बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 3 - सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत विषयों
की विशिष्टता और परस्पर-निर्भरता
(Uniqueness and Interdependence of Disciplines Under Social Science)
प्रश्न- सामाजिक अध्ययन में इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र और अर्थशास्त्र में कैसे सहसम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कहा जाता है कि शिक्षण विधि में समभाव उत्पन्न करने के लिये सहसम्बन्ध होना आवश्यक है। आप सामाजिक अध्ययन में इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र और अर्थशास्त्र में कैसे सह-सम्बन्ध स्थापित करेंगे?
उत्तर -
सामाजिक अध्ययन के विषयों में सहसम्बन्ध
(Correlation among the Subjects of Social Studies)
ज्ञान एक अखण्ड इकाई के रूप में होता है। एक-पाठन की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए बौद्धिक वर्ग ने इसका वर्गीकरण एवं विभाजन कर लिया है और इसे सामाजिक विज्ञानों की विषयों का नाम दिया है। वस्तुतः वस्तुपरक ज्ञान का विभाजन नहीं हो सकता क्योंकि अध्ययन के दृष्टिकोण से अक्षर मात्र होता है, किन्तु विषयों का विभाजन एवं वर्गीकरण उद्देश्य तथा विशिष्ट दृष्टिकोणों के कारण होता है। इन उद्देश्यों एवं ज्ञानों को प्राप्त करने के लिए वह प्रयत्नशील रहता है। छात्र इन विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं साथ-साथ वह यह भी अनुभव करते हैं कि जीवन में जो कुछ नहीं करता वह इन विषयों की शिक्षण पूर्ण नहीं कहा जा सकता।
इस प्रकार ज्ञान का विभाजन नहीं किया जा सकता उसी प्रकार मस्तिष्क को भी पृथक-पृथक विषयगत विभागों में नहीं बाँटा जा सकता, वह सब अखण्ड इकाई के रूप में होता है और समस्त वर्गीकृत आधार पर विभिन्न विषयों का ज्ञान भिन्न-भिन्न अनुभवों एवं पारस्परिक सम्बन्ध, तुलनात्मक शिक्षण करके एक इकाई के रूप में मस्तिष्क में संगठित किया जाता है। समझने करने के साथ ही सम्बन्ध ग्रहण-क्रिया प्रारम्भ होती है और ही ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है अर्थात् मस्तिष्क को संगठित करने के साथ ही सम्बन्धों का ज्ञान होता है। हमारा मस्तिष्क कुछ ऐसे तत्वों से निर्मित होता है जो बिना सह सम्बन्ध स्थापना के हो ही नहीं सकता। अतः मानव मस्तिष्क स्वभावतः एक विषय के अनुभवों को दूसरे विषय के अनुभवों के साथ सम्बन्ध स्थापित की क्रिया में लगा रहता है। इस प्रकार ज्ञान की अनुभूति, मस्तिष्क की अनिवार्यता एवं सम्बन्धीकरण की प्रक्रिया को देखने से स्पष्ट होता है कि विषयों का आपस में सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक है।
अतः यह आवश्यक है कि सामाजिक अध्ययन में सामाजिक विषयों जैसे- नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास तथा भूगोल की शिक्षा अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हुए दी जाये।
इससे पहले की स्पष्ट किया जा चुका है कि ज्ञान एक अखण्ड इकाई के रूप में होता है। इसे विभाजित करके नहीं देखा जाना चाहिए किन्तु एक-पाठन की सुविधाओं के कारण इसे विशिष्ट उद्देश्यों एवं दृष्टिकोणों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। इसी कारण से सामाजिक अध्ययन को इसके विभिन्न वर्गों - इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
सामाजिक अध्ययन के उत्तर समस्त विषयों का सम्बन्ध से सीधा सम्बन्ध होता है तथा उनका आपस में सहसम्बन्ध भी होता है। इनमें से किसी एक को भी अनुपस्थित में सामाजिक अध्ययन विषय को पूर्ण नहीं माना जा सकता। इतिहास जिसे मानव सभ्यता तथा उससे सम्बन्धित वस्तुओं, स्थानों, घटनाओं तथा विचारों का कोश कहा जाता है, में सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक उत्थान का विश्लेषण प्राप्त होता है। भूगोल विषय के अन्तर्गत विश्व समाज की भौगोलिक प्राकृतिक दशाओं, कृषि उत्पाद, जलवायु, जीव-जन्तु, खनिज पदार्थ, आवासीय इत्यादि का वर्णन किया जाता है। नागरिकशास्त्र नागरिक अधिकार एवं कर्तव्यों तथा विभिन्न व्यावसायिक संस्थाओं के बारे में अध्ययन करने की प्रेरणा आवश्यक होती है और अर्थशास्त्र इस से ही सर्वत्र से स्वाभाविक महत्व रखता है। अर्थशास्त्र के अन्तर्गत मानव की आर्थिक क्रिया एवं प्रक्रियाओं का ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। परन्तु इन क्रियाओं का अध्ययन हो ही नहीं सकता था जब इतिहास, भूगोल तथा नागरिक जीवन से सम्बन्धित क्रियाओं को जोड़ा न जाये।
