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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये। 

अथवा
ऐसा क्यों कहा जाता है कि “किशोरावस्था समस्याओं का घर है "? स्पष्ट कीजिये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. किशोरावस्था की संवेगात्मक समस्याएँ ।
2. किशोरावस्था में समायोजन की समस्याएँ ।
3. किशोरावस्था की सामान्य व्यवहारिक समस्याएँ ।
4. किशोरों में पहचान संकट |

उत्तर -  

किशोरावस्था की समस्याएँ
(Problems of Adolescence)

किशोरावस्था 'समस्याओं का घर' है। इस अवस्था में समस्याएँ ही समस्याएँ हैं। किशोर न केवल अपने माता-पिता, अपने संरक्षकों, शिक्षकों एवं समाज के लोगों के लिए समस्या है, वरन् वे स्वयं में भी एक बड़ी समस्या हैं। इनकी समस्याएँ अध्ययन, स्वास्थ्य, मनोरंजन, व्यवसाय का चुनाव, नौकरी, विपरीत लिंगों के प्रति आकर्षण, प्रेम विवाह की प्रबल इच्छा आदि किसी भी चीज से संबंधित हो सकती हैं। इसीलिए किशोरावस्था को 'समस्याओं की आयु' भी कहा जाता है।

किशोर के लिए तो सबसे बड़ी समस्या यह है कि न तो उसे बालक की दृष्टि से देखा जाता है और न ही वयस्क की दृष्टि से न तो उसकी गलतियों को नजर अंदाज किया जाता है और न ही वयस्कों की भाँति उसे मान-सम्मान, इज्जत व प्यार दिया जाता है। यह स्थिति किशोर के लिए अत्यंत दुखदायी होती है। फलतः उसमें चिन्ता, उद्विग्नता, अनिश्चितता, किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल माना जाता है। इस अवस्था में बालक में अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। इसी कारण सम्भवः स्टेनली हॉल ने कहा है, “किशोरावस्था अत्यन्त दबाव, तनाव, तूफान एवं संघर्ष की अवस्था है।"

इस अवस्था में किशोर बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था - दोनों अवस्थाओं में रहता है। ब्लेयर तथा जोन्स के अनुसार, “किशोरावस्था प्रत्येक बालक के जीवनमें वह समय है जिसका आरम्भ बाल्यावस्था के अन्त में होता है तथा समाप्ति प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में होती है।

अध्ययनों के आधार पर कहा गया है कि किशोरावस्था समस्याओं की आयु है। किशोरों की समस्याएँ परिवार, विद्यालय, मनोरंजन, भविष्य, व्यवसाय, विपरीत लिंग के लोगों आदि से सम्बन्धित हो सकती हैं। ये समस्याएँ आर्थिक, व्यक्तिगत और सामाजिक किसी भी स्तर की हो सकती है। किशोरावस्था को समस्याओं की आयु इसलिये भी कहा गया है, क्योंकि इस आयु में बालक अपने माता-पिता, संरक्षकों और अध्यापकों आदि के लिये एक समस्या होता है तथा साथ ही साथ वह अपनी नई विकास अवस्था के नये रोल्स के साथ समायोजन नहीं कर पाता, उसमें चिन्ता, उत्सुकता, अनिश्चितता और भ्रांति के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। यह किसी न किसी रूप में उसके लिये एक समस्या ही है। किशोरावस्था बढ़ने के साथ-साथ किशोरों की समस्याएँ जटिल होती जाती हैं। यदि किशोर इन समस्याओं को बिना विशेष परेशानी के हल कर लेता है, तो उसमें आत्म-विश्वास व उपयुक्ता की भावना विकसित होती है, अन्यथा विपरीत स्थिति में वह कुंठा का शिकार हो जाता है। किशोरावस्था के अन्त तक अधिकांश समस्याएँ धन, सेक्स व शैक्षिक उपलब्धि के सम्बन्ध में ही होती हैं। किशोरियों की कुछ गम्भीर समस्याएँ व्यक्तिगत आकर्षण, पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों के सम्बन्ध में होती हैं।

किशोरावस्था की मुख्य समस्यायें निम्नलिखित हैं-

(1) किशोरावस्था की संवेगात्मक समस्यायें - किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं का जीवन क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। बालक तथा बालिकायें अलग-अलग रहने लगते हैं। इस अवस्था में विपरीत लिंगीय झुकाव आरम्भ हो जाता है। वास्तव में किशोर तथा किशोरियों का एक नया जीवन आरम्भ होता है । उनको नित नये अनुभव होते हैं। इस अवस्था में अनेक व्यवहारों में परिपक्वता आ जाती है, परन्तु इस अवस्था में अनेक संवेगात्मक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं।

