बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवादसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- 1885 से 1905 के की भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का पुनरावलोकन कीजिए।
सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के जन्म के क्या कारण थे?
2. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्राथमिक उद्देश्य क्या थे? काँग्रेस ने प्रारम्भिक दौर में किस प्रकार इन उद्देश्यों को पूरा किया?
3. 1885-1905 के मध्य भारतीय राष्ट्रवाद का मूल्याँकन कीजिए।
उत्तर -
भारतीय राष्ट्रवाद (1885-1905 ई.)
भारत में ब्रिटश साम्राज्यवाद के दो परस्पर विरोधी पक्ष थे एक प्रगतिशील और दूसरा प्रतिक्रियावादी। इसके प्रगतिशील पहलू ने राजनीतिक एकता स्थापित की और प्रतिक्रियावादी पहलू ने ऐसा वातावरण उत्पन्न किया, जिसने भारतीय राष्ट्रीयता की चिनगारी जलाई प्रतिक्रियावादी शासक बहुधा. महान सार्वजनिक आन्दोलनों के उत्प्रेरक होते हैं। लार्ड लिटन के प्रतिक्रियावादी शासन ने यही कार्य किया। दूसरी तरफ इलबर्ट बिल- विवाद ने भारतीयों की आँखें खोल दीं और उन्हें संगठित राजनीतिक आन्दोलन का पाठ पढ़ाया। सारे देश में इस घटना से असन्तोष की लहर दौड़ पड़ी और भारतवासी एक अखिल भारतीय राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगे, अतः अंग्रेज शासकों के शोषण और भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार और रंगभेद की नीति के फलस्वरूप सारे देश में असंतोष का ज्वार आ गया। ऐसे में एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का जन्म (दिसम्बर, 1885) में हुआ इस संगठन की उत्पत्ति के कारणों में चार मत माने जाते हैं-
(i) ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा का सिद्धान्त,
(ii) भारतीय राष्ट्रीतया की अभिव्यक्ति का सिद्धान्त,
(iii) रूस के आक्रमण का भय और
(iv) भारत की विस्फोटक स्थिति,
1885-1905 तक कॉंग्रेस के शैशवकाल में कॉंग्रेस ही राष्ट्रवाद के विकास की वाहक बनी और इसके कार्य ही राष्ट्रवादी कार्य कहलाए। इस समयान्तराल में काँग्रेस पर उदारवादियों का आधिपत्य था और ये सरकार के प्रति सहयोग की नीति के हिमायती थे। किन्तु उस समय उस नेतृत्व के समक्ष समस्याओं व उनके सीमित सन्दर्भ के मद्देनजर उनके योगदान की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ये ही वे लोग थे जिन्होंने आगे के आन्दोलन के लिए पृष्ठभूमि तैयार की।
उद्देश्य व कार्य
1. उस समय के नेतृत्व के सामने सबसे पहला लक्ष्य यही था कि भारतीयों को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ने और भारतीय जनता के रूप में उसकी पहचान बनाने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए। उन्हें यह अहसास था कि भारत में जैसी विभिन्नताएँ हैं, वैसी दुनिया में कहीं नहीं हैं और देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियाँ देश के लोगों को एक-दूसरे के करीब ला रही है। किन्तु उनमें भारतीय राष्ट्रीय एकता व राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना आवश्यक था। इस काम के लिए एक राष्ट्रीय नेतृत्व को जन्म दिया गया और जाति, धर्म के भेद को भुलाकर सभी को आपस में जोड़ने का अभियान शुरू किया गया। अल्पसंख्यकों की इच्छा को पूरा ध्यान दिया जाता था जिससे वे स्वयं की अलग न महसूस करें। काँग्रेस के तीसरे अधिवेशन में अध्यक्ष मुस्लिम बदरुद्दीन तैय्यबजी को बनाया गया।
2. काँग्रेस नेताओं के समक्ष दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य जनता को राजनीतिक रूप से शिक्षित- प्रशिक्षित कर संगठित व जनमत तैयार करना था। इन्होंने गौण सामाजिक मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिजक मुद्दों पर हावी न होने दिया क्योंकि इससे जन भागीदारी की गुंजाइश न रहती। जब तक जनता को सामूहिक भागीदारी की राजनीति, आन्दोलन, लामबन्दी आदि का अर्थ मालूम न हो जाता जब तक आधुनिक राजनीतिक आन्दोलन चलाना असम्भव था। अतः उन्होंने राजनीतिक चेतना जगाने और जनमत तैयार करने का काम सबसे पहले शिक्षित तबके में शुरू किया, उसके बाद बाकी तबकों में। अपने समय की सबसे सशक्त सत्ता के खिलाफ एक संगठित राजनीतिक विरोध को जन्म देने के लिए अपने अन्दर आत्मविश्वास और दृढ़ता पैदा करनी थी।
