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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।

अथवा
पुरातात्विक के अध्ययन के लिये किन-किन क्षेत्रों का चुनाव किया गया और क्यों?
अथवा
अफगानिस्तान, बलूचिस्तान व सिन्धु के पुरातत्व से अवगत कराइये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. काल III किसे परिभाषित करता है?

2. कोटवीजी से प्राग्हड़प्पा काल पर टिप्पणी लिखिए।

3. अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्धु पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-

पुरातात्विक सामग्री और उसकी समस्याओं को जानने के लिये काल की दृष्टि से लगभग 300 से 500 ई.पू. तथा विस्तार की दृष्टि से गोदावरी के उत्तर में लगभग समस्त भारतवर्ष (भारत-पाक उपमहाद्वीप) को लिया गया है। सर्वेक्षण का मुख्य ध्येय, उभरने वाली समस्याओं का परिप्रेक्ष्य तथा उसके समाधान के लिये सूत्र प्रस्तुत करना है।

हिन्द-ईरान का सीमावर्ती भूखण्ड जो क्षेत्र मुख्यतः पहाड़ी है तथा हिमालय से संलग्न है। ये पर्वत - श्रृंखलाएँ भारत-पाक उपमहाद्वीप को प्राचीन पश्चिमी सभ्यताओं के केन्द्रों से पृथक करती थीं। इसमें सबसे प्रमुख क्षेत्र अफगानिस्तान का है, जहाँ से बहुमूल्य पुरातात्विक प्राप्त हुये।

अफगानिस्तान (मुंडीगाक) - दक्षिणी अफगानिस्तान में मुंडीगाक से अत्यन्त महत्वपूर्ण सांस्कृतिक क्रम प्राप्त हुआ है। वहाँ सबसे पहले बसे लोगों की बस्ती से हस्तनिर्मित गुलाबी मृदभाण्ड प्राप्त हुये हैं, जिसके थोड़े समय पश्चात् ही काल I में मृद्भाण्ड चाकनिर्मित बनने लगे जिनका पश्चिमी संस्कृतियों से साम्य था। इस काल (I) में तांबा भी इस्तेमाल होने लगा। काल I में मृद्भाण्डों तथा वास्तुकला में आम्री का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। कूबड़ सांड़ों की चित्रित लघु मूर्तियाँ भी मिलती हैं। यहाँ मुंडीगाक के II व III के पत्थर के सकेन्द्री डिजाइन वाली मोहरों का प्रादुर्भाव हुआ। काल II में न केवल पाश्चात्य संस्कृतियों से अनुपात में अलगाव स्पष्ट है। काल III में अकस्मात ईरान, आम्री और हड़प्पा के प्रभाव के फलस्वरूप मृद्भाण्डों तथा उपकरणों के प्रकार में विविधता दृष्टिगोचर होती है।

बलूचिस्तान - बलूचिस्तान प्रधानतः पहाड़ी तथा अर्धशुष्क इलाका है और मानसूनी दृष्टि की छाया के पश्चिम में पड़ता है। यहाँ जलवायु पूर्वी ईरान के समान है। बलूचिस्तान के हड़प्पा संस्कृति से स्थल (डूकी, डाबर कोट) अंतवर्ती क्षेत्र में स्थित है जिनका सिन्धु घाटी से पारिस्थितिकीय संबंध है। हाल ही में बलूचिस्तान क्षेत्र में फेयरसर्विस और डी कार्डी ने व्यापक रूप में अन्वेषण किया। इसी के फलस्वरूप हमें इन बलूची पुरैतिहासिक संस्कृतियों के विषय में विस्तृत ज्ञान हो गया है, लेकिन उसकी (दम्ब सदात को छोड़कर) पुरानी कार्यप्रणाली के कारण उसके कार्य का महत्व कम हो गया है। डी. कार्डी का कथन है कि कच्ची ईटों को न पहचान सकने के कारण उत्खनकों ने 25 से.मी. की इकाइयों में खोदा। इसलिये क्वेटा की घाटी से प्राप्त विविध प्रकार के अलंकृत तथा अनलंकृत मृद्भाण्डों का सहसंबंध कठिन है।