सामाजिक अध्ययन के उत्तर समस्त विषयों में कोई भी विषय ऐसा नहीं है जो मानव जीवन के लिए आवश्यक न हो, अतः सामाजिक अध्ययन की विषय-सामग्री का चयन उक्त विषयों से सहसम्बन्ध करके निम्न प्रकार से किया जा सकता है -
बुनियादी आवश्यकता से सम्बन्धित - मानव अपनी आधारभूत एवं बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कई प्रकार के सामाजिक एवं भौतिक साधनों का प्रयोग करता आया है। बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति से ही मानव समाज का विकास निहित है। सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम में बुनियादी आवश्यकताओं से सम्बन्धित सामग्री भी सम्मिलित होती है। जैसे- भोजन, वस्त्र तथा आवास प्राप्त करने के साथ इसके लिए मानव समाज में अत्यन्त महत्व एवं आवश्यकता है। मानव जीवन की समस्त बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति सम्बन्धित सामाजिक अध्ययन के विषयों, जैसे- इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र से होता है।
भौगोलिक आवश्यकता से सम्बन्धित - मानव जीवन में भौतिक वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चूँकि भौतिक एवं भौगोलिक दशाओं के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन को ढालना पड़ता है। इस सृष्टि में विद्यमान भौगोलिक वातावरण के कारण ही मानव जीवन में इतनी विविधता विद्यमान है। मानव जीवन में भौगोलिक वातावरण का महत्व बताने के लिए भूगोल विषय को सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। जैसे, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, वर्षा, मौसम, जलवायु, भौगोलिक परिपवन, खनिज, कृषि एवं उत्पादन, वन, पर्वत, नदियाँ, जीव-जन्तु, पशु-जीवन इत्यादि का ज्ञान भूगोल विषय के अन्तर्गत प्रदान किया जाता है।
ऐतिहासिक आवश्यकता से सम्बन्धित - मानव समाज की विकास प्रक्रिया को समझने के लिए इतिहास का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक देश की सभ्यता, संस्कृति, महापुरुषों, सामाजिक विकास, घटनाओं, ऐतिहासिक स्थलों का ज्ञान इतिहास में सुरक्षित होता है। सामाजिक अध्ययन छात्रों को मानवीय एवं सांस्कृतिक विकास तथा जुड़ी जानकारी का ज्ञान इतिहास विषय के अन्तर्गत प्रदान करता है। जैसे - गाँवों में सामाजिक विकास, प्राचीन ऐतिहासिक की जानकारी, उनका उद्भव, विकास तथा अन्य, घटनाओं की जानकारी, साहित्य की जानकारी इत्यादि का ज्ञान इतिहास विषय के माध्यम से समाज के लिए उपयोगी होता है।
आर्थिक आवश्यकता से सम्बन्धित - सामाजिक अध्ययन के द्वारा विद्यार्थियों को आर्थिक आवश्यकताओं एवं उसके महत्व का ज्ञान प्रदान किया जाता है। सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत विद्यार्थियों को बताया जाता है कि मानव जीवन के विकास में आर्थिक व्यवस्था तथा उसके ज्ञान का कितना महत्व है। यही कारण है कि सामाजिक अध्ययन में आर्थिक आवश्यकताओं से सम्बन्धित विषय-सामग्री को सम्मिलित करने की आवश्यकता होती है। जैसे, लोगों के विभिन्न प्रकार के व्यवसाय, रोज़गार, कृषि, उद्योग, धन का लेन-देन, वस्तुओं का परस्पर आदान-प्रदान, जीवन स्तर को उन्नत बनाने का प्रयास, इत्यादि का अर्थशास्त्र विषय के अन्तर्गत ज्ञान प्रदान किया जाता है जो सामाजिक अध्ययन के लिए अत्यन्त आवश्यक सामग्री है।
नागरिक एवं राजनीतिक आवश्यकता से सम्बन्धित - जब से मानव समाज का निर्माण हुआ तथा उसका विकास होना प्रारम्भ हुआ तभी से शासन, सत्ता, अधिकार, नियम इत्यादि की आवश्यकताओं उसे महसूस होने लगी। सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत नागरिक एवं राजनीतिकता के अध्ययन के द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षण प्रदान किया जाता है और नागरिक जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाने की प्रेरणा उत्पन्न की जाती है। नागरिक एवं राजनीतिकता के अन्तर्गत नागरिकता, अधिकार, कर्तव्य, संविधान, नियम, कानून, उत्तरदायित्व, जवाबदेही, शासन व्यवस्था, शासन के स्तर, न्यायालय की विधियाँ, पंचायत, तहसील, जिला, राज्य, राष्ट्र स्वतंत्रता, परतन्त्रता, स्वायत प्रशासन, विदेशीनीति, गृहनीति, युद्ध, संधियाँ इत्यादि का ज्ञान सम्मिलित रूप से छात्रों को प्रदान करके उन्हें अच्छा नागरिक बनाने में मदद मिलती है।
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