बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य शिक्षण के उद्देश्य एवं प्राप्य उद्देश्य क्या हैं? ये किस प्रकार आपस में भिन्न हैं?
अथवा
माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य शिक्षा के लक्ष्यों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उच्च माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर-
वाणिज्य शिक्षण के उद्देश्य शिक्षा एक मानवीय प्रक्रिया है और इसका हरेक शैक्षिक कार्य किसी न किसी लक्ष्य अथवा उद्देश्य की ओर निर्दिष्ट होता है। शिक्षा के ये लक्ष्य हर समय एक जैसे नहीं होते। शिक्षा के लक्ष्य एक समाज से दूसरे समाज में एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र तथा एक समय से दूसरे समय में भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे हम जानते हैं कि शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली गत्यात्मक प्रक्रिया है जो छात्रों के बहुमुखी विकास (सामाजिक, मानसिक, बौद्धिक एवं भौतिक विकास ) में सहायक है। शिक्षा के लक्ष्य उस राष्ट्र की जरूरतों के अनुसार-निर्धारित होते हैं। प्रत्येक विषय के शिक्षण के प्रमुख लक्ष्य एवं उद्देश्य होते हैं। इन्हीं लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर पाठ्यवस्तु का चयन किया जाता है। किसी विषय के शिक्षण में चार बातें होती हैं-
(i) क्यों पढ़ाया जाये?
(ii) क्या पढ़ाया जाए?
(iii) कैसे पढ़ाया जाए?
(iv) जहाँ तक क्यों पढ़ाया जाये,
ये शिक्षण के लक्ष्य एवं उददेश्य होते हैं। क्या पढ़ाया जाये के अन्तर्गत विषय की पाठ्य वस्तु तथा कैसे पढ़ाया जाये के अन्तर्गत शिक्षण की विभिन्न विधियाँ एवं तकनीकी आदि आते हैं।
किसी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए लक्ष्यों का होना अनिवार्य है। बिना पूर्व निर्धारित लक्ष्यों के किसी कार्य का करना शक्ति का हास है। अतः अध्यापक को अपने कार्य में सफलता प्राप्त करने हेतु लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि वह छात्रों से वांछित परिवर्तन लाने के लिए विविध क्रियाओं को संगठित कर सके।
लक्ष्य एवं प्राप्य उद्देश्य में अन्तर - आमतौर पर उद्देश्य को लक्ष्य का समानार्थी शब्द माना जाता है लेकिन ऐसा नहीं है। लक्ष्य एक पृथक् चीज है और उद्देश्य एक पृथक्।लक्ष्य सामान्य एवं विशिष्ट दोनों प्रकार के होते हैं और सामान्यतः विशिष्ट लक्ष्यों को ही उद्देश्य माना जाता है। शिक्षा के लक्ष्य एक जैसे होते हैं जबकि किसी विषय के प्राप्य उद्देश्य प्रत्येक इकाई के लिए पृथक्-पृथक् होंगे। प्राप्य उद्देश्यों को हम कक्षा स्तर इकाई, उपविषय स्तर पर निर्धारित करते हैं जबकि लक्ष्य एक विषय के जैसे ही होंगे।
लक्ष्यों एवं प्राप्य उद्देश्यों में निम्नलिखित अन्तर हैं-
शिक्षा/ उद्देश्य (Teaching Aim) | प्राप्य उद्देश्य (Teaching Objectives) |
(i) इनका क्षेत्र व्यापक होता है। | (i) इनका क्षेत्र सीमित होता है। |
(ii) ये आदर्शवादी होते हैं। | (ii) ये यथार्थवादी होते हैं। |
(iii) इनको प्राप्त करना बहुत कठिन है। | (iii) इनको प्राप्त करना सरल है। |