3. इस दौर के नेतृत्व ने उपनिवेशवादी सरकार के स्वरूप को समझा। 1870 व 1880 के दश्कों में उपनिवेषवाद-विरोधी कोई बनी बनाई विचारधारा पहले से तो मौजूद नहीं थी। इन प्रारम्भिक नेताओं ने भाषणों, परचों, अखबारों, नाटकों, गीतों और प्रभात फेरियों के माध्यम से जन-जन तक यह बात पहुँचाई कि उपनिवेशवाद किस तरह से हर स्तर पर आर्थिक शोध करता है। इसके लिए धन के प्रवाह' का सिद्धान्त दिया गया। इन नेताओं ने इस तथ्य को स्पष्ट किया कि भारतीय पूँजी और सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा भारत में कार्यरत ब्रिटिश नौकरशाही के वेतन व पेंशन के रूप में, भारत सरकार द्वारा ब्रिटेन से लिए गए कर्ज के ब्याज के रूप में, ब्रिटिश पूँजीपतियों द्वारा भारत से कमाए गए मुनाफे के रूप में और ब्रिटेन में भारत सरकार के खर्चे के रूप में लगातार ब्रिटेन पहुँचता जा रहा है। ब्रिटेन को भेजा जा रहा धन भारत सरकार की राजस्व वसूली का आधा भाग होता था जो कि भू-राजस्व से अधिक था और भारत की कुल बचत के 1/3 से भी ज्यादा था।
4. इन नेताओं ने अंग्रेजों के औद्योगीकरण के दावे के भ्रम को भी तोड़ा व स्पष्ट किया कि उद्योगीकरण कितना ही आवश्यक क्यों न हो परन्तु यह विदेशी पूँजी पर नहीं होना चाहिए। उनके अनुसार ब्रिटिश पूँजी भारतीय जनता की आर्थिक दशा सुधारने में बड़ी बाधा है, क्योंकि विदेशी पूँजी भारतीय संसाधनों की लूट व शोषण का जरिया है। पूँजी निकास के मुद्दे ने लोगों में राजनीतिक चेतना में बड़ी भूमिका निभाई क्योंकि जनता, खासकर किसानों को यह बात बड़ी आसानी से समझ में आ गई कि उनके देश का धन किस प्रकार बाहर जा रहा है क्योंकि वे राज्य, जमींदार, महाजन, वकील व सरकारी बिचौलियों को ज्यादा झेलते थे।
5. 1982 में विधान परिषदों का नया रूप सामने आया था जिसमें 24 में से 5 गैर सरकारी भारतीय चुने गए 16 प्रतिनिधियों की नियुक्ति व उन्हें बजट और अन्य मामलों पर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। यद्यपि यह इन नेताओं की माँगों का उपहास मात्र था किन्तु यह स्वशासन की माँग का पहला चरण था। जिन शक्तिहीन और नपुंसक विधान परिषदों का गठन सरकारी नीतियों तथा निर्णयों का अनुमोदन करने वाली मशीन और उदीयमान राष्ट्रीय नेताओं को तुष्ट करने वाले खिलौनों के रूप में किया गया था उन्हें इन्होंने नौकरशाही की कमियों और दोषों को निष्ठुरतापूर्वक उजागर करने, लगभग प्रत्येक सरकारी नीति और प्रस्ताव की आलोचना और विरोध करने तथा बुनियादी आर्थिक मुद्दों खासकर सार्वजनिक वित्त से सम्बन्धित सवालों को उठाने के मंच के रूप में किया। 'सेफ्टी वाल्व को राष्ट्रीयतावादी प्रचार के तन्त्र के रूप में बदल दिया गया। साहस, तर्कक्षमता, निर्भीक आलोचना, अगाध ज्ञान और आँकड़ों के सतर्क प्रस्तुतीकरण के द्वारा उन्होंने विधान परिषदों में सरकार के खिलाफ एक लगातार अभियान चलाया, जिसका लक्ष्य उसकी राजनीतिक और नैतिक सत्ता को खत्म करना और साम्राज्यवाद विरोधी भावना उभारना था और अंततः वे इसमें सफल रहे।
मूल्यांकन - 1885-1905 के मध्य का राष्ट्रवाद नरमपन्थी नेतृत्व के द्वारा विकसित किया गया था। ये नरमपन्थी घटनाक्रम के अनुरूप अपनी रणनीतियों में आवश्यक फेरबदल नहीं कर पाते थे। ये यह महसूस न कर सके कि उनकी खुद की उपलब्धियों ने ही उनकी राजनीति को अव्यवहारिक बना दिया था। राष्ट्रीय आन्दोलन के नए चरण के मुताबिक वे अपने को ढाल नहीं सके। उन्हें यह विश्वास था कि फिरंगी हुकूमत पर दबाव डालकर वे राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों में सुधार करवा लेंगे। उन्हें इसमें सफलता तो मिली किन्तु नगण्य। फिरंगी हुकूमत ने नरमपंथियों का आदर करने के बजाय दमन किया। बंग-भंग उनकी असफलता का चरम था जो उनके लिए महज अदालती लड़ाई बन गया। देश की राजनीति में जनप्रिय वर्ग उनसे सत्ता लेने को उद्वेलित हो रहा था जो पूर्व-स्वशासन की माँग करता था। ये युवा इन नरमपन्थियों की राजनीति को भिक्षावृत्ति कहते थे।
