बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवादसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस की नीतियाँ क्या थी? सविस्तार उल्लेख कीजिए।
सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कांग्रेस की 'ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठा' से आप क्या समझते हैं? इसका क्या औचित्य था?
2. प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस का क्रमिक सुधारों में विश्वास था, स्पष्ट करें।
3. ब्रिटिश न्यायप्रियता के प्रति प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस की क्या नीति थी?
उत्तर -
कांग्रेस की स्थापना भारत में राष्ट्रवाद के प्रसार व भारतीयों में एकजुटता लाने के उद्देश्य से की गयी थी। प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस का लक्ष्य राष्ट्रीय आन्दोलन को संगठित करने का था। अतः अपने प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस द्वारा क्रान्तिकारी परिवर्तनों की वकालत या सरकार के प्रति उग्र रुख अपनाने के स्थान पर उदार नीतियों का अनुसरण किया गया, ताकि सरकार के दमनचक्र से बचते हुए भारतवासियों को राष्ट्र के नाम पर संगठित किया जा सके। कांग्रेस की प्रारम्भिक नीतियाँ व कार्यक्रम भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों व कुप्रथाओं के उन्मूलन हेतु भी तत्पर थे।
प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस के द्वारा सुधारवादी व उदार नीतियों का अनुसरण किया गया, जिनका कि उल्लेख निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है
प्रारम्भिक वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीतियाँ - प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस कोई क्रान्तिकारी संगठन नहीं था। इसके नेता सरकार के प्रति किसी प्रकार के विद्रोह की भावना नहीं रखते थे। इनका संवैधानिक उपायों पर गहरा विश्वास था। कांग्रेस के प्रारंम्भिक नेता उच्च मध्यम वर्ग के लोग थे और ये अंग्रेजी शासन, सभ्यता तथा संस्कृति के प्रशंसक थे। अतः इनकी सोच का प्रभाव कांग्रेस की प्रारम्भिक नीतियों पर भी पड़ा। इनमें से कुछ प्रमुख नीतियाँ निम्नलिखित थीं-
(i) ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठा - प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस के नेता उच्चकोटि के देशभक्त होने के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठावान भी थे। अतः कांग्रेस की प्रारम्भिक नीतियों में ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठा की नीति का प्रमुख स्थान था। कांग्रेस के प्रारम्भिक नेताओं के मन में ब्रिटिश शासन के प्रति कृतज्ञता के भाव थे क्योंकि वे मानते थे कि अंग्रेजी शासन के कारण ही भारत में शान्ति की स्थापना हुई और प्रगतिशील विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस सन्दर्भ में प्रमुख प्रारम्भिक कांग्रेसी नेता श्री व्योमेश चन्द्र बनर्जी के वक्तव्य का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें उन्होने कहा था कि - "मैं कहता हूँ कि ब्रिटिश सरकार को मेरे और यहाँ बैठे हुए मेरे दोस्तों की अपेक्षा अधिक गहरे व पक्के राजभक्त मिलना असम्भव है।" इसी प्रकार कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में दादाभाई नैरोजी ने कहा था कि "आओ हम पुरुषों की तरह बोलें और घोषणा कर दें कि हम अटूट राजभक्त हैं।'
(ii) अंग्रेजों की न्यायप्रियता में विश्वास - प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेसी नेताओं को अंग्रेजी उदारता, न्यायप्रियता और ईमानदारी पर पूर्ण विश्वास था। उनकी यह धारणा थी कि अंग्रेज स्वभाव से ही सच्चे व न्यायप्रिय होते हैं। उनका मानना था कि यदि उन्हें भारतीय समस्याओं का सही ज्ञान करा दिया जाये तो वे भारतीय दृष्टिकोण को स्वीकार कर लेगें। उनके विचार से अंग्रेज स्वतंत्रता- प्रेमी थे और जब अंग्रेजों को यह विश्वास हो जायेगा कि भारतीय स्वशासन के योग्य बन गये हैं, तब वे हमें निश्चित ही इससे वंचित नहीं रखेंगे। वस्तुतः इस अटूट विश्वास ने ही इन नेताओं के मन में अटूट राजभक्ति की भावना को जन्म दिया था। इसी प्रकार इन नेताओं के पास जॉन ब्राइट, हेनरी फासेट, और चार्ल्स ब्रेडला जैसे अंग्रेजों के उदाहरण थे जोकि ब्रिटिश संसद में सदैव भारतीय जनता के हितों के पक्ष में बोलते थे।
