बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर सामाजिक अध्ययन शिक्षण के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
माध्यमिक स्तर पर सामाजिक अध्ययन शिक्षण के उद्देश्य (Aims of Teaching of Social Studies at Secondary Level)- माध्यमिक स्तर पर सामाजिक अध्ययन शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
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विभिन्न संस्कृतियों के प्रति प्रशंसात्मक दृष्टिकोण का विकास करना - वर्तमान में मानव-संस्कृति जिस प्रकार से विकास हो रहा है वह किसी एक जाति या देश का कार्य नहीं बल्कि विभिन्न संस्कृतियों के सहयोग का परिणाम है। इसी तथ्य के आधार पर विद्यार्थियों में संसार की विभिन्न संस्कृतियों के प्रति प्रशंसात्मक दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए।
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मानव सभ्यता की बुनियादी एकता का ज्ञान कराना - माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों को इस बात का ज्ञान कराना जाना चाहिए कि मानव सभ्यता देखने में भले ही अलग-अलग दिखाई देती हैं, परन्तु वास्तव में उनमें बुनियादी एकता विद्यमान है। इसी बुनियादी एकता के आधार पर विश्व-संस्कृति तथा सम्पूर्ण-मनुष्यता की कल्पना की गई है।
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परिवर्तन-प्रक्रिया का ज्ञान कराना - माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों को परिवर्तन-प्रक्रिया का ज्ञान प्रदान करना चाहिए। उन्हें इस तथ्य से अवगत कराना चाहिए कि परिवर्तन जीवन-प्रक्रिया का शाश्वत नियम है। वर्तमान युग तक पहुँचते-पहुँचते मानव समाज और जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन हुये हैं। उन्हें भी इस परिवर्तन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
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लोकतंत्र की आवश्यकता से परिचित कराना - माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों को यह अनुभव कराना चाहिए कि मनुष्य के व्यक्तित्व एवं सामाजिक विकास के लिये लोकतंत्र का होना अति आवश्यक है। लोकतंत्र केवल शासन पद्धति नहीं है, बल्कि जीवन शैली भी है। आज विश्व के लगभग सभी देश मानव-अधिकारों को स्वीकारते रहे हैं ये लोकतंत्र के विकास के प्रतीक हैं। अतः लोकतंत्र की विशेषताओं को स्वीकार कराना चाहिए तथा सामाजिक समस्याओं का अध्ययन और विश्लेषण भौगोलिक आवश्यकताओं के आधार पर करना चाहिए।
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अन्तरराष्ट्रीय भावना का विकास करना - माध्यमिक स्तर तक पहुँचनेवाले छात्रों में इतनी योग्यता विकसित हो जाती है कि वे अपने देश के बाहर के लोगों के बारे में सोच सकें। इस स्तर पर उन्हें यह समझाया जा सकता है कि विश्व के सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं। सभी ने किसी न किसी रूप में मानव-कल्याण के विकास में सहयोग दिया है। विश्व-संस्कृति के विकास में विश्व के दार्शनिकों एवं विचारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आज प्रत्येक देश विश्व को विनाशात्मक युद्ध से बचाने के लिये प्रयलशील है।
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