कील तथा ब्रुस का कथन है - “किशोरावस्था के आगमन का मुख्य चिन्ह संवेगात्मक विकास में तीव्र परिवर्तन है। "

(i) किशोरावस्था में प्रेम, क्रोध तथा सहानुभूति आदि संवेग स्थायी रूप धारण कर लेते हैं। किशोर इन संवेगों पर कोई नियन्त्रण नहीं रख पाता ।

(ii) किशोरावस्था में काम प्रवृत्ति तीव्र हो जाती है। इस कारण किशोर में संवेगात्मक अस्थिरता होती है। प्रवृत्ति संवेगात्मक व्यवहार पर विशेष प्रभाव डालती है।

(iii) उन परिस्थितियों में अन्तर आ जाता है, जो संवेग उत्पन्न करती हैं।

(iv) किशोरावस्था में किशोर के समक्ष एक गम्भीर समस्या यह होती है कि उसे न तो बालक समझा जाता है और न प्रौढ़। अतः उसे वातावरण से अनुकुलन करने में कठिनाई होती हैं। किशोर प्राय: इस अनुकूलन में असफल हो जाता है। ऐसी दशा में उसे निराशा का सामना करना पड़ता है। इसमें संवेगात्मक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।

(v) किशोर विभिन्न अवसरों पर एक ही परिस्थिति में अलग-अलग व्यवहार करता है। एक ही परिस्थिति में वह कभी प्रसन्न दिखलाई देता है, तो कभी उसी परिस्थिति में उदास दिखायी देता है।

(vi) जो किशोर शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं, उनमें संवेगात्मक अस्थिरता होती है। इस कथन से स्पष्ट होता है कि किशोरावस्था में अनेक संवेगात्मक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं। ये समस्यायें स्नायुमण्डल के असाधारण कार्य तथा एण्डोक्रायन ग्रन्थियों के कारण उत्पन्न होती हैं।

(2) शारीरिक विकास की समस्यायें - किशोरावस्था में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते हैं। कुछ बालकों का शारीरिक विकास जल्दी होता है और कुछ बालकों का देर से । कुछ बालक हकलाते हैं। कुछ बालकों को चश्मे की आवश्यकता होती है। इस प्रकार बालकों में किसी शारीरिक दोष के कारण उनमें हीन भावना ग्रन्थि बन जाती है।

(3) समायोजन की समस्यायें - समायोजन की समस्यायें-

(1) परिवार
(2) विद्यालय

से सम्बन्धित होती हैं।

परिवार से सम्बन्धित समस्यायें निम्नलिखित हो सकती हैं-

(i) किशोर किसी प्रकार के बन्धन में नहीं रहना चाहता।
(ii) किशोर का दृष्टिकोण परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति बदल जाता है।
(iii) किशोर स्वतन्त्र वातावरण चाहता है।
(iv) बालिकाओं की परिवार सम्बन्धी सभी समस्यायें और अधिक होती हैं।
(v) यदि किशोर को स्वतन्त्रता नहीं मिलती तो वह विद्रोह कर बैठता है।
(vi) किशोर परिवार के सदस्यों से झगड़ने लगता है।

विद्यालय से सम्बन्धित समस्यायें निम्नलिखित होती हैं-

(i) किशोर अपने साथियों के साथ समायोजन नहीं कर पाता ।
(ii) किशोर यह चाहता है कि अन्य बालक उसका आदर-सम्मान करें।
(iii) शिक्षकों का कटु व्यवहार भी किशोरों के लिए एक समस्या बन जाता है।
(iv) प्रौढ़ व्यक्तियों का आदर्श किशोर का आदर्श होता है।

(4) काम प्रवृत्ति सम्बन्धी समस्यायें - किशोरावस्था में काम - प्रवृत्ति अत्यधिक तीव्र हो जाती है। इसी कारण अनेक प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। इससे किशोर को वातावरण के साथ समायोजन करने में कठिनाई होती है। यदि कहा जाये कि किशोरावस्था में काम इच्छा सबसे अधिक समस्यायें उत्पन्न करती है, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी । किशोर की प्रथम और मुख्य समस्या 'काम' की होती है। यह अवस्था संघर्षों की अवस्था होती है। यह सबसे कठिन समय होता है। इस समय गुप्त काम-वासना फिर से जाग जाती है। काम सम्बन्धी मुख्य समस्यायें निम्नलिखित है-