(iv) लक्ष्य पूरी शिक्षा से सम्बन्धित होते हैं। | (iv) ये प्रत्येक कक्षा एवं उपविषय से सम्बन्धित होते हैं। |
(v) उद्देश्य प्रकृति में सार्वभौमिक होते हैं। | (v)ये प्रकृति में सार्वभौमिक नहीं होते। |
(vi) ये सामान्य व अप्राप्य है। | (vi) ये विशिष्ट प्राप्य होते हैं। |
(vii) ये सीखने वालों को स्पष्ट निर्देश प्रदान नहीं करते। | (vii) ये छात्रों को स्पष्ट निर्देश प्रदान करते हैं। |
(viii) ये प्रत्यक्ष होते हैं। | (viii) ये प्रत्यक्ष, स्पष्ट व निश्चित होते हैं। |
(ix) ये आत्मनिष्ठ होते हैं। | (ix) ये वस्तुनिष्ठ होते हैं। |
वाणिज्य शिक्षण के माध्यमिक स्तर पर शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(i) ज्ञान - यह विशिष्ट उद्देश्यों में या ज्ञानात्मक पक्ष में सबसे निम्न स्तर है। वाणिज्य शिक्षण का इस स्तर पर प्राप्य उद्देश्य वाणिज्य से सम्बन्धित सिद्धान्तों, व्यापार, साझेदारी, बीमा, कार्यालय के यन्त्र, थोक व्यापार, परिवहन आदि के बारे में ज्ञान प्रदान करना है।
(ii) अवबोधन - ज्ञान के बाद अवबोधन का स्तर आता है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद छात्र उसे समझता है और विषयवस्तु के भाव को ग्रहण करने की योग्यता ग्रहण करता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न क्रियाएँ आती हैं जैसे-
(अ) व्याख्या
(ब) अनुवाद
(स) बाधवेशन।
(iii) ज्ञान उपयोग - इस प्राप्य उददेश्य के द्वारा छात्रों ने जो ज्ञान वाणिज्य के बारे में प्राप्त किया है और समझा है उस ज्ञान को नवीन एवं स्थूल परिस्थितियों में प्रयुक्त करने की क्षमता ग्रहण करना है।
(iv) विश्लेषण - वाणिज्यों के विभिन्न तत्त्वों से सम्बन्धित ज्ञान को विभिन्न अंगों में बाँट करके उसमें निहित संगठनात्मक संरचना को समझने की क्षमता का विकास करना है।
(v) संश्लेषण - विभिन्न अंगों को एक साथ मिलाकर उनमें नया तथ्य सिद्धान्त निकालने की योग्यता का विकास करना संश्लेषण कहलाता है।
(vi) कौशलात्मक प्राप्य उद्देश्य - वाणिज्य से सम्बन्धित विभिन्न चार्ट, मानचित्र, ग्राफ आदि बनाने के कौशल का विकास करना। छात्रों में गणना आदि कुशलताओं का विकास करना कौशलात्मक प्राप्य उद्देश्यों के अन्तर्गत आते हैं।
(vii) दृष्टिकोण या अभिवृत्ति सम्बन्धी प्राप्य उद्देश्य - छात्रों के अन्दर वाणिज्य शिक्षण के द्वारा सकारात्मक अभिवृत्तियों का विकास करना भी वाणिज्य शिक्षण का प्राप्य उद्देश्य है।इन अभिवृत्तियों में दूसरे के विचारों एवं समस्याओं का आदर करना व समझना, सहिष्णुता का विकास, संवेगों पर नियन्त्रण, वस्तुनिष्ठता, सहयोगी दायित्व को निभाना आदि सम्मिलित हैं।
(viii) अनुभूति एवं सराहनात्मक प्राप्य उद्देश्य - वाणिज्य शिक्षण के द्वारा छात्रों को उन मानवीय प्रयत्नों, उपलब्धियों, समस्याओं और निराकरण की सराहना करना सिखाना चाहिए जो मानव और उनसे पर्यावरण के संदर्भ में हमेशा होते रहते हैं। विविध प्रदेशों एवं क्षेत्रों का पारस्परिक सम्बन्ध एवं निर्भरता, विविध देशों की औद्योगिक विषमताओं के कारण उत्पन्न व्यापारिक आदान-प्रदान विविध प्रकार के लोगों में मैत्री एवं भातृत्व की भावना आदि की सराहना करना भी सिखाना चाहिए।
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