वास्तव में इन नरमपंथी राष्ट्रवादियों की भूमिका 1905 तक आते-आते समाप्त हो चुकी थी लेकिन इससे पहले राष्ट्रवाद के विकास में उन्होंने जो योगदान किया उसे एक महान सफलता ही कहा जाएगा। इन्होंने तमाम कठिनाइयों का मुकाबला करते हुए संघर्ष किया। एक ऐसे समय में राजनीतिक संघर्ष चलाया, जब समाज के एक बड़े तबके में राजनीतिक चेतना पहुँची तक नहीं थी। इन नरमपंथियों ने भारतीय राजनीति को एक नया मोड़ दिया। देश में नई राजनीतिक चेतना जगाई और बुद्धिजीवियों तथा मध्यवर्गीय लोगों को उनके सामूहिक हितों तथा राष्ट्रीयता के प्रति सचेत किया, उपनिवेशवाद के चरित्र को जनता के सामने उजागर किया। राजनीतिक कला का प्रशिक्षण दिया और पहली बार जनता को लोकतन्त्र, धर्म निरपेक्षता तथा नागरिक स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने को प्रेरित किया। जनता के मन में यह विश्वास बैठता जा रहा था कि अंग्रेजी हुकूमत बहुत उदार है, उसके हितों का ख्याल रखती है। नरमपन्थी राष्ट्रवादियों ने स्वयं स्वीकारा कि भारी असफलताओं के बाद भी कम-से-कम इस भ्रम को तोड़ने में वे निश्चित तौर पर सफल रहे। इन नेताओं ने भारतीय जनता को संगठित करने व फिरंगी हुकूमत के खिलाफ लड़ने के लिए सामूहिक राजनीतिक-आर्थिक कार्यक्रम बनाएं बाद में इन्हीं नीतियों एवं कार्यक्रमों को लेकर राष्ट्रवादी स्वतन्त्रता संघर्ष छिड़ा। सर हेनरी कॉटन ने लिखा है कि, "यद्यपि इस काल में कांग्रेस के सदस्य किसी भी दशा में सरकारी नीति में परिवर्तन लाने में सफल नहीं हुए, लेकिन अपने देश के इतिहास में और देशवासियों के चरित्र-निर्माण में निश्चित रूप से उन्होंने सफलता प्राप्त की। इन्होंने एक ऐसा संगठन तैयार किया जो बाद में सशक्त राष्ट्रीय आन्दोलन का रहनुमा बना। श्रीमती एनी बेसेंट ने लिखा है कि, "नरम दल के नेताओं ने ही हमें इस योग्य बनाया कि हम स्वतन्त्रता की माँग सरकार के सामने रख सकें।'
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- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के स्वरूप पर एक निबन्ध लिखिए। उनके परिणाम क्या रहे?
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह का दमन करने में अंग्रेज किस प्रकार सफल हुए, वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- सन् 1857 ई० की क्रान्ति के परिणामों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- 1857 ई० के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह की असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह में प्रशासनिक और आर्थिक कारण कहाँ तक उत्तरदायी थे? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 1857 ई० के विद्रोह के राजनीतिक एवं सामाजिक कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह ने राष्ट्रीय एकता को किस प्रकार पुष्ट किया?
- प्रश्न- बंगाल में 1857 की क्रान्ति की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के लिए लार्ड डलहौजी कहां तक उत्तरदायी था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के राजनीतिक कारण बताइये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के किन्हीं तीन आर्थिक कारणों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति में तात्याटोपे के योगदान का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के महान विद्रोह में जमींदारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के यथार्थ स्वरूप को संक्षिप्त में बताइये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के झाँसी के विद्रोह का अंग्रेजों ने किस प्रकार दमन किया, वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विप्लव में नाना साहब की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम स्वाधीनता संग्राम के परिणामों एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के प्रारम्भिक चरण में जनजातीय विद्रोहों की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिए। भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की क्या भूमिका रही?
