बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मूल्यांकन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
मूल्यांकन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
(Historical Background of Evaluation)
ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यांकन एक प्राचीन प्रणाली है। प्रारम्भ में इस प्रणाली के लिए मूल्यांकन के स्थान पर 'परीक्षण' शब्द का प्रयोग किया जाता था। परीक्षण के नाम से प्रचलित इस प्रक्रिया का प्रयोग विभिन्न दृष्टियों से विद्यार्थियों की जाँच हेतु किया जाता था। इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि प्रारम्भ में मौखिक परीक्षणों का विशेष प्रचलन था। मौखिक परीक्षणों के माध्यम से ही छात्रों की योग्यताओं और क्षमताओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जाती थी। तदनन्तर साहित्य के द्वारा भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि प्राचीनकालीन विद्यार्थी मौखिक रूप से ही समस्त ज्ञान प्राप्त करके उसे प्रमाणित करने हेतु जब परीक्षा देते थे तब मौखिक रूप से ही परीक्षक उन्हें उनकी अध्ययन अवधि के अनुसार प्रश्न पूछकर देखते थे। यदि छात्र परीक्षक के उत्तरों से सन्तुष्ट होता था तो प्रमाण पत्र दे दिया जाता था। कालान्तर में लिखित प्रश्नों से ही परीक्षा लेने की प्रणाली का प्रचलन प्रारम्भ हो सका। तदन्तर विद्यार्थियों में लिखित परीक्षा देने की प्रवृत्ति में वृद्धि होने से आवश्यकता हो गई। विद्यार्थियों में विद्याध्ययन की बढ़ती संख्या इस परिवर्तन का प्रमुख कारण था। छात्रों की शिक्षा में निरन्तर वृद्धि के कारण मौखिक परीक्षण की अपेक्षा लिखित परीक्षण का प्रचलन अत्यन्त ज़रूरी हो गया। परिणामतः लिखित परीक्षा के विकास की दिशा में प्रयास आरम्भ हुए। इंग्लैण्ड के विश्वविद्यालय कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम सन् 1702 में विद्यार्थियों की लिखित परीक्षा ली गई। इसके उपरान्त लिखित परीक्षा का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाने लगा। वर्तमान समय में भी लिखित परीक्षा को छात्रों की विषयगत योग्यताओं की जाँच के प्रमुख माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है।
मूल्यांकन प्रणाली का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में अमेरिका में हुआ। अमेरिका में ही मूल्यांकन प्रणाली को सर्वप्रथम प्रयुक्त किया गया। सन् 1958 में इस प्रणाली का प्रयोग भारत में प्रारम्भ कर दिया गया। शिकागो विश्वविद्यालय के प्रख्यात शिक्षाशास्त्री डॉ॰ बी० एफ० स्किनर के प्रयत्नों के उपरान्त ही इस प्रणाली को हमारे देश में प्रयुक्त किया गया। मूल्यांकन एक प्रणाली है जो उद्देश्य-केंद्रित तथा वस्तुनिष्ठ है। छात्रों में निहित योग्यताओं की विश्वसनीय जानकारी हमें मूल्यांकन प्रणाली के द्वारा प्राप्त होती है।
मूल्यांकन सम्बन्धित विविध तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रारम्भ में परीक्षाओं का स्वरूप केवल मौखिक ही था और बाद में लिखित परीक्षाओं का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। आधुनिक काल में मौखिक, लिखित एवं प्रयोगात्मक तीनों ही प्रकार से छात्रों में निहित योग्यताओं, क्षमताओं एवं कौशलों की जाँच की जाती समझ है। इनमें भी सर्वाधिक प्रयोग निबन्धात्मक परीक्षाओं का ही किया जाता है।
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