सिन्धु - सिन्धु घाटी में आम्री के उत्खनन से चार कालों का क्रम मिला है। काल I-A में हस्तार्शलित (अधिकांश बिना किनारे वाले) तथा ज्यामितिक डिजाइन वाले मृद्भाण्ड तथा तोगाऊ ठीकरे मिलते हैं। कुछ चाकनिर्मित भाण्ड, चार्ट के बने चाकू तथा तांबे के टुकड़े भी मिले हैं किन्तु कोई इमारत नहीं मिली। काल I बी. में कच्ची ईंटों की इमारतें, भिन्न डिजाइन, सपीठ थालियाँ, हड्डी तथा चर्ट के उपकरण मिलते हैं। काल I-सी में चार संरचनात्मक तल है। यह काल चरमोत्कर्ष का है। टीले में संभवत: श्रमिकों के आवास थे। काल I-डी यद्यपि अल्पकालीन था फिर भी इस काल में बलूचिस्तान और अफगानिस्तान से निरन्तर संबंध रहे। इस काल के पहले भाग में आम्री मृद्भाण्ड लगातार मिलते हैं किन्तु कुछ हड़प्पा मृद्भाण्ड-प्रकार भी आरम्भ होने लगे। काल III- बी में परकोटे के अवशेष तथा मंचों पर स्तम्भों के लिये गढ़े भी देखे जा सकते हैं। इस काल का अंत हिंसात्मक कारणों से हुआ प्रतीत होता है। काल III हड़प्पा का है, काल III-सी में मृद्भाण्डों के प्रकार तथा अलंकरण में नवीनता परिलक्षित होती है।

कोटदीजी से प्राग्हड़प्पा काल जहाँ हड़प्पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुये हैं। कोटदीजी और हड़प्पा संस्कृतियों का विभाजन एक भस्मसात स्तर द्वारा हुआ है। कोटदीजी संस्कृति की आरम्भिक अवस्था में मुख्यतः बिना गर्दन तथा बिना किनारे वाले आकार के बर्तन भी मिलते हैं। आरम्भ की पट्टी, बहुलपाश तथा अनेक रेखायें ही बाद में मत्स्यशल्क डिजाइन में विकसित हुयी।

राजस्थानी रेगिस्तान सिन्ध, राजस्थान, पंजाब व गुजरात के क्षेत्रों में एक विस्तृत भू-भाग में फैला है। जिसे अरावली पहाड़ियाँ दो भागों में विभाजित करती हैं। इसके उत्तर-पश्चिम में थार रेगिस्तान है और दक्षिण-पश्चिमी भाग में पहाड़ियाँ और पठार हैं। उत्तर में धग्गर और सरस्वती नदियाँ हैं, जो अब सूख गयी हैं। इस क्षेत्र में पूर्व-हड़प्पा व हड़प्पा स्थल मिलते है, तो दक्षिण पूर्व में माही व बनास नदियों के क्षेत्र में बनास संस्कृति के अवशेष मिलते हैं।

कालीबंगा में प्राग्हड़प्पा कालीन, एक दुर्ग की दीवार मिली है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राकृत तल से 160 से.मी. औसत ऊँचाई वाले तल पर, यह बस्ती कुछ समय के लिये संभवतः भूकम्प के कारण त्याग दी गयी थी। इस तल पर रेत की एक परत मिलती है, पर धीरे-धीरे टीले का संरचनात्मक स्वरूप बदला भी। काल 1 से ताँबे के केवल मात्र कुछ टुकड़े ही मिले है। लाल से लेकर गुलाबी रंग के हल्के, पतले मृदभाण्ड चाक निर्मित, जिन्हें निष्प्रभ-सी सतह पर काले व सफेद मिश्रित रंगों से अलंकरण किया गया है। इस पर निम्नलिखित विविध प्रकार के डिजाइन बने थे जैसे - जालीदार त्रिकोण, छन्नाकार शंख, मूँछनुमा द्वि-पट्ट, नतोदर किनारे वाले त्रिकोण और हिरन, साकिन, साँड़, बिच्छू, बतख आदि का नैसर्गिक चित्रण, मृद्भाण्डों के कंठे पर चौड़े पट्ट तितली, सैंधव शल्क, बुकरानियम के डिजाइन चित्रित हैं। मृदभाण्डों की रचना और अलंकरण की दृष्टि से, थापड़ ने इनको ए से एफ वर्गों में विभाजित किया है। सी वर्गों के भाण्डों का सतही रूप क्वेटा आर्द्र भाण्ड के अनुरूप है। उत्कीर्ण अलंकरण और अपेक्षाकृत मजबूत मृद्भाण्ड वर्ग D की विशेषताएँ हैं।

सारांशत - उत्तर-पश्चिम भारतवर्ष ने प्राप्त संचय सामग्री को (ए से एफ) विभिन्न वर्गों में बाँटा है। इन अपर्याप्त प्रमाणों के आधार पर कोई स्पष्ट चित्र नहीं उभरता लेकिन इस युग में सारे क्षेत्र को (मुंडीगाक, कोटदीजी आदि) ग्राम जीवन से नगरीकरण की ओर विकसित होते हुये देखा है। मुंडीगाक काल IV से दुर्ग व मंदिर के अवशेष मिलते हैं। मृद्भाण्डों पर कुम्हार के विशिष्ट अंकित चिन्ह लेखन शैली के प्रारम्भ का आभाष देते हैं। क्वेटा संस्कृति के स्थल नाल के उत्तर-कब्रगाह स्तर, आम्री के मध्यवर्ती काल, कोटदीजी के प्राग्हड़प्पा स्तर आदि से विभिन्न प्रमाण प्राप्त होते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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