बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- उच्चतर माध्यमिक स्तर पास करने के पश्चात् वाणिज्य के छात्रों में किस प्रकार की क्षमता आ जाती है? व्याख्या कीजिए
उत्तर-
मानव सभ्यता के उदित होने के पूर्व मानव के जीवन में वाणिज्य का प्रवेश हुआ। परन्तु जैसे- जैसे सभ्यता बढ़ती गई, वाणिज्य का सम्बन्ध मानव जीवन के साथ त्यों-त्यों मजबूत होता गया। आज संसार का हरेक व्यक्ति किसी न किसी रूप में वाणिज्य से जुड़ा हुआ है और वाणिज्य के बिना हमारे जीवन में अंधेरा नजर आयेगा।अतः वाणिज्य से सम्बन्धित ज्ञान छात्रों को ज्ञान के लिए वाणिज्य विषय की शुरुआत की गई। वाणिज्य शिक्षा व्यावसायिक व अव्यावसायिक दोनों प्रकार की हो सकती है। व्यावसायिक वाणिज्यिक शिक्षा छात्रों में व्यवसायों के लिए आवश्यक कुशलता, ज्ञान व अभिवृत्ति उत्पन्न करती है जबकि अव्यावसायिक वाणिज्य शिक्षा छात्रों को ऐसी सूचनाएँ और क्षमताएँ प्रदान करती हैं जो वाणिज्य के क्षेत्र में व्यक्तिगत कार्यों और सेवाओं से सम्बन्धित है और जिसकी आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को होती है।
वाणिज्य शिक्षा एक ओर जहाँ छात्रों को वाणिज्य से सम्बन्धित कुशलताओं से सुसज्जित करती है वहीं दूसरी ओर इस प्रकार की योग्यताओं का विकास करती है जिससे वह वाणिज्य से सम्बन्धित सेवाओं का उपयोग कर सकें।
उच्चतर माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य शिक्षण के पश्चात् छात्रों में निम्नलिखित आवश्यक योग्यताओं का विकास होता है-
(i) वाणिज्य सम्बन्धित व्यावसायिक शिक्षा का ज्ञान - छात्रों को उच्चतर माध्यमिक स्तर तक वाणिज्य शिक्षा के द्वारा वाणिज्य सम्बन्धी व्यावसायिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है। छात्रों में इन प्रकार की योग्यताओं का विकास हो जाना चाहिए कि वे विविध व्यवसायों जैसे- आशुलिपि, टंकण, बीमा, विज्ञापन, भण्डार गृह, क्रय-विक्रय जैसे व्यवसाय सहजता से कर सकें।
(ii) भावी शिक्षा ग्रहण करने की योग्यता - हमारे देश में वाणिज्य शिक्षा आज की सामान्य शिक्षा का एक अंग है। यहाँ शिक्षा के व्यावसायिक दृष्टिकोण पर अधिक बल नहीं दिया जाता। अतः उच्चतर माध्यमिक स्तर तक वाणिज्य शिक्षा ग्रहण करने के बाद छात्रों में स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर तक शिक्षा प्राप्त करने की योग्यताओं का विकास हो जाता है।
(iii) उच्च व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने की योग्यता - उच्चतर माध्यमिक स्तर तक वाणिज्य शिक्षा ग्रहण करने के बाद छात्रों में उच्च व्यावसायिक शिक्षा जैसे व्यवसाय प्रशासन, व्यवसाय प्रबन्ध, कार्यालय संगठन एवं प्रबन्ध आदि उच्च व्यावसायिक शिक्षा में प्रवेश पाने की योग्यताओं का विकास हो जाता है।
(iv) उपयुक्त रोजगार अपनाने की योग्यता - उच्चतर माध्यमिक स्तर पर छात्रों को विविध व्यवसायों जैसे क्लर्क, टंकण, आशुलिपि, बैंकिंग, बीमा, बाजार व्यवस्था, व्यापार आदि के बारे में ज्ञान दिया जाता है। अतः छात्र किसी भी क्षेत्र में अपना व्यवसाय अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप शुरु करके अपनी आजीविका सुगमता से चला सकता है।