ब्रिटिश न्याय के सम्बन्ध में श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का अभिमत था कि - "इंग्लैण्ड हमारा मार्गदर्शक है। हमको अंग्रेजों की उदारता तथा न्याय में विश्वास है। संसार की महानतम प्रतिनिधि सभा, संसदों की जननी ब्रिटिश कॉमन्स सभा के प्रति हमारे हृदय में श्रद्धा है।' इसी प्रकार रहीमतुल्ला सयानी का तो यहाँ तक मानना था कि "अंग्रेजों से बढ़कर सदाचारी व सत्यप्रिय जाति इस सूर्य के नीचे कहीं नहीं बसती।"
(iii) क्रमिक सुधारों में विश्वास - प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस की नीतियों में क्रमिक सुधारों के प्रति अटूट विश्वास भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। प्रारम्भिक कांग्रेसी नेता राजनीतिक क्षेत्र में क्रमबद्ध विकास की धारणा में विश्वास करते थे। वे इस बात से भली-भाँति परिचितं थे कि एकाएक स्वशासन में लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतः वे प्रशासकीय व राजनीतिक क्षेत्रों में क्रमिक रूप से धीरे-धीरे सुधारों को लाना चाहते थे। इनके द्वारा प्रारम्भ में इस सन्दर्भ में सुधार की छोटी-छोटी माँगे ब्रिटिश सरकार के समक्ष रखीं, जैसे- भारतीयों की उच्च पदों पर नियुक्ति, सरकार के व्यय में कमी, स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की स्थापना इत्यादि। इन सुधारों के लिए वे क्रान्तिकारी परिवर्तनों के विरुद्ध थे, अतः उन्होंने सदैव ही ऐसी माँगे प्रस्तुत की जिनका ब्रिटिश शासन द्वारा कड़ा विरोध न किया जा सके। इस सन्दर्भ में श्री आर. जी. प्रधान का अभिमत है कि "ये नेता न्यूनतम विरोध के सिद्धान्त में विश्वास रखते थे, वे व्यवहारिक सुधारवादी थे, जिनमें विक्टोरिया उदारवाद के तरीके, सिद्धान्त और भावनाएँ भरी हुई थीं।"
(iv) ब्रिटेन के साथ सम्बन्ध - प्रारम्भिक कांग्रेसी नेता किसी भी प्रकार ब्रिटेन से सम्बन्ध विच्छेद करने के पक्ष में नहीं थें। वे ब्रिटेन के साथ सम्बन्धों को भारत के ही हित में समझते थे। इस सन्दर्भ में प्रमुख उदारवादी नेता श्री गोपालकृष्ण गोखले का मानना था कि "हमको यह स्वीकारना होगा कि ब्रिटिश शासन विदेशी होने के कारण अपनी कमियों के साथ-साथ देशवासियों की प्रगति में एक बड़ा साधन भी रहा है।
इस प्रकार प्रारम्भिक कांग्रेसी नेताओं की धारणा थी कि ब्रिटेन के कारण ही भारत में प्रगतिशील सभ्यता का उदय हुआ है। अंग्रेजी साहित्य, शिक्षा पद्धति, यातायात एवं संचार के साधनों की व्यवस्था, न्याय प्रणाली और स्थानीय स्वशासन इत्यादि भारत के लिए उपयोगी हैं। अतः यह भारत के हित में है कि ब्रिटेन से उसका अटूट सम्बन्ध बना रहें।
निष्कर्ष - इस प्रकार उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर निष्कर्षतया यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने अपनी स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में राजनीतिक सुधारों की माँग को संवैधानिक ढंग से पूरा कराने का प्रयास किया। उसे अंग्रेजों की न्यायशीलता में आस्था थी और विश्वास था कि यदि वह ब्रिटिश शासन को अपनी माँगों के औचित्य के विषय में संतुष्ट कर ले तो शासन उसकी माँगों को अवश्य ही पूरा करेगा। इसी कारण कांग्रेस ने अपनी स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में 'धीरे चलो' की नीति का अनुसरण किया। अतः प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस एक प्रकार से ब्रिटिश शासन से चन्द राजनीतिक सुधारों की भीख सी माँगती रही। परन्तु यह भी एक तथ्य है कि आगामी वर्षों में कांग्रेस ही एक ऐसी संस्था या मंच थी जिसके कुशल नेतृत्व में राष्ट्रीय आन्दोलन सफल हुआ।
|
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के स्वरूप पर एक निबन्ध लिखिए। उनके परिणाम क्या रहे?
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह का दमन करने में अंग्रेज किस प्रकार सफल हुए, वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- सन् 1857 ई० की क्रान्ति के परिणामों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- 1857 ई० के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह की असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह में प्रशासनिक और आर्थिक कारण कहाँ तक उत्तरदायी थे? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 1857 ई० के विद्रोह के राजनीतिक एवं सामाजिक कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह ने राष्ट्रीय एकता को किस प्रकार पुष्ट किया?
