बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
उत्तर -
पूर्व प्रौढ़ावस्था की विशेषताएँ
पूर्व प्रौढ़ावस्था या जीवन के नये प्रारूपों, नये सामाजिक प्रत्याशाओं के साथ समायोजन करने वाली अवस्था है। समाज नव प्रौढ़ से नई भूमिका की आशा करता है । जैसे पति-पत्नी, अभिभावक, कमाने वाला घर का मुखिया समाज इन प्रौढ़ों से नये दृष्टिकोणों, नई रुचियों, नये मूल्यों की अपेक्षा करता है जो नई भूमिका के लिए आवश्यक है।
इस अवस्था तक किशोर बालक-बालिकायें अपनी स्नातक स्तर की पढ़ाई या तो पूरी कर लेते हैं या पढ़ाई करते हैं। अतः नई भूमिका, नये वातावरण के साथ समायोजन करना उन्हें एक कठिन कार्य लगता है।
पूर्व किशोरावस्था एवं मध्य प्रौढ़ावस्था की कई विशेषताएं उनके व्यवहार व प्रतिक्रिया के दौरान देखी जाती हैं जिन्हें निम्नानुसार बताया गया है-
1. पूर्व प्रौढ़ावस्था प्रजनीय अवस्था है-
(1) नव प्रौढ़ के लिए अभिभावकत्व उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।
(2) स्त्रियों के लिए यह भूमिका सम्पूर्णता की परिचायक है।
(3) पुरुषों के लिए यह भूमिका जिम्मेदारी, देखभाल, संरक्षण से सम्बंधित रहती है।
(4) जीवन के 20 या 30 के बीच नव प्रौढ़ या उत्तरदायित्व वहन करना शुरू कर देते हैं।
(5) पूर्व प्रौढ़ावस्था की समाप्ति तक कई दादा-दादी या नाना-नानी बन जाते हैं।
(6) प्रजनन की क्षमता का ह्रास 40 वर्ष की आयु तक धीरे-धीरे होने लगता है। इस तरह का परिवर्तन स्त्रियों में पहले देखा जाता है व पुरुषों में बाद में।
(7) प्रजनन की क्षमता स्त्री व पुरुष दोनों में अलग-अलग आयु में देखी जाती है।
2. पूर्व प्रौढ़ावस्था स्थायी रूप से बस जाने की आयु है-
जैसा कि देखा जाता है कि बाल्यावस्था व किशोरावस्था बढ़ने की आयु है वैसे ही प्रौढ़ावस्था स्थायी रूप से बसने की अवस्था है।
(1) नव प्रौढ़ नई भूमिका के अन्तर्गत माता-पिता कमाने वाला जैसी महत्वपूर्ण भूमिका करने लगते हैं।
(2) इन भूमिकाओं का दबाव इन्हें एक विशेष प्रकार के व्यवहार करने के लिए लम्बे समय तक करना पड़ता है जो धीरे-धीरे उनके व्यवहार में आ जाता है।
(3) व्यवहार का स्थायीपन दिखना शुरू हो जाता है। जो जीवन के अन्तिम दिनों उनके साथ रहता है।
3. पूर्व - प्रौढ़ावस्था समस्यात्मक आयु है-
(1) पूर्व प्रौढ़ावस्था में कई नई समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं।
(2) समस्याओं को हल ऐसे प्रौढ़ बिना किसी निर्देशन, सहायता व देखरेख के करना चाहते हैं। कई बार समस्याओं के साथ सामंजस्य बनाने का भी प्रयत्न उनके द्वारा किया जाता है। परन्तु समस्याएँ यथावत बनी रहती हैं।
(3) परिपक्वता प्राप्त करने के बाद अभिभावक वर्ग यह मानने लगते हैं कि युवा प्रौढ़ को अपनी समस्या अब स्वयं उन्हें हल कर लेनी चाहिए।
(4) युवा प्रौढ़ का अहम भी अपने बुजुर्गों से मदद लेने से रोकता है, जिससे समस्याओं में कमी नहीं देखी जाती है।
(5) समायोजन से सम्बन्धित समस्या इस अवस्था में सबसे अधिक रहती है।
( 6 ) यह समायोजन कार्य क्षेत्र, नये पारिवारिक उत्तरदायित्व, वैवाहिक भूमिका से सम्बोधित व्यवसाय में ऊँचा उठने की आकांक्षा आदि ।
(7) प्रत्येक नई समस्या से ये प्रौढ़ दुश्चिन्ता व निराशा जैसे मनोविकारों से परेशान रहते हैं। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की लालसा भी उन्हें परेशान करती है।
4. पूर्व प्रौढ़ावस्था सांवेगिक तनाव की अवस्था है-
(1) पूर्व प्रौढ़ावस्था में पहुँचते ही नव प्रौढ़ सांवेगिक तनाव महसूस करने लगता है।
(2) तनाव का कारण उसकी कैरियर के बारे में चिंता, निवास की चिंता, स्थायी होने की चिंता, विवाह की चिंता, जीवन साथी के चुनाव की चिंता व अपने कल्पना के भविष्य को साकार करने की चिंता रहती है।
(3) यही कारण है कि इस अवस्था को सांवेगिक तनाव की अवस्था कहा गया है।
(4) इस समय वे अनिर्णय की स्थिति में देखे जाते हैं व अपने तनाव को किस के साथ विचार-विमर्श करें यह भी उन्हें चिंता रहती है।
(5) 30 वर्ष में 35 वर्ष की आयु तक के बीच वे अपनी कई समस्याओं को हल कर लेने के कारण तनावमुक्त देखे जाते हैं जो सांवेगिक स्थायित्व व शांति उन्हें प्रदान करती है।
(6) सांवेगिक तनाव की अभिव्यक्ति प्रौढ़ चिन्ताओं के द्वारा प्रकट करता है। जैसे-धन की चिन्ता, स्वयं के चेहरे की चिंता, लैंगिक नैतिकता की चिंता, अच्छे नाम की चिन्ता आदि ।
(7) 30 वर्ष के बाद यह चिन्ता स्वास्थ्य सम्बन्धी, सुरक्षा, व्यापार में सफलता, नौकरी की सुरक्षा पारिवारिक सम्बन्ध की चिन्ता प्रमुखता रखती है।
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