बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
उत्तर -
अनुसूचित जनजातियों का विकास
भारत में अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक दशा को सुधारने के लिए कई उपाय किए गए हैं। अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए जनजाति उपयोजना का आरंभ पंचवर्षीय योजना की शुरुआत में वर्ष 1974-75 में किया गया। इसके तहत् अनुसूचित जनजाति की बड़ी आबादी वाले 21 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया गया। इस विशेष रणनीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि केंद्र और राज्य स्तर पर चलाई जा रही विकास योजनाओं का उचित हिस्सा अनुसूचित जनजाति के लोगों तक पहुंचे। इसमें राज्य योजना की धनराशि ही नहीं बल्कि सभी केंद्रीय मंत्रालय/विभागों की धनराशि का लाभ भी अनुसूचित जनजाति को मिलना सुनिश्चित करने की बात की गई।
भारत सरकार ने जनजातीय उपयोजना के समर्थन में 1974 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में एस. सी. ए. योजना लागू की है। इसका उद्देश्य पारिवारिक आय बढ़ाने के कार्यक्रमों में अंतर को दूर करना है। नतीजतन, सभी विकास कार्यक्रमों के तहत् अनुसूचित जनजातियों को अधिक लाभ पहुंचाने के लिए उनके विकास हेतु नौवीं पंचवर्षीय योजना में उपलब्ध धनराशि में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई।
जनजातीय मामलों को मंत्रालय, जनजातीय उपयोजना के तहत विशेष केंद्रीय सहायता, 21 जनजातीय राज्यों की सरकारों और दो केंद्रशासित प्रदेशों को उपलब्ध कराता है। इन राज्यों में पूर्वोत्तर राज्य - असम, मणिपुर और त्रिपुरा शामिल हैं लेकिन वर्ष 2003-04 से केंद्रशासित प्रदेशों के लिए जनजातीय उपयोजना को विशेष केन्द्रीय सहायता के तहत् धनराशि गृह मंत्रालय उपलब्ध करा रहा है।
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 275 (1) के तहत् अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने और अनुसूचित क्षेत्रों में प्रबंधन के स्तर को बढ़ाकर, राज्य के अन्य क्षेत्रों के समान करने के लिए सुनिश्चित विशेष वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया।
दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान जंगल बाहुल्य गाँवों का विकास जनजाति विकास के क्षेत्र में एक अहम हिस्सा है। योजना आयोग ने प्रति गाँव 15 लाख के औसत आबंटन के हिसाब से जंगल बाहुल्य गाँवों के विकास के लिए जनजातीय मामलों के मंत्रालय को 450 करोड़ आबंटित किए हैं 12 का वन विभाग देखता है। ऐसा अनुमान है कि इन गाँवों में लगभग 2.5 लाख आदिवासी परिवार रहते हैं।
वर्ष 1998-99 में इन समूहों के समूचे विकास के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना शुरू की गई। इस योजना के तहत् अन्य किसी योजना में शामिल नहीं की गई परियोजनाएं / गतिविधियां शुरू करने के लिए समन्वित जनजातीय विकास परियोजनाओं, जनजातीय शोभा संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
लघु वनोत्पादों के लिए सहायता अनुदान कार्यक्रम केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। इसके तहत राज्य जनजातीय विकास सहकारी निगमों, वन विकास निगमों और लघु वन उत्पाद ( व्यापार और विकास) परिसंघों को लघु वन उत्पादक कार्यक्रम शुरू करने के लिए शत-प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।
अनुसूचित जनजातियों के आर्थिक विकास की गति को तेज करने और उस पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम को विभाजित कर, अप्रैल, 2001 में जनजातीय मामलों के मंत्रालय के तहत् राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम की स्थापना की गई। इसे कंपनी अधिनियम की धारा 25 (ऐसी कंपनी जो लाभ के लिए नहीं है) के तहत् लाइसेंस दिया गया।
बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 1984 के तहत् राष्ट्रीय स्तर के शीर्षस्थ निकाय के रूप में वर्ष 1987 में ट्राइफेड की स्थापना की गई।
बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम 2007 के अधिनियमित होने के बाद ट्राइफेड को इस अधिनियम में पंजीकृत कर इसे राष्ट्रीय सहकारी समिति के रूप में अधिनियम की दूसरी अनुसूची में अधिसूचित किया गया।
नए बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 ( इसे बहुराज्यीय सहकारी समिति के नियम 2002 के साथ पढ़ा जाए) से सुसंगत बनाने के लिए अप्रैल, 2003 में ट्राइफेड की नियमावली में परिवर्तन किया गया। इसके अनुसार, ट्राइफेड ने जनजातियों से लघु वनोत्पाद और अधिशेष कृषि उत्पादों की खरीद बंद कर दी है। यह खरीद अब राज्य स्तर की जनजातीय सहकारी/समिति फेडरेशन द्वारा की जाती है। ट्राइफेड अब जनजातीय उत्पादों के लिए बाजार का विकास करने वाले और सदस्य फेडरेशनों को सेवा प्रदान करने वाली इकाई के रूप में कार्य कर रहा है।
राष्ट्रीय जनजाति नीति
जनजाति मामलों के मंत्रालय द्वारा एक राष्ट्रीय जनजाति नीति तैयार की गई है जिसमें जनजाति भूमि का पृथक्करण; प्रतिस्थापन; पुनर्वास और जनजातियों की बसावट, जनजाति क्षेत्र में आवश्यक अवसंरचनात्मक विकास, संकटग्रस्त जनजाति समूहों का पुनर्निर्माण और विकास, जनजातियों का सशक्तिकरण और लिंग समानता का सुनिश्चितीकरण' जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन, इत्यादि जैसे मामले शामिल हैं।
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- प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
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