लोगों की राय

बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण

बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2765
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर -

सामाजिक विज्ञान की विशेषताएँ
(Main Characteristics of Social Science)

सामाजिक विज्ञान की मुख्य निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -

  1. मानव प्राणी व समाज से सम्बन्धित (Related with Human Being and Society) - सामाजिक विज्ञान मानव व समाज से सम्बन्धित है। यह विज्ञान व्यक्तियों को समाज में मिलकर रहने तथा उनके मानवीय सम्बन्धों के विकास में सहायता करता है।

  2. मानवीय गतिविधियों एवं व्यवहारों का अध्ययन (Study of Human Activities and Behaviours) - सामाजिक विज्ञान में मानव गतिविधियों, व्यवहारों का उनके सामाजिक समूहों के रूप में अध्ययन किया जाता है।

  3. मानव समाज का उन्नत अध्ययन (Advanced Study of Human Society) - यह मानव का उन्नत अध्ययन है, जो युवा विद्यार्थियों के लिए तैयार किया गया है।

  4. सामाजिक उपयोगिता में योगदान (Contribution in Social Utility) - सामाजिक विज्ञान का उद्देश्य मानवीय सम्बन्धों के विषय में नये सत्य की खोज करना होता है ताकि सामाजिक उपयोगिता में सहायता हो।

  5. परम्परागत विषयों से विषय-वस्तु की अंगीकार करना (Accepting the subject Matter from Traditional Subjects) - सामाजिक विज्ञान ऐसे परम्परागत विषयों से विषय-वस्तु को स्वीकार करता है जो मानव तथा समाज से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होते हैं।

सामाजिक विज्ञान/सामाजिक अध्ययन का स्वरूप
(Nature of Social Science/Social Studies)

सामाजिक अध्ययन विषय का स्वरूप आज हमारे समक्ष है। यह इसके क्रमिक विकास का परिणाम है। इस क्रमिक विकास का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है -

स्वतन्त्र विषय के रूप में - उन्नीसवीं सदी में सामाजिक ज्ञान की विभिन्न शाखाओं का पृथक-पृथक विषय के रूप में अध्ययन किया जाता था, जैसे- राजनीतिकशास्त्र, समाजशास्त्र, भूगोल, अर्थशास्त्र आदि। तत्पश्चात् सामाजिक अध्ययन को स्वतन्त्र विषय के रूप में मान्यता प्रदान करने की दिशा में प्रयास प्रारम्भ हुआ। इस दिशा में सर्वप्रथम सन् 1916 ई० में संयुक्त राज्य अमेरिका में "कमेटी ऑफ द सोसियल स्टडीज" और द नेशनल एजुकेशनल एसोसिएशन कमीशन ऑन द रिऑर्गेनाइजेशन ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन" ने इसे एक स्वतन्त्र विषय के रूप में मान्यता प्रदान करने का सुझाव दिया।

एकीकृत विषय के रूप में - स्वतन्त्र विषय के रूप में मान्यता प्रदान करने की स्थिति के पश्चात् इसके समन्वित रूप की सम्भावनाओं पर विचार किया जाने लगा। इस उद्देश्य हेतु अमेरिका में एक राष्ट्रीय परिषद (National Council) का गठन किया गया तथा सन् 1934 ई० से इसके लिए एक आयोग नियुक्त किया गया। विभिन्न तथ्यों, शोधों तथा विचारों के समन्वय एवं परिणामों के आधार आए, उनके आधार पर ही सामाजिक अध्ययन के एकीकृत स्वरूप का विकास हुआ।

सामाजिक अध्ययन के एकीकृत स्वरूप के आधार यह है - समाज तथा मानव की सामाजिक क्रियाओं से सम्बन्धित विभिन्न विषयों, जैसे- इतिहास, नागरिकशास्त्र, भूगोल, अर्थशास्त्र आदि इकाई के रूप में मान्यता प्रदान करता तथा इन विषयों से सम्बन्धित अध्ययन-सामग्री को छात्रों के समग्र रूप प्रदान करता जिससे मिलाकर एक विषय की धारणा बने और पाठ्यक्रम में पूर्ण सन्तुलन व समन्वय भी बना रहे।

भारत में माध्यमिक शिक्षा प्रदत्त पर अध्ययन के लिए गठित "माध्यमिक शिक्षा आयोग" (मुदालियर आयोग) ने सामाजिक अध्ययन के इस एकीकृत स्वरूप के महत्व को स्वीकार करते हुए लिखा है - "इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, नागरिकशास्त्र आदि को एक पूर्ण इकाई में देखना चाहिए। इस एकीकृत स्वरूप की विषय-सामग्री ऐसी हो जो छात्रों को सामाजिक परिवेश में व्यवहार कर सके।"

सामाजिक पर्यावरण का क्षेत्र अपने आप में काफी विस्तृत है और छात्रों में इतनी योग्यता व कुशलता होनी चाहिए कि वे इसमें स्वयं को ढाल सकें। सामाजिक अध्ययन इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक है। इस एकीकृत स्वरूप के माध्यम से छात्र सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत समाज, राज्य, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग, स्वतंत्रता, विभिन्न शासन प्रणालियाँ आदि की जानकारी प्राप्त करते हैं। साथ ही वे समाज में रहने की कला से परिचित होकर तथा स्वयं को समाज का अभिन्न अंग मानकर अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने में सक्षम हो सकते हैं।

सामाजिक अध्ययन के माध्यम से समाज के व्यवस्थित होने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए एम०टी० मॉफट लिखते हैं - “चाहे कोई व्यक्ति गणितशास्त्र या गणित का कितना ही विद्वान हो, यदि वह अपने समाज के प्रति उदासीन है तो वह (उस) असामाजिक जीवन की सबसे बड़ी उपयोग कला से और इस सामाजिक जीवन में निपुणता से दूर होता है।”

इस प्रकार सामाजिक अध्ययन का स्वरूप क्रमबद्ध ढंग से विकसित हुआ है। एक स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता प्राप्त कर यह अब एकीकृत स्वरूप की धारणा को ग्रहण किए हुए है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book