- प्रश्न- बंगाल में 1857 की क्रान्ति की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के लिए लार्ड डलहौजी कहां तक उत्तरदायी था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के राजनीतिक कारण बताइये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के किन्हीं तीन आर्थिक कारणों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति में तात्याटोपे के योगदान का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के महान विद्रोह में जमींदारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के यथार्थ स्वरूप को संक्षिप्त में बताइये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के झाँसी के विद्रोह का अंग्रेजों ने किस प्रकार दमन किया, वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विप्लव में नाना साहब की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम स्वाधीनता संग्राम के परिणामों एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के प्रारम्भिक चरण में जनजातीय विद्रोहों की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिए। भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की क्या भूमिका रही?
- प्रश्न- भारत में कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों व इसके कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद के उदय में 'बंगाल विभाजन' की घटना का क्या योगदान रहा? भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रारम्भिक इतिहास का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदय की परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए कांग्रेस की स्थापना के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस की नीतियाँ क्या थी? सविस्तार उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मध्यमवर्गीय चेतना के अग्रदूतों में किन महापुरुषों को माना जाता है? इनका भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन व राष्ट्रवाद में क्या योगदान रहा?
- प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जनजातियों में ब्रिटिश शासन के प्रति असन्तोष का सर्वप्रमुख कारण क्या था?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी के प्रमुख विचारों पर प्रकाश डालते हुए उनके भारतीय राजनीति में पदार्पण को 'चम्पारण सत्याग्रह' के विशेष सन्दर्भ में उल्लिखित कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ? सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के प्रारम्भ होने के प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में टैगोर की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद पर टैगोर तथा गाँधी जी के विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- 1885 से 1905 के की भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का पुनरावलोकन कीजिए।
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
- प्रश्न- 'बारडोली सत्याग्रह' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता (1931 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'खेड़ा सत्याग्रह' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण के विषय में बताते हुए उदारवादियों की प्रमुख नीतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण की सफलताओं एवं असफलताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा पूर्ण स्वराज्य के लिए किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
- प्रश्न- उग्रवादी तथा उदारवादी विचारधारा में अंतर बताइए।
- प्रश्न- बाल -गंगाधर तिलक के स्वराज और राज्य संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रारम्भ में कांग्रेस के क्या उद्देश्य थे? इसकी प्रारम्भिक नीति को उदारवादी नीति क्यों कहा जाता है? इसका परित्याग करके उग्र राष्ट्रवाद की नीति क्यों अपनायी गयी?
- प्रश्न- उदारवादी युग में कांग्रेस के प्रति सरकार का दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- भारत में लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियों ने किस प्रकार उग्रपंथी आन्दोलन के उदय व विकास को प्रेरित किया?
- प्रश्न- उदारवादियों की सीमाएँ एवं दुर्बलताएँ संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- उग्रवादी आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के 'नरमपन्थियों' और 'गरमपन्थियों' में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस के सूरत विभाजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अखिल भारतीय काँग्रेस (1907 ई.) में 'सूरत की फूट' के कारणों एवं परिस्थितियों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस में 'सूरत फूट' की घटना पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कांग्रेस की स्थापना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी की स्थापना किन कारणों से हुई?
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी के पतन के प्रमुख कारणों को बताइए।
- प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग की स्थापना एवं नीतियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए कहाँ तक उत्तरदायी थी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिक राजनीति के उत्पत्ति में ब्रिट्रिश एवं मुस्लिम लीग की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा मुस्लिम लीग को किस प्रकार संगठित किया गया?
- प्रश्न- लाहौर प्रस्ताव' क्या था? भारत के विभाजन में इसकी क्या भूमिका रही?
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना ने किस प्रकार भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार की?
- प्रश्न- मुस्लिम लीग के उद्देश्य बताइये। इसका भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना के राजनीतिक विचारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा जैसे राजनैतिक दलों ने खिलाफत आन्दोलन का विरोध क्यों किया था?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या परिणाम हुए?
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रथम विश्व युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा, संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उत्पन्न हुए होमरूल आन्दोलन पर प्रकाश डालिए। इसकी क्या उपलब्धियाँ रहीं?
- प्रश्न- गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लखनऊ समझौते के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था?
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध में रोमानिया का क्या योगदान था?
- प्रश्न- 'लखनऊ समझौता, पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'रॉलेक्ट एक्ट' पर संक्षित टिपणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय जागृति के क्या कारण थे?
- प्रश्न- होमरूल आन्दोलन पर संक्षित टिपणी दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवादी और प्रथम विश्वयुद्ध पर संक्षित टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- अमेरिका के प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के बाद की गई किसी एक शान्ति सन्धि का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का पराजित होने वाले देशों पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षित प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1919 का रौलट अधिनियम क्या था?
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षित वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- श्रीमती ऐनी बेसेन्ट के कार्यों का मूल्यांकन व महत्व समझाइये |
- प्रश्न- थियोसोफिकल सोसायटी का उद्देश्य बताइये।