(v) व्यवसाय परिवर्तन की योग्यता - वाणिज्य शिक्षा का एक उद्देश्य यह भी है कि मनुष्य जरूरत पड़ने पर अपने व्यवसाय को बदल सके। मनुष्य अपने जीवन काल में कई व्यवसाय बदलता है। ये बदलाव या तो नये आविष्कारों, विधान में परिवर्तन या पदोन्नति के कारण आ सकते हैं। अतः उच्चतर माध्यमिक स्तर तक वाणिज्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद छात्रों से यह आशा की जाती है कि वे व्यवसाय परिवर्तन अपनी अनुकूलता के अनुसार-कर लेंगे और अपने आप को नई परिस्थितियों में अच्छी प्रकार से समायोजित कर सकेंगे। उदाहरण के लिए यदि छात्र को बही खाता के आधारभूत सिद्धान्त मालूम हैं तो अगर उसे खनन् फर्म के लेखापाल की जगह डेरी फार्म का लेखापाल नियुक्त कर दिया जाये तो वह आसानी से समायोजन कर सकेगा।
(vi) व्यावसायिक कौशलों के विकास का आधार - उच्चतर माध्यमिक स्तर तक वाणिज्य पढ़ने के बाद छात्रों में सामान्य वाणिज्य कौशलों की योग्यताएँ आ जाती हैं। वे विविध कौशलों जैसे आय-व्यय का हिसाब रखना, बहीखाता लिखना, लेखा-जोखा रखना, डाकतार भेजना, रेलवे पार्सल भेजना, बैंकों में खाते खोलना, पैसा जमा करना व निकालना, जीवन बीमा करवाना आदि प्राप्त कर सकते हैं।
(vii) छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास - छात्रों में उच्चतर माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य के अध्ययन के द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता हैं और उनमें स्वतन्त्र चिन्तन एवं निर्णय लेने की योग्यता का विकास होता है। छात्रों में वैज्ञानिक तरीके से सोचने-समझने व कार्य करने की आदत का विकास होता है।
(viii) जिम्मेदारी की भावना का विकास - उच्चतर माध्यमिक स्तर तक वाणिज्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद छात्र जिम्मेदार नागरिक बन जाते हैं। उनमें विभिन्न सामाजिक उत्तर-दायित्व की भावना जैसे ग्राहकों एवं उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, अंशधारियों या स्वामियों के प्रति सामाजिक उत्तर-दायित्व की भावनाओं का विकास होता है। स्कूलों में सहकारी कैंटीनें, स्टोर तथा मिनी बैंकों की जिम्मेदारी छात्रों को सौंपी जानी चाहिए।
(ix) आर्थिक सुनागरिकता के विकास का आधार - कुशल उपभोक्ता, कुशल उत्पादक, कुशल वितरक एवं प्रशासक के गुणों का विकास कर आर्थिक सुनागरिकता के विकास में मददगार होता है। किसी भी देश की उन्नति वहाँ के नागरिकों पर निर्भर करती हैं, जितना उस राष्ट्र का नागरिक अपने क्षेत्र में कुशल होगा उतना ही राष्ट्र का पूरा विकास होगा। उच्चतर माध्यमिक स्तर तक वाणिज्य शिक्षण के बाद छात्रों में आर्थिक सुनागरिकता का विकास होता है।
(x) छात्रों में मानवीय गुणों के विकास की योग्यता - वाणिज्य शिक्षण के पश्चात् छात्रों में मानवीय गुण जैसे सहकारिता, एकता, सच्चरित्र, सहिष्णुता, उदारता, मितव्ययता, सहानुभूति, ईमानदारी आदि मानवीय गुणों का विकास होता है। इन गुणों के विकास के परिणामस्वरूप छात्रों में मानवता का विकास हो जाता है।
(xi) वाणिज्य का ज्ञान व्यक्तिगत जीवन में उपयोग का आधार - उच्चतर माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य का पठन करने के बाद छात्रों में उसको व्यक्तिगत जीवन में उपयोग करने की योग्यताओं का विकास हो जाता है। यह ज्ञान केवल सैद्धान्तिक नहीं रह पाता।उदाहरण के लिए छात्र बैंकों में खाता खोलना, पैसा जमा करवाना व निकालना, पार्सल करना, तार भेजना तथा मनीआर्डर फार्म या चेक आदि भरने में गलती नहीं करते। इस प्रकार वाणिज्य शिक्षण के बाद छात्र में दैनिक जीवन में उपयोग की क्षमताओं और कुशलताओं का विकास हो जाता है।
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