(i) हस्त मैथुन,
(ii) सहलिंगीय सहवास,
(iii) विपरीत लिंगीय सहवास,
(iv) अश्लील चित्र बनाना,
(V) काम सम्बन्धी चेष्टायें करना तथा
(vi) रोमांस करना ।

(5) व्यावसायिक समस्यायें - किशोरावस्था में बालकों का जीवन क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। किशोर युवक व युवतियाँ अपना समूह बना लेते हैं। शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों के कारण वे कल्पनाशील होकर भविष्य के स्वप्न देखने लगते हैं। किशोर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है। वह अपने व्यवसाय के विषय में सोचने लगता है। किशोरियाँ अपने सुखद जीवन की कल्पनायें करने लगती हैं। चूँकि किशोर अनुभवहीन होते हैं, अतः उनके समक्ष अनेक समस्यायें आ जाती हैं। कभी-कभी बालकों को निराशा का सामना करना पड़ता है। किशोर के मस्तिष्क में इसी कारण हर समय तनाव रहता है।

सभी जानते हैं कि आज का नवयुवक शारीरिक श्रम से बचना चाहता है। देश में शिक्षित नवयुवकों में बेरोजगारी फैली हुई है। देश के सामने यह समस्या है कि आज के नवयुवक किस प्रकार अपने पैरों पर खड़े हो सकें। व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति को व्यक्तिगत सहायता प्रदान करने का वह सशक्त साधन है, जिससे किशोर स्वयं अपने लिये उपयुक्त व्यवसाय का चुनाव करता है। बहुधा व्यावसायिक निर्देशन प्राप्त करके व्यक्ति अपने भावी व्यवसाय के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय लेने में समर्थ हो जाता है। वह जिस व्यवसाय में प्रविष्ट होता है, उसमें वह प्रगति करता है। व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता आज के युग में बहुत अधिक है, क्योंकि आधुनिक युग में रोजगार की समस्या जटिल है। आज विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के लिये विशेष शिक्षा और प्रशिक्षण आवश्यक है।

(6) आर्थिक समस्या - किशोरावस्था में किशोर तथा किशोरियों का दैनिक व्यय बढ़ जाता है । किशोर धूम्रपान करने लगते हैं। किशोरियों को अपने फैशन के लिए धन की आवश्यकता होती है।

उनको जितने धन की आवश्यकता होती है, माता-पिता द्वारा उतना धन प्रदान नहीं किया जाता है। अभिभावक उतने धन की आवश्यकता भी अनुभव नहीं करते। फलस्वरूप किशोर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुचित साधन अपनाते हैं।

(7) भावात्मक स्थिरता प्रदान करना - किशोर तथा किशोरियों को भावात्मक स्थिरता प्रदान करना भी एक समस्या होती है। निम्नलिखित उपायों से भावात्मक स्थिरता लाई जा सकती है-

(i) अभिभावकों का योगदान - परिवार में पति-पत्नी के सम्बन्ध बालक के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। अतः माता-पिता को अपने सम्बन्ध मधुर रखने चाहियें। माता-पिता को बालक के साथ व्यवहार करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिये।

(ii) शिक्षक का योगदान - एक शिक्षक को ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार संवेगात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। शिक्षकों द्वारा बालकों को उनके संवेगों पर नियन्त्रण रखना सिखाया जाना चाहिये ।

(iii) रुझान - रुझान बालक के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। ये रुझान स्वार्थ से सम्बन्ध रखते हैं। एक स्वस्थ रुझान संवेगात्मक रुझान में सहायता प्रदान करता है । रुझान के सम्बन्ध में यह स्मरण रखना चाहिये कि "सफलता के लिए आशा की रुझान सफलता प्रदान करती है, परन्तु असफलता की रुझान निराशा में वृद्धि करती है और इसी कारण असफलता मिलती है।"

(iv) मार्गान्तीकरण - जिस प्रकार मूल प्रवृत्तियों का मार्ग परिवर्तन किया जाता है, उसी प्रकार संवेगों का भी मार्गान्तरण किया जा सकता है।

(v) शोधन - संवेगों के शोधन से संवेगात्मक स्थिरता प्राप्त की जा सकती है। अतः संवेगों के दमन के स्थान पर उनका शोधन किया जाना चाहिए।

(vi) देश-प्रेम - बालकों में देश-प्रेम की भावना जाग्रत की जानी चाहिए। इसके लिए शिक्षक को बालकों को देश-प्रेम की शिक्षा देनी चाहिए। देश-प्रेम भावात्मक एकता स्थापित कर सकता है। भावात्मक एकता का अर्थ है- देश या राष्ट्र के सभी निवासियों में विचारों तथा भावनाओं की एकता ।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

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