- प्रश्न- भारत में कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों व इसके कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद के उदय में 'बंगाल विभाजन' की घटना का क्या योगदान रहा? भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रारम्भिक इतिहास का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदय की परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए कांग्रेस की स्थापना के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस की नीतियाँ क्या थी? सविस्तार उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मध्यमवर्गीय चेतना के अग्रदूतों में किन महापुरुषों को माना जाता है? इनका भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन व राष्ट्रवाद में क्या योगदान रहा?
- प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जनजातियों में ब्रिटिश शासन के प्रति असन्तोष का सर्वप्रमुख कारण क्या था?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी के प्रमुख विचारों पर प्रकाश डालते हुए उनके भारतीय राजनीति में पदार्पण को 'चम्पारण सत्याग्रह' के विशेष सन्दर्भ में उल्लिखित कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ? सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के प्रारम्भ होने के प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में टैगोर की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद पर टैगोर तथा गाँधी जी के विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- 1885 से 1905 के की भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का पुनरावलोकन कीजिए।
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
- प्रश्न- 'बारडोली सत्याग्रह' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता (1931 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'खेड़ा सत्याग्रह' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण के विषय में बताते हुए उदारवादियों की प्रमुख नीतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण की सफलताओं एवं असफलताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा पूर्ण स्वराज्य के लिए किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
- प्रश्न- उग्रवादी तथा उदारवादी विचारधारा में अंतर बताइए।
- प्रश्न- बाल -गंगाधर तिलक के स्वराज और राज्य संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रारम्भ में कांग्रेस के क्या उद्देश्य थे? इसकी प्रारम्भिक नीति को उदारवादी नीति क्यों कहा जाता है? इसका परित्याग करके उग्र राष्ट्रवाद की नीति क्यों अपनायी गयी?
- प्रश्न- उदारवादी युग में कांग्रेस के प्रति सरकार का दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- भारत में लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियों ने किस प्रकार उग्रपंथी आन्दोलन के उदय व विकास को प्रेरित किया?
- प्रश्न- उदारवादियों की सीमाएँ एवं दुर्बलताएँ संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- उग्रवादी आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के 'नरमपन्थियों' और 'गरमपन्थियों' में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस के सूरत विभाजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अखिल भारतीय काँग्रेस (1907 ई.) में 'सूरत की फूट' के कारणों एवं परिस्थितियों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस में 'सूरत फूट' की घटना पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कांग्रेस की स्थापना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी की स्थापना किन कारणों से हुई?
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी के पतन के प्रमुख कारणों को बताइए।
- प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग की स्थापना एवं नीतियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए कहाँ तक उत्तरदायी थी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिक राजनीति के उत्पत्ति में ब्रिट्रिश एवं मुस्लिम लीग की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा मुस्लिम लीग को किस प्रकार संगठित किया गया?
- प्रश्न- लाहौर प्रस्ताव' क्या था? भारत के विभाजन में इसकी क्या भूमिका रही?
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना ने किस प्रकार भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार की?
- प्रश्न- मुस्लिम लीग के उद्देश्य बताइये। इसका भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना के राजनीतिक विचारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा जैसे राजनैतिक दलों ने खिलाफत आन्दोलन का विरोध क्यों किया था?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या परिणाम हुए?
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रथम विश्व युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा, संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उत्पन्न हुए होमरूल आन्दोलन पर प्रकाश डालिए। इसकी क्या उपलब्धियाँ रहीं?
- प्रश्न- गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लखनऊ समझौते के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था?
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध में रोमानिया का क्या योगदान था?
- प्रश्न- 'लखनऊ समझौता, पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'रॉलेक्ट एक्ट' पर संक्षित टिपणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय जागृति के क्या कारण थे?
- प्रश्न- होमरूल आन्दोलन पर संक्षित टिपणी दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवादी और प्रथम विश्वयुद्ध पर संक्षित टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- अमेरिका के प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के बाद की गई किसी एक शान्ति सन्धि का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का पराजित होने वाले देशों पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षित प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1919 का रौलट अधिनियम क्या था?
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षित वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- श्रीमती ऐनी बेसेन्ट के कार्यों का मूल्यांकन व महत्व समझाइये |
- प्रश्न- थियोसोफिकल सोसायटी का उद्देश्य बताइये।