प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
प्रभावित किया? व्याख्या कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारत में जाति प्रथा के गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए।
अथवा
जाति व्यवस्था का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
अथवा
जाति प्रथा के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने हिन्दू संस्कृति को कहाँ तक प्रभावित किया? उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
जाति व्यवस्था के गुण
(Merits of Caste System)
हिन्दू समाज में जाति प्रथा काफी समय से विद्यमान है। जो इस प्रथा के कारण समाज को लाभ भी अवश्य था जो निम्नलिखित हैं-
1. संस्कृति को अक्षुण्ण रखना - जाति व्यवस्था के कारण ही संस्कृति की रक्षा की जा सकती है।
2. स्वतंत्रता - जाति व्यवस्था के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार कार्य करता था। किसी व्यक्ति के ऊपर कोई बन्धन नहीं था।
3. एकता - वर्ण व्यवस्था के अनुसार व्यक्ति को अपने-अपने वर्ण में घुल मिलकर रहने की छूट थी और प्रत्येक वर्ण के लोग अपने-अपने व्यवसाय के संघ बना लेते थे, परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्णों में एकता की भावना दिखाई देती थी।
4. श्रम विभाजन - चार वर्णों द्वारा समाज का प्रत्येक कार्य बंट गया था और प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने कार्यों में निपुण हो गया था तथा कार्य सरलता से होने लगे थे। प्रत्येक कार्य में श्रेष्ठता आने लगी थी।
5. पैतृक व्यवस्था - वर्ण व्यवस्था पैतृक व्यवस्था बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। क्योंकि पुत्र अपने पिता की मृत्यु के बाद उसके व्यवसाय को अपना लेता था। अतः कला के क्षेत्र में अत्यधिक हुई थी।
6. भगवत् शक्ति की भावना - शक्ति की भावना जाति व्यवस्था के द्वारा ईश्वर के प्रति अनन्य भाव बना रहा और ईश्वर की आराधना द्वारा भगवान को प्राप्त करने और मोक्ष को प्राप्त करने में सफलता मिली।
7. रक्त शुद्धता - प्राचीन वर्ण व्यवस्था के द्वारा रक्त शुद्धता बनी रहती थी, क्योंकि कोई भी व्यक्ति एक वर्ण से दूसरे वर्ण में नहीं जा सकता था, रक्त की पवित्रता बनी रहती थी।
प्रो. मलानी द्वारा - वर्ण व्यवस्था के गुणों को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया गया है- “भारत की जाति व्यवस्था अत्यन्त संगठित है। एक जाति दूसरी जाति पर निर्भर है। चारों जातियों का परमात्मा की आज्ञा से अस्तित्व में आना, उनका एक-दूसरे से श्रेष्ठ होना और ब्रह्मा के विभिन्न अंगों से उनका उत्पन्न होने का विचार भी इस बात की पुष्टि करता है। अर्थात् इस कथन से उनके झलकता है। वास्तव में इस कथन का अभिप्राय यह है कि परमात्मा में विलीन हो संगठित होने का भाव जाने के बाद जाति के इन चार अंगों की उच्चता और नीचता विलीन हो जाती है जिस प्रकार शरीर की स्वस्थता के लिए शरीर का प्रत्येक अंग कार्य करता है, उसी प्रकार समाज को शरीर मान कर उसके इन चार अंगों की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए।
(Demerits of Caste System)
जाति व्यवस्था को दोषों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
1. घृणा की भावना - जाति व्यवस्था में जन्म के आधार होने के कारण एक वर्ण दूसरे वर्ण से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने लगा फलतः समाज में लोग एक-दूसरे से द्वेष की भावना रखने लगे।
2. उन्नति में बाधक - जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप व्यक्तियों को अपने ज्ञान और विवेक प्रदर्शन करने का समय नहीं मिला क्योंकि ब्राह्मण और क्षत्रिय पढ़-लिख गये परन्तु शूद्र निरक्षर ही रहे। अतः उनकी उन्नति नहीं हो सकी।
3. छुआछूत की भावना - छुआछूत की भावना ने भी संपूर्ण जाति व्यवस्था की जड़ें हिला दीं और परिणाम यह हुआ कि समाज में एक रोग की भांति छा गया। सही लोगों की उन्नति करने में बाधा पहुंची वहीं उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा भी नहीं मिली।
4. संकीर्ण दृष्टिकोण - जाति व्यवस्था के द्वारा हिन्दुओं में संकीर्णता की भावना ने जन्म लिया जिससे उसके हृदय में राष्ट्रप्रेम की भावना कम हो गयी तथा राष्ट्रीय विकास को आघात लगा।
बी. ए. स्मिथ के अनुसार - “जाति व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह भी है कि इसने (जाति प्रथा) भारतीयों को अन्य के साथ खुलेआम घुलने-मिलने नहीं दिया।”
आर. पी. मसानी के अनुसार - “जाति-प्रेम राष्ट्र-प्रेम की सीढ़ी का प्रथम चरण है। किन्तु यदि वह अपने उद्देश्य से हटकर साम्प्रदायिकता के गड्ढे में जा गिरे, राष्ट्रीयता के राह में रोड़ा बन जाये तो वह अग्राह्य है और समाज में फोड़े के समान होगा। जाति-निष्ठा अपने आप में एक गुण है, किन्तु जब तक उसके अस्तित्व से राष्ट्र निष्ठा को आघात न लगे, जातिगत प्रतिबन्ध स्वीकार्य है। यदि उससे विषमता और सामाजिक अन्याय को प्रोत्साहन न मिले। हमारे राष्ट्र का शूद्र वर्ग सदियों से इस प्रथा का शिकार बनता चला आया है। यह एक कलंक है। डॉ. श्रीराम शर्मा के अनुसार “जाति व्यवस्था एक खोटा सिक्का है। जिसे आधुनिक युग के हित के लिए फिर से टकसाल में ढालना होगा।"
इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन आर्यों की वर्ण व्यवस्था किस प्रकार की थी और इससे समाज को क्या हानि हुई।
भारतीय संस्कृति पर प्रभाव - समाज के इस संगठन के कारण हिन्दू जाति के रीति-रिवाज, विचार, धारणायें, विश्वास और कार्य-व्यवहार किन्हीं विशेष क्षेत्रों में बंध गये। इसका यह लाभ हुआ कि प्रत्येक व्यक्ति पैदा होते ही अपने लिए एक निश्चित स्थान, व्यवसाय, धर्म, पहले से ही ढली हुई मर्यादा को अपने लिए प्रस्तुत पाता था। विभिन्न जातियाँ अलग-अलग रहकर दृढ़ होती गयीं, शान्ति मर्यादा, आर्थिक जन-कल्याण की भी चिन्ता होने लगी, जाति प्रथा से भारत की संस्कृति पर भी प्रभाव पड़ा।
विभिन्न जातियाँ मिलकर सांस्कृतिक और आर्थिक असमानता एवं उनमें आपसी द्वेष और प्रतियोगिता उत्पन्न करती हैं जिससे जातिवाद का जन्म होता है। परिणामस्वरूप जातिवाद की भावना से प्रेरित होकर लोग अपनी जाति के लोगों को सभी सुविधाएँ देने के लिए अनेक अनुचित उपायों का सहारा लेते हैं। जाति प्रथा के ही परिणामस्वरूप प्रत्येक जाति का एक वैवाहिक समूह बन जाता है।
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- प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
- प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
- प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
- प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
- प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
- प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
- प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
- प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
- प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
- प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
- प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
- प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
- प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।