक दलों की कमियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अमरीका और इंग्लैण्ड की दल- प्रणाली की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- अमेरिका के राजनीतिक दलों की कार्य प्रणाली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माओवाद क्या है? माओवाद के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- कन्फ्यूशियसवाद क्या है? इसके प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
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- प्रश्न- चीन के राज्य परिषद की वास्तविक स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चीन के राज्य परिषद की शक्ति एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जनवादी चीन में प्रोक्यूरेटोरेट पद की व्यवस्था का विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- स्विट्जरलैण्ड के वर्तमान संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्विट्जरलैण्ड के संविधान की संशोधन प्रकिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष लोकतन्त्र से आप क्या समझते हैं? स्विट्जरलैण्ड में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की सफलता के कारणों को इंगित कीजिए।
- प्रश्न- स्विट्जरलैण्ड में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्विट्जरलैंड की कार्यपालिका के बारे में बताइये।
- प्रश्न- स्विस व्यवस्थापिका के बारे में बताइये।